गुरुवार, 29 जून 2023

पिता का आशीर्वाद

*💐पिता का आशीर्वाद 💐*

*एक व्यापारी की यह सत्य घटना है।*
 जब मृत्यु का समय सन्निकट आया तो पिता ने अपने एकमात्र पुत्र धनपाल को बुलाकर कहा कि.. 
बेटा मेरे पास धन-संपत्ति नहीं है कि मैं तुम्हें विरासत में दूं। पर मैंने जीवनभर सच्चाई और प्रामाणिकता से काम किया है। 
तो मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि, तुम जीवन में बहुत सुखी रहोगे और धूल को भी हाथ लगाओगे तो वह सोना बन जायेगी।
बेटे ने सिर झुकाकर पिताजी के पैर छुए। पिता ने सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और संतोष से अपने प्राण त्याग कर दिए।
अब घर का खर्च बेटे धनपाल को संभालना था। उसने एक छोटी सी ठेला गाड़ी पर अपना व्यापार शुरू किया। 
धीरे धीरे व्यापार बढ़ने लगा। एक छोटी सी दुकान ले ली। व्यापार और बढ़ा।
अब नगर के संपन्न लोगों में उसकी गिनती होने लगी। उसको विश्वास था कि यह सब मेरे पिता के आशीर्वाद का ही फल है। 
क्योंकि, उन्होंने जीवन में दु:ख उठाया, पर कभी धैर्य नहीं छोड़ा, श्रद्धा नहीं छोड़ी, प्रामाणिकता नहीं छोड़ी इसलिए उनकी वाणी में बल था। 
और उनके आशीर्वाद फलीभूत हुए। और मैं सुखी हुआ। उसके मुंह से बारबार यह बात निकलती थी। 
एक दिन एक मित्र ने पूछा: तुम्हारे पिता में इतना बल था, तो वह स्वयं संपन्न क्यों नहीं हुए? सुखी क्यों नहीं हुए?
धर्मपाल ने कहा: मैं पिता की ताकत की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उनके आशीर्वाद की ताकत की बात कर रहा हूं।
इस प्रकार वह बारबार अपने पिता के आशीर्वाद की बात करता, तो लोगों ने उसका नाम ही रख दिया बाप का आशीर्वाद! 
धर्मपाल को इससे बुरा नहीं लगता, वह कहता कि मैं अपने पिता के आशीर्वाद के काबिल निकलूं, यही चाहता हूं।
ऐसा करते हुए कई साल बीत गए। वह विदेशों में व्यापार करने लगा। जहां भी व्यापार करता, उससे बहुत लाभ होता। 
एक बार उसके मन में आया, कि मुझे लाभ ही लाभ होता है !! तो मैं एक बार नुकसान का अनुभव करूं।
तो उसने अपने एक मित्र से पूछा, कि ऐसा व्यापार बताओ कि जिसमें मुझे नुकसान हो। 
मित्र को लगा कि इसको अपनी सफलता का और पैसों का घमंड आ गया है। इसका घमंड दूर करने के लिए इसको ऐसा धंधा बताऊं कि इसको नुकसान ही नुकसान हो।
तो उसने उसको बताया कि तुम भारत में लौंग खरीदो और जहाज में भरकर अफ्रीका के जंजीबार में जाकर बेचो। धर्मपाल को यह बात ठीक लगी।
जंजीबार तो लौंग का देश है। वहां से लौंग भारत में लाते हैं और यहां 10-12 गुना भाव पर बेचते हैं। 
भारत में खरीद करके जंजीबार में बेचें, तो साफ नुकसान सामने दिख रहा है।
परंतु धर्मपाल ने तय किया कि मैं भारत में लौंग खरीद कर, जंजीबार खुद लेकर जाऊंगा। देखूं कि पिता के आशीर्वाद कितना साथ देते हैं।
नुकसान का अनुभव लेने के लिए उसने भारत में लौंग खरीदे और जहाज में भरकर खुद उनके साथ जंजीबार द्वीप पहुंचा।
जंजीबार में सुल्तान का राज्य था। धर्मपाल जहाज से उतरकर के और लंबे रेतीले रास्ते पर जा रहा था ! वहां के व्यापारियों से मिलने को। 
उसे सामने से सुल्तान जैसा व्यक्ति पैदल सिपाहियों के साथ आता हुआ दिखाई दिया।
उसने किसी से पूछा कि, यह कौन है?
उन्होंने कहा: यह सुल्तान हैं।
सुल्तान ने उसको सामने देखकर उसका परिचय पूछा। उसने कहा: मैं भारत के गुजरात के खंभात का व्यापारी हूं। और यहां पर व्यापार करने आया हूं। 
सुल्तान ने उसको व्यापारी समझ कर उसका आदर किया और उससे बात करने लगा।
धर्मपाल ने देखा कि सुल्तान के साथ सैकड़ों सिपाही हैं। परंतु उनके हाथ में तलवार, बंदूक आदि कुछ भी न होकर बड़ी-बड़ी छलनियां है। 
उसको आश्चर्य हुआ। उसने विनम्रता पूर्वक सुल्तान से पूछा: आपके सैनिक इतनी छलनी लेकर के क्यों जा रहे हैं।
सुल्तान ने हंसकर कहा: बात यह है, कि आज सवेरे मैं समुद्र तट पर घूमने आया था। तब मेरी उंगली में से एक अंगूठी यहां कहीं निकल कर गिर गई। 
अब रेत में अंगूठी कहां गिरी, पता नहीं। तो इसलिए मैं इन सैनिकों को साथ लेकर आया हूं। यह रेत छानकर मेरी अंगूठी उसमें से तलाश करेंगे।
धर्मपाल ने कहा: अंगूठी बहुत महंगी होगी।
सुल्तान ने कहा: नहीं! उससे बहुत अधिक कीमत वाली अनगिनत अंगूठी मेरे पास हैं। पर वह अंगूठी एक फकीर का आशीर्वाद है। 
मैं मानता हूं कि मेरी सल्तनत इतनी मजबूत और सुखी उस फकीर के आशीर्वाद से है। इसलिए मेरे मन में उस अंगूठी का मूल्य सल्तनत से भी ज्यादा है।
इतना कह कर के सुल्तान ने फिर पूछा: बोलो सेठ, इस बार आप क्या माल ले कर आये हो।
धर्मपाल ने कहा कि: लौंग!
सुल्तान के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। यह तो लौंग का ही देश है सेठ। यहां लौंग बेचने आये हो? किसने आपको ऐसी सलाह दी।
जरूर वह कोई आपका दुश्मन होगा। यहां तो एक पैसे में मुट्ठी भर लोंग मिलते हैं। यहां लोंग को कौन खरीदेगा? और तुम क्या कमाओगे?
धर्मपाल ने कहा: मुझे यही देखना है, कि यहां भी मुनाफा होता है या नहीं। 
मेरे पिता के आशीर्वाद से आज तक मैंने जो धंधा किया, उसमें मुनाफा ही मुनाफा हुआ। तो अब मैं देखना चाहता हूं कि उनके आशीर्वाद यहां भी फलते हैं या नहीं।
सुल्तान ने पूछा: पिता के आशीर्वाद? इसका क्या मतलब?
धर्मपाल ने कहा: मेरे पिता सारे जीवन ईमानदारी और प्रामाणिकता से काम करते रहे। परंतु धन नहीं कमा सकें। 
उन्होंने मरते समय मुझे भगवान का नाम लेकर मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिए थे, कि तेरे हाथ में धूल भी सोना बन जाएगी।
ऐसा बोलते-बोलते धर्मपाल नीचे झुका और जमीन की रेत से एक मुट्ठी भरी और सम्राट सुल्तान के सामने मुट्ठी खोलकर उंगलियों के बीच में से रेत नीचे गिराई तो..
धर्मपाल और सुल्तान दोनों का आश्चर्य का पार नहीं रहा। उसके हाथ में एक हीरेजड़ित अंगूठी थी। यह वही सुल्तान की गुमी हुई अंगूठी थी।
अंगूठी देखकर सुल्तान बहुत प्रसन्न हो गया। बोला: वाह खुदा आप की करामात का पार नहीं। आप पिता के आशीर्वाद को सच्चा करते हो।
धर्मपाल ने कहा: फकीर के आशीर्वाद को भी वही परमात्मा सच्चा करता है।
सुल्तान और खुश हुआ। धर्मपाल को गले लगाया और कहा: मांग सेठ। आज तू जो मांगेगा मैं दूंगा।
धर्मपाल ने कहा: आप 100 वर्ष तक जीवित रहो और प्रजा का अच्छी तरह से पालन करो। प्रजा सुखी रहे। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए।
सुल्तान और अधिक प्रसन्न हो गया। उसने कहा: सेठ तुम्हारा सारा माल में आज खरीदता हूं और तुम्हारी मुंह मांगी कीमत दूंगा।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है, कि पिता के आशीर्वाद हों, तो दुनिया की कोई ताकत कहीं भी तुम्हें पराजित नहीं होने देगी। 
*पिता और माता की सेवा का फल निश्चित रूप से मिलता है। आशीर्वाद जैसी और कोई संपत्ति नहीं।*
बालक के मन को जानने वाली मां और भविष्य को संवारने वाले पिता यही दुनिया के दो महान ज्योतिषी है।

*अपने बुजुर्गों🙌 का सम्मान 🙏करें! यही 🚩भगवान की सबसे बड़ी सेवा है.

रविवार, 25 जून 2023

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् व्याख्या

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् व्याख्या

शब्दार्थ, अनुवाद, पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास, योग्यता विस्तार

Subject – Sanskrit / संस्कृत

पुस्तक का नाम - रुचिरा भाग -3

Class 8 Sanskrit Chapter-4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् व्याख्या Summary

 

पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
श्रीधरभास्कर वर्णेकर ने अपने इस गीत में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ने का आह्वान किया है। श्रीधर राष्ट्रवादी कवि हैं जिन्होंने इस गीत के द्वारा जागरण और कर्मठता का सन्देश दिया है।

 

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Class 8 Sanskrit Chapter 4 शब्दार्थ

  1. चल – चलो।
  2. पुरतो – आगे।
  3. निधेहि – बढ़ाओ।
  4. चरणम् – कदम।
  5. सदैव – हमेशा।
  6. गिरिशिखरे – पर्वत शिखर पर।
  7. ननु – निश्चित रूप से।
  8. निजनिकेतनम् – अपना घर।
  9. विनैव – बिना।
  10. यानं – यान के / जहाज के।
  11. नगारोहणम् – पर्वतों पर चढ़ना है।
  12. बलं – बल।
  13. स्वकीयं – अपना।
  14. भवति – होता है ‌। साधनम् – साधन।
  15. पथि – रास्ते में।
  16. पाषाणाः – पत्थर।
  17. विषमाः- टेढ़े-मेढ़े।
  18. प्रखराः – नुकीले।
  19. हिंस्राः – हिंसक।
  20. पशवः – जानवर।
  21. परितो – चारों ओर।
  22. घोराः – भयंकर।
  23. सुदुष्करं – अत्यधिक कठिन।
  24. खलु – निश्चित रूप से।
  25. यद्यपि – हालांकि।
  26. गमनम् – यात्रा।
  27. जहीहि – छोड़ दो।
  28. भीतिं – डर को।
  29. भज-भज – जपना ।
  30. शक्तिम् – शक्ति को।
  31. विधेहि –  रखो।
  32. राष्ट्रे – राष्ट्र में।
  33. तथाऽनुरक्तिम् – प्रेम को।
  34. कुरु – करो।
  35. सततं – हमेशा।
  36. ध्येय – लक्ष्य का।
  37. स्मरणम् – स्मरण।

 

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Class 8 Sanskrit Chapter 4 व्याख्या

 

(1) चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।

अन्वय – (त्वं) चल चल पुरतो चरण निधेहि। सदैव पुरतो चरण निधेहि।

शब्दार्थ :चल – चलो।  पुरतो – आगे। निधेहि – बढ़ाओ। चरणम् – कदम। सदैव – हमेशा।

Translation in Hindiचलो- चलो आगे कदम बढ़ाओ। हमेशा आगे कदम बढ़ाओ। अर्थात जीवन में आगे बढ़ते रहो।

Translation in English – Come on – let’s move on. Always take a step forward. That is, keep moving forward in life.

 

(2) गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्।।
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो ………………… ||

अन्वय – निजनिकेतनम् ननु गिरिशिखरे (अस्ति) । विनैव यानं नगारोहणं (करणीयम्)। (अस्माक) स्वकीयं बलं (एव अस्माकं) साधनं भवति । (अतः त्वं) सदैव पुरतो चरणं निघेहि ।

शब्दार्थ :गिरिशिखरे – पर्वत शिखर पर।  ननु – निश्चित रूप से। निजनिकेतनम् – अपना घर। विनैव – बिना। यानं – यान के / जहाज के। नगारोहणम् – पर्वतों पर चढ़ना है। बलं – बल। स्वकीयं – अपना। भवति – होता है ‌। साधनम् – साधन।

Translation in Hindiअपना घर पर्वत शिखर पर है। हमें जहाजों के बिना ही पर्वतों पर चढ़ना है। अपना बल ही अपना साधन है। इसलिए हमेशा आगे कदम बढ़ाते रहो।

Translation in English – Your home is on the top of a mountain. We have to climb mountains without ships. Your strength is your tool. So always keep moving forward.

 

(3) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः ।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः।।
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो …………………।।

अन्वय – (तव) पथि विषमा प्रखरा: पाषाणा: (भविष्यन्ति) । (तव) परितो हिंसाः घोरा: पशव: (भविष्यन्ति)। यद्यपि (तव) गमनं खलु सुदुष्करम् (भविष्यति) । (तथापि त्वं) सदैव परतो चरण निधेहि ।

शब्दार्थ :पथि – रास्ते में। पाषाणाः – पत्थर। विषमाः- टेढ़े-मेढ़े। प्रखराः – नुकीले। हिंस्राः – हिंसक। पशवः – जानवर। परितो – चारों ओर। घोराः – भयंकर। सुदुष्करं – अत्यधिक कठिन। खलु – निश्चित रूप से। यद्यपि – हालांकि। गमनम् – यात्रा।

Translation in Hindiतुम्हारे रास्ते में टेढ़े मेढ़े नुकीले पत्थर आएंगे। आपके चारों और भयंकर हिंसक जानवर होंगे। हालांकि आपकी यात्रा निश्चित रूप से अत्यधिक कठिन होगी। फिर भी तुम आगे कदम बढ़ाते रहो।

Translation in English – There will come crooked and sharp stones in your way. There will be fierce beasts all around you. Though your journey will definitely be extremely difficult. Still you keep on moving forward.

 

(4) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम् ।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम् ॥
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो …………………..।।

अन्वय – (त्व) भीति जहीहि, (निज) शक्तिं भज-भज। तथा राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि। सततं (स्व) ध्येय स्मरणं कुरु-कुरु । (त्वं) सदैव पुरतो चरणं निघेहि।

शब्दार्थ :जहीहि – छोड़ दो।  भीतिं – डर को। भज-भज – जपना । शक्तिम् – शक्ति को। विधेहि –  रखो। राष्ट्रे – राष्ट्र में। तथाऽनुरक्तिम् – प्रेम को। कुरु – करो। सततं – हमेशा। ध्येय – लक्ष्य का। स्मरणम् – स्मरण।

Translation in Hindiतुम डर को छोड़ो, अपनी शक्ति को स्मरण करो। अपने राष्ट्र से प्रेम करो और हमेशा अपने लक्ष्य को स्मरण करते हुए हमेशा आगे कदम बढ़ाओ।

Translation in English – You drop fear, remember your power. Love your nation and always move forward remembering your goal.

 

 

अभ्यासः (Exercise)
प्रश्नः 1. पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत। (अठ में दिए गए गीत को स्वर में गाइए।)
उत्तरम्: छात्र सुस्वर में गीत को गाएँ।

 

प्रश्नः 2. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर एक पद में दीजिए-)
(क) स्वकीयं साधनं किं भवति?
(ख) पथि के विषमाः प्रखरा:?
(ग) सततं किं करणीयम्?
(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः?
(ङ) सः कीदृशः कविः मन्यते?
उत्तरम्:
(क) बलम्।
(ख) पाषाणाः।
(ग) ध्येय-स्मरणम्।
(घ) श्रीधरभास्कर-वर्णेकरः।
(ङ) राष्ट्रवादी।

 

प्रश्नः 3. मजूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-(मञ्जूषा से क्रिया पद चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)

निधेहि,       विधेहि,       जहीहि,      देहि,      भज,      चल,         कुरु

यथा-त्वं पुरतः चरणं निधेहि।
(क) त्वं विद्यालयं …………………..|
(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं …………………..|
(ग) मयं जलं …………………..|
(घ) मूढ! ………………….. धनागमतृष्णाम्।
(ङ) ………………….. गोविन्दम्।
(च) सततं ध्येयस्मरणं …………………..|

उत्तरम्:
(क) चल
(घ) जहीहि।
(ख) विधेहि।
(ङ) भज।
(ग) देहि।
(च) कुरु।

 

प्रश्नः 4. (अ) उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचितकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-(उचित कथनों के सामने ‘आम्’ तथा अनुचित कथनों के सामने ‘न’ ऐसा लिखिए-)
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Q4
उत्तरम्:
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Q4.1

प्रश्नः 5. (आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत-(वाक्य रचना द्वारा अर्थ-भेद स्पष्ट कीजिए-)
परितः – पुरतः
नगः – नागः
आरोहणम् – अवरोहणम्
विषमाः – समाः

उत्तरम्:
परितः (चारों ओर) – ग्रामं परितः जनाः वसन्ति।
पुरतः (आगे) – सीतायाः पुरतः रामः चलति।
नगः (पर्वत) – हिमालयः संसारे प्रसिद्धः नगः अस्ति।
नागः (सर्प) – शेषनागः सर्वोच्चः भवति।।
आरोहणम् (चढ़ाई) – पर्वतस्य आरोहणम् सुखदं भवति।
अवरोहणम् (उतराई) – पर्वतस्य अवरोहणं रोमांचकं भवति।
विषमाः (असमान) – पर्वतस्य मार्गाः विषमाः एव भवन्ति।
समाः (समान) – राजपुत्राः नृपेण समाः सन्ति।

 

प्रश्नः 6. मजूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।-(मञ्जूषा से अव्यय पद चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)

एव,         खलु,        तथा,        परितः,        पुरतः,      सदा,        विना

(क) विद्यालयस्य ……………………… एकम् उद्यानम् अस्ति।
(ख) सत्यम् ……………………… जयते।।
(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् ……………………… ?
(घ) सः यथा चिन्तयति ……………………… आचरति।
(ङ) ग्राम ……………………… वृक्षाः सन्ति।
(च) विद्यां ……………………… जीवनं वृथा।
(छ) ……………………… भगवन्तं भज।

उत्तरम्:
(क) पुरतः
(ख) एव
(ग) खलु
(घ) तथा
(ङ) परितः
(च) विना
(छ) सदा

 

प्रश्नः 7. विलोमपदानि योजयत-(विलोम पदों का मिलान कीजिए-)
पुरतः – विरक्तिः
स्वकीयम् – आगमनम्।
भीतिः – पृष्ठतः
अनुरक्तिः – परकीयम्
गमनम् – साहसः

उत्तरम्:
पुरतः – पृष्ठतः
स्वकीयम् – परकीयम्
भीतिः – साहसः
अनुरक्तिः – विरक्तिः
गमनम् – आगमनम्।

 

प्रश्नः 8. (अ) लट्लकारपदेभ्यः लोट्-विधिलिङ्लकारपदानां निर्माणं कुरुत-(लट् लकार के पदों से लोट् और विधिलिङ् लकार के पदों का निर्माण कीजिए-)
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Q8
उत्तरम्:
NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Q8.1

 

प्रश्नः 9. (आ) अधोलिखितानि पदानि निर्देशानुसारं परिवर्तयत-(निम्नलिखित पदों को उदाहरण अनुसार परिवर्तित कीजिए-)
यथा- गिरिशिखर (सप्तमी-एकवचने) – गिरिशिखरे
पथिन् (सप्तमी-एकवचने) ……………………..
राष्ट्र (चतुर्थी-एकवचने) ……………………..
पाषाण (सप्तमी-एकवचने) ……………………..
यान (द्वितीया-बहुवचने) ……………………..
शक्ति (प्रथमा-एकवचने)
पशु (सप्तमी-बहुवचने) ……………………..

उत्तरम्:
पथि, राष्ट्राय, पाषाणे,
यानानि, शक्तिः , पशुषु,

Class 6th sanskrit solutions

CH-1 Shabd-Parichay-1 CH-2 Shabd Parichay-2 CH-3 Shabd Parichay-3