मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

Motivational Poem प्रेरणादायक कविताएँ

 तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी न मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

 

वरदान माँगूँगा नहीं ।।
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खण्डहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं ।
वरदान माँगूँगा नहीं ।।

 

 

 

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,

झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं।
गीत नया गाता हूँ।

 

टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।

हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

-अटल बिहारी वाजपेयी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

सोहनलाल द्विवेदी जी

 

 

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

-निदा फ़ाज़ली

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो

यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

हर इक सफ़र को है महफ़ूस रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो

कहीं नहीं कोई सूरज
, धुआँ धुआँ है फ़िज़ा
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो

 

 

 

 

 

 

 

19. तू ख़ुद की खोज में निकल -Tanveer Ghazi

तू खुद की खोज में निकल, तू किस लिए हताश है,
तू चल, तेरे वजूद की, समय को भी तलाश है
समय को भी तलाश है।।

 

जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ, समझ न इन को वस्त्र तू।।

ये बेड़ियां पिघाल के, बना ले इनको शस्त्र तू
तू खुद की खोज में निकल, तू किस लिए हताश है,
तू चल, तेरे वजूद की, समय को भी तलाश है

चरित्र जब पवित्र है, तो क्यों है ये दशा तेरी।।

ये पापियों को हक़ नहीं, की ले परीक्षा तेरी
तू खुद की खोज में निकल, तू किस लिए हताश है,

तू चल, तेरे वजूद की, समय को भी तलाश है।।

 

जला के भस्म कर उसे, जो क्रूरता का जाल है।।

तू आरती की लौ नहीं, तू क्रोध की मशाल है
तू खुद की खोज में निकल, तू किस लिए हताश है,

तू चल, तेरे वजूद की, समय को भी तलाश है

चूनर उड़ा के ध्वज बना, गगन भी कपकाएगा।
अगर तेरी चूनर गिरी, तो एक भूकंप आएगा

तू खुद की खोज में निकल, तू किस लिए हताश है,
तू चल, तेरे वजूद की, समय को भी तलाश है

 

 

 

 

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ-gopal das neeraj

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ..

तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

 

हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते..
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

 

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
सौ बार म्रत्यु के गले चूम आया हूं..
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. 

 

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है..
शोलो से ही श्रृंगार पथिक का होता है..
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
पग में गति आती है, छाले छिलने से..
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो.. 

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. 

 

फूलों से जग आसान नहीं होता है..
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है..
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती भी..
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो.. 

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. 

 

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
मैं ठोकर उसे लगाकर बढता जाता..
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
तुम मेरा मन-मानस पाशाण करो.. 

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूँ..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..

 

 

 

 

 

 

Asha Ka Deepak

मंजिल दूर नहीं है – रामधारी सिंह दिनकर

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है;
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

 

चिनगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से;
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण – चिह्न जगमग – से।
शुरू हुई आराध्य-भूमि यह, क्लान्ति नहीं रे राही;
और नहीं तो पाँव लगे हैं, क्यों पड़ने डगमग – से?

बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है;
थककर बैठ गयें क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

 

अपनी हड्डी की मशाल से हॄदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का।
एक खेय है शेष किसी विधि पार उसे कर जाओ;
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।

आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

 

दिशा दीप्त हो उठी प्राप्तकर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा ही उच्छवास तुम्हारा।

और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गयें क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।

 

 

 

तुम मुझको कब तक रोकोगे

मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं।
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं..

कुछ कर जाएं।।

सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे..
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे
अपनी हद रौशन करने से,तुम मुझको कब तक रोकोगे..
तुम मुझको कब तक रोकोगे।।

 

मैं उस माटी का वृक्ष नहीं, जिसको नदियों ने सींचा है।
बंजर माटी में पलकर मैंने, मृत्यु से जीवन खींचा है।।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ, शीशे से कब तक तोड़ोगे..
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ, शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे..
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे।।

 

इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है।
तानों  के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है।।
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकड़ फेंकोगे..
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकड़ फेंकोगे
चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं,
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे..
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे।।

झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शौक नहीं।
अपने ही हाथों रचा स्वयं, तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं।।
तुम हालातों की भट्टी में, जब-जब भी मुझको झोंकोगे..
तुम हालातों की भट्टी में, जब-जब भी मुझको झोंकोगे
तब तपकर सोना बनूंगा मैं,
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे..
तुम मुझको कब तक रोक़ोगे।।

 

वह खून कहो किस मतलब का (खूनी हस्‍ताक्षर)

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।

 

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!

 

उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाला चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है”

यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”

हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।

हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण करना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युवक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।

 

रामधारी सिंह दिनकर की Motivational कविता- ‘वीर’

सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।

मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शुलों का मूळ नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।

गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।

 

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है?

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीदे-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिक़ोँ का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

है लिये हथियार दुश्मन, ताक में बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं; सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली, गर वतन मुश्किल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हाथ, जिन में हो जुनूँ, कटते नहीं तलवार से;
सर जो उठ जाते हैं वो, झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला, सा हमारे दिल में है;
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

हम तो निकले ही थे घर से, बाँधकर सर पे कफ़न
जाँ हथेली पर लिये लो, बढ चले हैं ये कदम।
जिन्दगी तो अपनी महमाँ, मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल, कह रहा है बार-बार;
क्या तमन्ना-ए-शहादत, भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब;
होश दुश्मन के उड़ा, देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाये जो हमसे, दम कहाँ मंज़िल में है
वह जिस्म भी क्या जिस्म है, जिसमें न हो ख़ून-ए-जुनूँ;
तूफ़ानों से क्या लड़े जो, कश्ती-ए-साहिल में है।

सरफ़रोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है;
देखना है ज़ोर कितना, बाज़ु-ए-कातिल में है।
-पंडित रामप्रसाद बिस्मिल

 

चलना हमारा काम है / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

गति प्रबल पैरों में भरी, फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
, है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ
,
तब तक मुझे न विराम है
,चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया
, कुछ सुन लिया,
कुछ बोझ अपना बँट गया
, अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
, क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है
, चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
, पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा
, हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध
, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रहार में
, किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह
, किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ
, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में
, दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे
?, जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम
,
उसी की सफलता अभिराम है
,
चलना हमारा काम है।

फकत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
मूंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
सुधा-मिक्ष्रित गरल
,
वह साकिया का जाम है
,
चलना हमारा काम है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

अग्निपथ - हरिवंश राय बच्चन

वृक्ष हों भले खड़े
हों घने, हों बड़े
एक पत्र छाँह भी
मांग मत! मांग मत! मांग मत!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

तू न थकेगा कभी
तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से
लथ-पथ! लथ-पथ! लथ-पथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तुम चलो तो सही- Narendra Verma

राह में मुश्किल होगी हजार,

तुम दो कदम बढाओ तो सही,

हो जाएगा हर सपना साकार,

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

 

मुश्किल है पर इतना भी नहीं, कि तू कर ना सके,

दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं,

कि तु पा ना सके,

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

 

एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा,

तुम्हारा भी सत्कार होगा,

तुम कुछ लिखो तो सही,

तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही,

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

 

सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे,

तुम एक राह चुनो तो सही,

तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही,

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे,

जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे,

गिरते पड़ते संभल जाओगे,

फिर एक बार तुम जीत जाओगे।

तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।

 

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, -दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए


नर हो, न निराश करो मन को/मैथिलीशरण गुप्त

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को


संभलो कि सुयोग न जाय चला

कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला

समझो जग को न निरा सपना

पथ आप प्रशस्त करो अपना

अखिलेश्वर है अवलंबन को

नर हो, न निराश करो मन को

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ

तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो

उठके अमरत्व विधान करो

दवरूप रहो भव कानन को

नर हो न निराश करो मन को


निज गौरव का नित ज्ञान रहे

हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे

मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे

सब जाय अभी पर मान रहे

कुछ हो न तज़ो निज साधन को

नर हो, न निराश करो मन को

 

प्रभु ने तुमको दान किए

सब वांछित वस्तु विधान किए

तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो

फिर है यह किसका दोष कहो

समझो न अलभ्य किसी धन को

नर हो, न निराश करो मन को 


किस गौरव के तुम योग्य नहीं

कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं

जान हो तुम भी जगदीश्वर के

सब है जिसके अपने घर के 

फिर दुर्लभ क्या उसके जन को

नर हो, न निराश करो मन को 

करके विधि वाद न खेद करो

निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो

बनता बस उद्‌यम ही विधि है

मिलती जिससे सुख की निधि है

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो

 

कोशिश कर, हल निकलेगा – Anand Param

कोशिश कर, हल निकलेगा,

आज नही तो, कल निकलेगा।

 

अर्जुन सा लक्ष्य रख, निशाना लगा,

मरुस्थल से भी फिर, जल निकलेगा।

मेहनत कर, पौधों को पानी दे,

बंजर में भी फिर, फल निकलेगा।

 

ताकत जुटा, हिम्मत को आग दे,

फौलाद का भी, बल निकलेगा।

सीने में उम्मीदों को, ज़िंदा रख,

समन्दर से भी, गंगाजल निकलेगा।

 

कोशिशें जारी रख, कुछ कर गुज़रने की,

जो कुछ थमा-थमा है, चल निकलेगा।

कोशिश कर, हल निकलेगा,

आज नही तो, कल निकलेगा।

 

क्यों डरता है - नरेंद्र वर्मा

कोने में बैठ कर क्यों रोता है,
यू चुप चुप सा क्यों रहता है।

आगे बढ़ने से क्यों डरता है,
सपनों को बुनने से क्यों डरता है।

तकदीर को क्यों रोता है,
मेहनत से क्यों डरता है।

झूठे लोगो से क्यों डरता है,
कुछ खोने के डर से क्यों बैठा है।

हाथ नहीं होते नसीब होते है उनके भी,
तू मुट्ठी में बंद लकीरों को लेकर रोता है।

भानू भी करता है नित नई शुरुआत,
सांज होने के भय से नहीं डरता है।

मुसीबतों को देख कर क्यों डरता है,
तू लड़ने से क्यों पीछे हटता है।

किसने तुमको रोका है,
तुम्ही ने तुम को रोका है।

भर साहस और दम, बढ़ा कदम,
अब इससे अच्छा कोई न मौका है।

 

 

 

 

 

 

 

 

टूटा पहिया – Dharambir Bharti

मैं

रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ

लेकिन मुझे फेंको मत !

क्या जाने कब

इस दुरूह चक्रव्यूह में

अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ

कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय !

अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी

बड़े-बड़े महारथी

अकेली निहत्थी आवाज़ को

अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें

तब मैं

रथ का टूटा हुआ पहिया

उसके हाथों में

ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ !

मैं रथ का टूटा पहिया हूँ

लेकिन मुझे फेंको मत

इतिहासों की सामूहिक गति

सहसा झूठी पड़ जाने पर

क्या जाने

सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !

 

धर्मवीर भारती

 

 

 

रुके न तू – हरिवंश राय बच्चन

 

धरा हिला, गगन गुँजा

नदी बहा, पवन चला

विजय तेरी, विजय तेरीे

ज्योति सी जल, जला

भुजा–भुजा, फड़क–फड़क

रक्त में धड़क–धड़क

 

धनुष उठा, प्रहार कर

तू सबसे पहला वार कर

अग्नि सी धधक–धधक

हिरन सी सजग सजग

सिंह सी दहाड़ कर

शंख सी पुकार कर

 

रुके न तू, थके न तू

झुके न तू, थमे न तू

सदा चले, थके न तू

रुके न तू, झुके न तू

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हम होंगे कामयाब एक दिन

होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन।
हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।

रवीन्द्रनाथ टैगोर

 

जो बीत गई -हरिवंश राय बच्चन

जो बीत गई सो बात गई!, जीवन में एक सितारा था

माना, वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया;

अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे,

कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहाँ मिले;

पर बोलो टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है!

जो बीत गई सो बात गई!

 

जीवन में वह था एक कुसुम,

थे उस पर नित्य निछावर तुम,

वह सूख गया तो सूख गया; मधुवन की छाती को देखो,

सूखीं कितनी इसकी कलियाँ, मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ जो मुरझाईं फिर कहाँ खिलीं; पर बोलो सूखे फूलों पर

कब मधुवन शोर मचाता है; जो बीत गई सो बात गई!

जीवन में मधु का प्याला था,तुमने तन-मन दे डाला था,

वह टूट गया तो टूट गया; मदिरालय का आँगन देखो,

कितने प्याले हिल जाते हैं, गिर मिट्टी में मिल जाते हैं,

जो गिरते हैं कब उठते हैं; पर बोलो टूटे प्यालों पर

कब मदिरालय पछताता है! जो बीत गई सो बात गई!

 

मृदु मिट्टी के हैं बने हुए,मधुघट फूटा ही करते हैं,

लघु जीवन लेकर आए हैं, प्याले टूटा ही करते हैं,

फिर भी मदिरालय के अंदर

मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं, जो मादकता के मारे हैं

वे मधु लूटा ही करते हैं; वह कच्चा पीने वाला है

जिसकी ममता घट-प्यालों पर,

जो सच्चे मधु से जला हुआ, कब रोता है, चिल्लाता है!

जो बीत गई सो बात गई!

 

मनुष्यता -मैथिलीशरण गुप्त

विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸|

मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।

 हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸

मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।

 यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

 

 उसी उदार की कथा सरस्वती बखानवी¸

उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।

 उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;

तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।

 अखण्ड आत्मभाव जो असीम विश्व में भरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे।।

 

 सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही;

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।

 विरूद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा¸

विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहे?

अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸

वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

 

 अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸

समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।

 परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸

अभी अमर्त्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।

 रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

 

मनुष्य मात्र बन्धु है यही बड़ा विवेक है¸

पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।

फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸

परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।

अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

 

चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸

विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।

घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

 

रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में

संत जन आपको करो न गर्व चित्त में

अन्त को है यहाँ त्रिलोकनाथ साथ में

दयालु दीन बन्धु के बडे विशाल हाथ हैं

अतीव भाग्यहीन है अंधेर भाव जो भरे

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

 

बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा।

 क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा।

 क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,

पावस बनकर ढ़लना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,

प्रखर प्यार से वंचित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुबन,

परहित अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,

जलना होगा, गलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

 

Atal Bihari Vajpeyi

 

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के | प्रदीप

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के

पासे सभी उलट गए दुश्मन की चाल के

अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के

 मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के

 सदियों के बाद फ़िर उड़े बादल गुलाल के

 हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के

 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

 

तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के

इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

 देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा

 इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा

 रक्खा है ये चिराग़ शहीदों ने बाल के

 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

 दुनियाँ के दांव पेंच से रखना न वास्ता

मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता

 भटका न दे कोई तुम्हें धोखे में डाल के

 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनियाँ

 

 बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनियाँ

 तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के

 इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

आराम की तुम भूल-भुलैया में न भूलो

सपनों के हिंडोलों में मगन हो के न झूलो

अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलों

उठो छलांग मार के आकाश को छू लो

तुम गाड़ दो गगन में तिरंगा उछाल के

इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

 

नरेंद्र वर्मा की मोटिवेशनल Poem

तुम मन की आवाज सुनो

तुम मन की आवाज सुनो,

जिंदा हो, ना शमशान बनो,

पीछे नहीं आगे देखो,

नई शुरुआत करो।

मंजिल नहीं, कर्म बदलो,

कुछ समझ ना आए,

तो गुरु का ध्यान करो,

तुम मन की आवाज सुनो।

लहरों की तरह किनारों से टकराकर,

मत लौट जाना फिर से सागर,

साहस में दम भरो फिर से,

तुम मन की आवाज सुनो।

सपनों को देखकर आंखें बंद मत करो,

कुछ काम करो,

सपनों को साकार करो,

तुम मन की आवाज सुनो।

इम्तिहान होगा हर मोड़ पर,

हार कर मत बैठ जाना किसी मोड़ पर,

तकदीर बदल जाएगी अगले मोड़ पर,

तुम अपने मन की आवाज सुनो।

 

जीवन जीने की प्रेरणा देने वाली कविता

जीवन देने वाली Motivational Poems in Hindi इस प्रकार है:

 

घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,

तू रुख हवाओं का मोड़ दे,

हिम्मत की अपनी कलम उठा,

लोगों के भरम को तोड़ दे,

तू छोड़ ये आंसू उठ हो खड़ा,

मंजिल की ओर अब कदम बढ़ा,

हासिल कर इक मुकाम नया,

पन्ना इतिहास में जोड़ दे,

घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,

तू रुख हवाओं का मोड़ दे,

हिम्मत की अपनी कलम उठा,

लोगों के भरम को तोड़ दे।

 

उठना है तुझे नहीं गिरना है,

जो गिरा तो फिर से उठना है,

अब रुकना नहीं इक पल तुझको,

बस हर पल आगे बढ़ना है,

राहों में मिलेंगे तूफ़ान कई,

मुश्किलों के होंगे वार कई,

इन सबसे तुझे न डरना है,

तू लक्ष्य पे अपने जोर दे,

घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,

तू रुख हवाओं का मोड़ दे,

हिम्मत की अपनी कलम उठा,

लोगों के भरम को तोड़ दे।

 

चल रास्ते तू अपने बना,

छू लेना अब तू आसमान,

धरती पर तू रखना कदम,

बनाना है अपना ये जहाँ,

किसी के रोके न रुक जाना तू,

लकीरें किस्मत की खुद बनाना तू,

कर मंजिल अपनी तू फतह,

कामयाबी के निशान छोड़ दे,

घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,

तू रुख हवाओं का मोड़ दे,

हिम्मत की अपनी कलम उठा,

लोगों के भरम को तोड़ दे।

 

UPSC Motivational Poem in Hindi

ये राह के मुशाफिर तू चला चल

रुक क्यू जाता है मंजिल की तलाश में

तू एक बार ही सही सोच लिया कर

क्या है तेरी मंजिल ये पता कर

ये राह के मुशाफिर तू चला चल

 

सब रोकेंगे तुझे टोकेंगे तुझे

तू ये ना कर तू वो ना कर बोलेंगे तुझे

पर तु ठहरना ना एक पल के लिये

देख अपनी मंजिल की राह

बस चला चल चला चल चला चल

 

पैर अगर थक जाये मन अगर बैठ जाये

सर पर तेज धुप हो राह में काटे खूब हो

दिन हो रात हो ठण्ड हो या बरसात हो

दरिया हो समुंद्र हो या सामने पहाड़ हो

देख इन्हें घबराना ना

ये राह के मुशाफिर तू रुक जाना ना

 

मुस्किले आयेंगी अपनों की याद सतायेगी

जब भी तू मंजिल के करीब होगा ये बहुत बड़ जायेंगी

पर तुम उन्हे छोड़ कर मुँह मोड़ कर चलते रहना अपनी राह पे

पा जायेगा एक दिन अपनी मंजिल को

बस रुक ना जाना याद में

ये राह के मुशाफिर तू चला चल

 

सच हम नहीं सच तुम नहीं: जगदीश गुप्त

सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

सच है सतत संघर्ष ही।

संघर्ष से हटकर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।

जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त से झरकर कुसुम।

जो पन्थ भूल रुका नहीं,

जो हार देख झुका नहीं,

जिसने मरण को भी लिया हो जीत है जीवन वही।

सच हम नहीं, सच तुम नहीं ।

ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे।

जो है जहाँ चुपचाप अपने आप से लड़ता रहे।

जो भी परिस्थितियाँ मिलें,

काँटे चुभें कलियाँ खिलें,

टूटे नहीं इनसान, बस सन्देश यौवन का यही।

सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

 

हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्यार को।

यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मँझधार को।

जो साथ फूलों के चले,

जो ढाल पाते ही ढले,

यह ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी जो सिर्फ़ पानी सी बही।

सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

अपने हृदय का सत्य अपने आप हमको खोजना।

अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना।

आकाश सुख देगा नहीं

धरती पसीजी है कहीं !

हए एक राही को भटककर ही दिशा मिलती रही।

सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

 

बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता।

आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्नता।

जब तक बँधी है चेतना

जब तक प्रणय दुख से घना

तब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सही।

सच हम नहीं, सच तुम नहीं।

 

 

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों: गोपालदास "नीरज"

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों

कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

 

सपना क्या है, नयन सेज पर

सोया हुआ आँख का पानी

और टूटना है उसका ज्यों

जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों

कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है

खुद ही हल हो गयी समस्या

आँसू गर नीलाम हुए तो

समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों

कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

 

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर

केवल जिल्द बदलती पोथी

जैसे रात उतार चांदनी

पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!

चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं,

शिकन न आई पनघट पर,

लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,

चहल-पहल वो ही है तट पर,

तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!

लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

 

लूट लिया माली ने उपवन,

लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,

तूफानों तक ने छेड़ा पर,   

खिड़की बन्द न हुई धूल की,

नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!

कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

 

 

क्या खोजते हो दुनिया में,

जब सब कुछ तेरे अन्दर है।

क्यों देखते हो औरों में,

जब तेरा मन ही दर्पण है।

 

दुनिया बस एक दौड़ नहीं,

तू भी अश्व नहीं है धावक।

रुक कर खुद से बातें करले,

अन्तर मन को शान्त तो करले।

 

सपनों की गहराई समझो,

अपने अन्दर की अच्छाई समझो।

स्वाध्याय की आदत डालो,

जीवन को तुम खुलकर जीलो।

 

आलस्य तुम्हारा दुश्मन है तो,

पुरुशार्थ को अपना दोस्त बनालो।

जीवन का ये रहस्य समझलो,

और खुशीयों से तुम नाता जोड़ो।

 

Motivational Poem in Hindi –

जीवन में दुख भी आने हैं,

और आके एक दिन जाना है।

जब समय चक्र बदल जाये,

पल में सब काम बिगड़ जाये।

धोका अपनों से मिल जाये,

हर ओर संकट के बादल छा जाये।

 

तब बन्द करो तुम आँखों को,

कुछ पल खुद में खो जाओ।

शक्ति बजरंग बली से है तुम में,

उस शक्ति का तुम ध्यान करो।

 

श्रीराम को भी वनवास हुआ,

पर धैर्य को संग में साधा था।

फिर समय का पहिया घूमेगा,

लक्ष्यों पर केन्द्रित ध्यान करो

और बाणों का संधान करो।

बुरे समय से जो कुछ सीखा है,

उन बातों का सम्मान करो।

 

तुम उठो वीर स्वाभीमानी से,

तुम चढो सफलता की सीढी।

अडिग रहे जो तुम विपरीत काल में,

अब उसके फल का स्वाद चखो।

हर युग में नायक बनते हैं,

इस युग के तुम नायक हो।

समय चक्र तो चलता है,

तुम हर समय का सम्मान करो।

 

Motivational Poem in Hindi -

कर्मपथ पर तुमको बढना है वीरों जैसा,

राह में मुश्किल आनी है,

धीरज हो मुनियों जैसा।

ठोकर लगनी निश्चित है,

तुम तब भी अडिग रहो पर्वत जैसे।

चाहे शेर जैसा प्रतिद्वन्दी हो,

तुम निडर रहो योद्धा जैसे।

 

पुरूषार्थ को तुम साधलो,

दिन हो या रात हो,

चाहे ना कोई साथ हो,

तब भी नदी से तुम अविरल बहो।

 

संकल्प की मजबूत एक डोर हो,

जिससे तुम बन्धे रहो।

ज्ञान को तुम सहेज लो,

उग्र तुम बनो नहीं।

 

कर्म योनी में जन्म लिया,

कर्म योगी बने रहो।

लक्ष्य पर बने रहो,

लक्ष्य भेदते रहो।

Motivational Poem in Hindi

सपनों  का एक सागर है,

सागर में गहराई है,

कोई ना इसको नाप है पाया।

 

तेरे सपने तेरी मंजिल,

तुझको ही तय करनी है।

छोर मिलेगा उसको ही,

जिसने हिम्मत करली है।

तूफान यहाँ हैं पग-पग पर,

निराशा के हैं ज्वार बहुत।

तेरे सपने, तेरी हिम्मत है,

बदलेगा ये दुनिया तू।

 

आज निकलजा अन्धियारे में,

कल का सूरज तेरा है।

सपनों के इस सागर में,

सपनों का एक जाल भी है।

ध्यान रहे तू अर्जन है,

एक लक्ष्य ही तेरा सब कुछ है।

लहरों से टकराना  है,

उनसे भी ऊपर उठ जाना है।

कल जो आने वाला है,

उसको अपना बनाना है।

Motivational Poem in Hindi

वक्त है बदल जायेगा,

कल का सूरज नया जोश लायेगा।

हालतो से लड़ रहे हो भले,

कल यह दिन भी बदल जायेगा।

 

जिंदगी यूँही रंग बदलती रहेगी,

आज का बनाया, कल खो जायेगा।

जो मन में रहेगी आशा,

तो हर पल मुस्करायेगा।

 

जो खोया था कल में,

वह भी खोज लायेगा,

जुड़ने, बिखरनें से फिर तू ना घबरायेगा,

सफलता-असफलता सभी को अपनायेगा.

 

आगे हे बढना, बढते ही जाना,

राहो की ठोकर से कभी न घबराना।

धूप और छाव आते जाते रहेगें,

संकल्प पथ से तनिक ना भटकना।

संकल्प पथ से तनिक ना भटकना।।

 

 

 

 

 

 

 

 

हार के पीछे जीत छुपी है

तेरे कर्मो पे तेरी तकदीर टिकी है ।

हिम्मत न हार बस आगे बढ़

हर रात के पीछे सुबह खडी है ।

रख हौसलों में इतना दम

के दुखों की कमर तोड़ दे 

जिस पथ पे कांटे हो बिछे

उस पथ पे कलिया बिखेर दे 

न बाल बांका कर सके

तेरा कोई  कहीं कभी 

तू ऐसी एक चट्टान बन

जो शत्रुओं का रास्ता रोक दे 

तू याद बस अपना लक्ष्य रख

बनके अर्जुन तरकश तैयार रख 

ज़िन्दगी की रुकावटो को

अपने हित में लेके चल 

न मिले जीत कोई बात नहीं

अपनी हार से सीख लेके चल 

जीवन एक परीक्षास्थल है

यहाँ कोई उत्तीर्ण तो कोई विफल है 

तेरी  हार में भी जीत है

एक तजुर्बा, एक विश्वास है 

तू फिर से उठ और कोशिश कर

बढ़के आगे अपनी जीत हासिल कर   ।।

 

 

 

 

 

कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा

तू शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से तू कभी ना डर
उड़ा के दुश्मनों का सर, जोश-ए-वतन बढ़ाये जा
कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा

तेरी हिम्मत बढ़ती रहे, खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे अड़े, तो ख़ाक में मिलाये जा
कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा

चलो दिल्ली पुकार के, गम-ए-निशां सम्भाल के
लाल किले पे गाड़ के, लहराये जा, लहराये जा
कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा

कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा

"Qadam Qadam Badhaye Ja" (Hindi: क़दम क़दम बढ़ाये जाUrdu: قدم قدم بڑھائے جا) was the regimental quick march of Indian National Army. Written by Vanshidhar Shukla and composed by Ram Singh Thakuri in 1942, it was banned by the British in India after World War II as seditious. The ban was lifted in August 1947 and the song has since become a patriotic anthem in India. It has been re-interpreted by various Indian musicians including C. RamachandraA. R. Rahman and recently by Indraadip Dasgupta in the film Gumnaami (2019) by Srijit Mukherji.

 

 

 

 

 

 

 

पीयूष मिश्रा का मशहूर गीत- आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड

पीयूष मिश्रा

Kavita

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है,
विश्व की पुकार है ये भगवत का सार है की
युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!!
कौरवों की भीड़ हो या पाण्डवों का नीर हो
जो लड़ सका है वही तो महान है !!!
जीत की हवस नहीं किसी पे कोई बस नहीं क्या
ज़िन्दगी है ठोकरों पर मार दो,
मौत अन्त हैं नहीं तो मौत से भी क्यों डरे
ये जाके आसमान में दहाड़ दो !
 

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार को वो घाव तुम ये सोच लो,
या की पूरे भाल पर जला रहे वे जय का लाल,
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो,
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो
या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो !!
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो
प्रेम गीत उस कवि को आज तुम नकार दो,
भीगती नसों में आज फूलती रगों में
आज आग की लपट तुम बखार दो  !!!
 

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

sanskrit Vocabulary