NCERT Book Vasant Solutions Class 8 Hindi पाठ-3 दीवानों की हस्ती पाठ के प्रश्नोत्तर
वसंत भाग-3 कक्षा-आठवीं हिंदी
Chapter-3 Deewanon ki Hasti
पाठ-3 दीवानों की हस्ती शब्दार्थ, पाठ का सार, प्रश्नोत्तर
दीवानों की हस्ती(कविता) की व्याख्या, प्रश्नोत्तर और अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न कक्षा-8
दीवानों की हस्ती कविता का सार
'दीवानों की हस्ती' भगवतीचरण वर्मा द्वारा रचित एक कविता है। इसमें कवि ने दीवानों को कविता में स्थान देकर उनके भावनाओं और क्रियाकलापों को अलग ढ़ंग से व्यक्त किया है। कवि कहता है कि हम तो दीवाने हैं; हमारा कोई एक ठिकाना या निश्चित स्थान नहीं है। आज हम यहाँ हैं तो कल कहीं और। हम दीवाने अपने साथ मस्ती, खुशी, उत्साह का वातावरण साथ लिए चलते रहते हैं, इसीलिए हम दीवाने कहलाते हैं।
हम कभी खुशी के रूप में सीधे चले आते हैं, तो कभी आँसू के रूप में दुख बनकर बह जाते हैं। हमें देखकर लोग कहते हैं कि तुम यहाँ कैसे आए हो और इस तरह दोबारा कहाँ चले जाते हो? हमसे यह मत पूछिए कि हम कहाँ चले हैं? हम तो इसलिए चले हैं कि हमारा काम चलना है, इसीलिए हम आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं। हम संसार से कुछ सीखते हैं और अपनी कुछ सीख उन्हें देकर वापस चल देते हैं। दो बातें करते हैं-उससे खुशी भी मिलती है और किसी बात से रोना भी आता है, लेकिन फिर भी दुःख और सुख के क्षणों को भूलकर हम मात्र उत्साह के भाव को लिए आगे बढ़ते जाते हैं। कवि कहता है कि वह इस भिखारियों के संसार में पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपना प्यार दूसरों को लुटाकर चल दिया है। हम हृदय पर अपने कार्यों में असफलता का भार लिए किसी तरह चल पड़े हैं। अब हमें मेरा-तेरा कुछ नहीं दिखता अर्थात मैं अपने पराए के भाव से मुक्त हो गया हूँ। पराधीनता के बंधन को तोड़कर मैं मस्ती और स्वतन्त्रता के मार्ग पर चल दिया हूँ।
शब्दार्थ
दीवानों- अपनी मस्ती में रहने वाले
हस्ती- अस्तित्व
मस्ती- मौज
आलम- दुनिया
उल्लास- ख़ुशी
जग- संसार
छककर- तृप्त होकर
भाव- एहसास
भिखमंगों- भिखारियों
स्वच्छंद- आजाद
निसानी- चिह्न
उर- ह्रदय
असफलता- जो सफल न हो
भार- बोझ
आबाद- बसना
स्वयं- खुद
दीवानों की हस्ती कविता का भावार्थ (व्याख्या)
दीवानों की हस्ती
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बन कर उल्लास अभी,
आँसू बन कर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?
शब्दार्थ –
दीवानों: अपनी मस्ती में रहने वाले
हस्ती: अस्तित्व
मस्ती: मौज
आलम: दुनिया
उल्लास: ख़ुशी
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठय पुस्तक “वसंत-3” में संकलित कविता “दीवानों की हस्ती” से ली गयी है। इसके कवि “भगवती चरण वर्मा“ है। इस कविता में कवि ने मस्त-मौला और फक्कड़ स्वभाव का वर्णन किया है।
व्याख्या – अपनी मस्ती में रहने वाले लोगों की क्या हस्ती, क्या अस्तित्व है। कभी यहाँ है तो कभी वहाँ। एक जगह तो रूकने वाले नहीं है, आज यहाँ, कल वहाँ चले। यानी की जो मस्त-मौला किस्म के व्यक्ति हैं वो कभी भी एक जगह नहीं ठहरते, आज यहाँ है तो कल कहीं और। यह जो मौज मस्ती का आलम है यह साथ चला- जहाँ कवि गया वहाँ पर उन्होंने अपनी मस्ती से, अपनी प्रसन्नता से, सब में खुशियाँ बाँटी। कवि कहते हैं कि हम अपनी मस्त-मौला आदत के अनुसार जहाँ भी गए, प्रसन्नता से धूल उड़ाते चले, मौज मजा करते चले। हम दीवानों की हस्ती कुछ ऐसी ही होती है हम जहाँ भी जाते है अपने ढंग से जीते है अपने ढंग से ही चलते-चलते है। हम पर किसी का कोई असर नहीं होता। कवि कहते है वे अभी-अभी आएँ है और खुशियाँ बाँटी हैं, खुशियाँ लुटाई है और अभी कुछ हुआ कि आँसू भी बनकर बहे निकले।अर्थात् अभी-अभी खुश थे और अभी-अभी दुखी हो गए है तो आँसू भी बह निकले है। कवि मस्त-मौला किस्म के है अपने मन मरजी के मालिक हैं कभी कहीं जाते है तो कभी कहीं के लिए चल पड़ते है तो जहाँ पर पहुँचते है खुशियाँ लुटाते है और वहाँ से आगे निकल चलते है तो लोग कहते है कि अरे, तुम कब आए और कब चले गए पता ही नहीं चला।
पाठ – किस ओर चले? यह मत
पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,
दो बात कही, दो बात सुनी।
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।
शब्दार्थ –
जग: संसार
छककर: तृप्त होकर
भाव: एहसास
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठय पुस्तक “वसंत-3″ में संकलित कविता” दीवानों की हस्ती” से ली गयी है। इसके कवि “भगवती चरण वर्मा” है। इस काव्यांश में कवि संसार से दूर अपनी अलग राह पर चलने की बात कह रहे हैं।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि यह मत पूछो कि मैं कहाँ जा रहा हूँ मेरी मंजिल क्या है क्योंकि इसके बारे में तो मुझे भी नहीं पता स्वयं को भी नहीं पता। जैसा कि मैं मस्त-मौला हूँ, एक जगह ठहरता नहीं हूँ, चलता ही रहता हूँ इसलिए बस आगे चलते ही रहना है। इस दुनिया से कुछ ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया है, कुछ सीख ली है, उसको लेकर वह आगे बढ़ चले है। जो भी उनके पास था वे भी इस दुनिया के साथ बाँटते हुए आगे चल पड़े है। कवि जहाँ कहीं भी पहुँचे वहाँ के लोगों से खुशी-खुशी से मिले और उनसे बात चीत की, अपना सुख-दुख बाँटा और अपने मन की बात कही। जब सुख के भाव जगे तो उनके साथ मिलकर हँसे भी और जब उनको दुख का अनुभाव हुआ तो उनके साथ अपना दुख भी बाँटा। उनका भी सुख-दुख बाँटा। जो दुख-सुख के समय भावनाएँ जगी, उनको एक दूसरे के साथ बाँटा जिससे व्यक्ति का मन हल्का हो जाता है। जो सुख-दुख के भाव है एक सामान हम गमों से पिए चले और आगे बढे़ चले।
पाठ – हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी – सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकने वाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बँधन तोड़ चले।
शब्दार्थ –
भिखमंगों: भिखारियों
स्वच्छंद: आजाद
निसानी: चिन्ह
उर: ह्रदय
असफलता: जो सफल न हो
भार: बोझ
आबाद: बसना
स्वयं: खुद
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठय पुस्तक “वसंत-3” में संकलित कविता “दीवानों की हस्ती” से ली गयी है। इसके कवि “भगवती चरण वर्मा” है। इस काव्यांश में कवि प्यार की दौलत से हीन संसार को भिखारी कहते हैं और फक्कड़ होते हुए भी वे संसार पर अपना प्यार लुटाते हैं।
व्याख्या – कवि इन पंक्तियों में कह रहे है कि यह जो दुनिया है, दुनिया के लोग भिखारियों की तरह कुछ न कुछ माँग करते रहते है। भिखारी की आदत माँगना होती है । इस दुनिया के लोगों को उन्होंने भिखमंगे कहा है। भिखमंगों की इस दुनिया में अपनी मन मरजी से अपना प्यार लुटाकर चले है। वे अपने हृदय में यही एक निशानी लेकर आगे चले है। उन्होंने जीवन में असफलता भी पाई है, हार भी मानी है, लेकिन उस का बोझ स्वयं ही उठाया है। उसका बोझ किसी पर नहीं डाला है अर्थात उसके लिए जिम्मेदार किसी अन्य व्यक्ति को नहीं मानते हैं। जो अपनी मंजिल पर रूके है वह आबाद रहे, बसे रहे यही आर्शीवाद देते है। कवि कहते है कि हम स्वयं ही अपने इन बँधनों में बँधे थे, अपनी स्वतत्रंता से, अपनी मरजी से, और हम स्वयं ही यह बँधन तोड़ आगे चल निकले है। कवि का यह मानना है कि वे संकल किस्म के मस्त-मौला आदमी दीवाने कभी किसी बँधन में नहीं बँधे है। अगर बँधे है तो वह अपनी मरजी से और अब वो आगे बढ़ निकले है अर्थात् बँधनों को तोड़ चले है तो भी वे अपनी मन मरजी से ही उन बँधनों को तोड़कर आगे बढ़े है। वह स्वयं ही इस बात का अफसोस जताते है अपने जीवन में इस बात की हार मानते है कि वे कभी भी एक संसारिक व्यक्ति नहीं बन पाए, एक संसारिक व्यक्ति का सुख नहीं भोग पाए।
दीवानों की हस्ती कविता का प्रश्न उत्तर
कविता से
प्र॰1 कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को
‘आँसू बन कर बह जाना’ क्यों कहा है?
उत्तर- कवि ने अपने आने को उल्लास इसलिए कहा है क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने
के कारण सांसारिक चिंताओं से मुक्त है यद्यपि वह सांसारिकता की दृष्टि से विपन्न
है परंतु वह लोगों से प्रेम करता है। लोगों से आत्मिक प्रेम होने से वह उनसे
बिछड़ना नहीं चाहता। उनसे विदा होते समय लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं इसलिए
वह अपने जाने को ‘आंसू बनकर बह जाना’ कहा है।
प्र॰2 भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?
उत्तर- आज मनुष्य अपने-अपने स्वार्थों में बँध कर रह गया है। वह स्वार्थवश ही किसी से मोह अथवा प्रेम व्यक्त करता है। कवि निस्वार्थ भाव से सभी को समान रूप से प्रेम करता है। कवि सांसारिक दृष्टि से विपन्न माना जाता है। इसलिए वह स्वयं को असफल मानता है परंतु इस संसार में वह असफल नहीं है।
3 कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?
उत्तर- इस कविता की प्रत्येक पंक्ति संदेशपरक और महत्वपूर्ण है लेकिन इसमें से हमें जो सबसे अच्छा लगा वह कवि का निस्वार्थ भाव से कर्म करना है। कवि निस्वार्थ भाव से एक दूसरे के सुख-दुख को समझता है। कवि हमेशा संसार के कल्याण की बात को ही सोचता है। संसार के कल्याण में यदि कव का कुछ अहित या नुकसान होता है तो उसको भी सहने के लिए वह हमेशा तैयार रहता है।
कविता से आगे
1-जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।
उत्तर- प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मस्ती का होना अति आवश्यक है। लेकिन प्रत्येक आयु में मस्ती अलग-अलग प्रकार की होती है। मस्ती तब हानिकारक हो जाती है जब वह अपने उद्देश्य से हटकर केवल और केवल मस्ती के लिए और आवश्यकता से अधिक होती है। अनियंत्रित मस्ती या आवश्यकता से अधिक मस्ती हानिकारक हो सकती है यह मनुष्य को उसके पथ से भटका देती है। मैं उस प्रकार की मस्ती के पक्ष में हूं जो समाज व देश के लिए उत्थान व कल्याण का नया पथ प्रशस्त करे।
अनुमान और कल्पना
एक पक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि "हम दीवानों की क्या हस्ती हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।" दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि "मस्ती का आलम साथ चला. हम धूल उड़ाते जहाँ चले।" यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढिए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई है?
उत्तर- कविता की व्याख्या मैं से उत्तर छाँटकर विद्यार्थी स्वयं लिखें।
भाषा की बात
संतुष्टि के लिए कवि ने 'छककर' 'जी भरकर' और 'खुलकर' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करनेवाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।
उत्तर- उड़कर, भरकर, उठाकर, गाकर, खाकर, बनाकर, लुटाकर, उड़ाकर,
दीवानों की हस्ती कविता में कवि भगवती चरण वर्मा नें अपने प्रेम से भरे हृदय के भावों को दर्शाया है क्योंकि कवि स्वाभाविक रूप से संसार के व्यक्तियों से प्रेम करता है. कवि अपने जीवन को अपने तरीके से जीते हैं, वे मस्त-मौला है . वे इन पँक्तियों में चारों ओर प्रेम बाँटने का सन्देश देते हैं। वे, जहाँ भी जाते हैं खुशियाँ बिखेरते हैं और जीवन में असफल हो जाने पर भी किसी को दोष नहीं देते। उनके अनुसार हमें अपनी सफलता और असफलता का श्रेय स्वयं को ही देना चाहिए क्योंकि अगर हम असफल होते है तो उसमें भी कहीं न कहीं दोष हमारा ही होता है और सफल होने पर वे श्रेय भी स्वयं को ही देते हैं। वे अपने जीवन में मिली हार या असफलता की जिम्मेदारी किसी दूसरे पर नहीं डालते।
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