NCERT Class 8th
Hindi Chapter 4 हरिद्वार Question
Answer
पाठ से प्रश्न- अभ्यास
(पृष्ठ 49-58)
आइए, अब हम इस पत्र
को थोड़ा और विस्तार से समझते हैं। नीचे दी गई गतिविधियाँ इस कार्य में आपकी
सहायता करेंगी।
मेरी समझ से
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के
सम्मुख तारा (*) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
प्रश्न-
प्रश्न 1.
“सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने
से फल देते हैं” का क्या अर्थ है?
(क) लेखक के अनुसार सज्जन
लोग बिना पूछे स्वादिष्ट रसीले फल देते हैं।
(ख) लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप
में व्यक्त कर रहे हैं।
(ग) लेखक का मानना था कि हरिद्वार के सभी
दुकानदार बहुत सज्जन थे।
(घ) लेखक को पत्थर मारकर पके
हुए फल तोड़कर खाना पसंद था।
उत्तर:
(ग) लेखक का मानना था कि
हरिद्वार के सभी दुकानदार बहुत सज्जन थे।
प्रश्न 2.
“वैराग्य और भक्ति का उदय
होता था” इस कथन से लेखक का कौन-सा भाव प्रकट होता है?
(क) शारीरिक थकान और मानसिक
बेचैनी
(ख) आर्थिक संतोष और मानसिक
विकास
(ग) मानसिक शांति और
आध्यात्मिक अनुभव
(घ) सामाजिक सद्भाव और
पारिवारिक प्रेम
उत्तर:
(ग) मानसिक शांति और
आध्यात्मिक अनुभव
प्रश्न 3.
“पत्थर पर का भोजन का सुख
सोने की थाल से बढ़कर था” इस वाक्य का सर्वाधिक उपयुक्त निष्कर्ष क्या है?
(क) संतुष्टि में सुख होता
है।
(ख) सुखी लोग पत्थर पर भोजन
करते हैं।
(ग) लेखक के पास सोने की
थाली नहीं थी ।
(घ) पत्थर पर रखा भोजन अधिक
स्वादिष्ट होता है।
उत्तर:
(क) संतुष्टि में सुख होता
है।
प्रश्न 4.
“एक दिन मैंने श्री गंगा जी
के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।” यह प्रसंग
किस मूल्य को बढ़ावा देता है ?
(क) अंधविश्वास और लालच
(ख) मानवता और देशप्रेम
(ग) सादगी और आत्मनिर्भरता
(घ) स्वच्छता और प्रकृति
प्रेम
उत्तर:
(घ) स्वच्छता और प्रकृति
प्रेम
प्रश्न 5.
लेखक का हरिद्वार अनुभव मुख्यतः किस प्रकार का
था?
(क) राजनीतिक
(ख) आध्यात्मिक
(ग) सामाजिक
(घ) प्राकृतिक
उत्तर:
(ख) आध्यात्मिक
(घ) प्राकृतिक
प्रश्न 6.
पत्र की भाषा का एक मुख्य लक्षण क्या है?
(क) कठिन शब्दों का प्रयोग
और बोझिलता
(ख) मुहावरों का अधिक प्रयोग
(ग) सरलता और चित्रात्मकता
(घ) जटिलता और संक्षिप्तता
उत्तर:
(ग) सरलता और चित्रात्मकता
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने
अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही
क्यों चुनें?
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
मिलकर करें मिलान
पाठ से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आपस में चर्चा कीजिए और इनके उपयुक्त
संदर्भों से इनका मिलान कीजिए-
उत्तर:
|
शब्द |
संदर्भ |
|
1. हरिद्वार |
3. यह भारत के
उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को
छोड़कर मैदान में आती है। |
|
2. गंगा |
5. यह भारतवर्ष
की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर लगभग 1560 मील पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में
गिरती है। इसके अनेक नाम हैं, जैसे- भागीरथी, त्रिपथगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, सुरनदी आदि । |
|
3. भगीरथ |
6. ये अयोध्या के
प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी
पर लाए थे। इसीलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है। |
|
4. चण्डिका |
1. मान्यताओं के
अनुसार दुर्गा का एक रूप। |
|
5. भागवत |
2. यह अठारह
पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण संबंधी
कथाएँ हैं। |
|
6. दालचीनी |
4. यह एक पेड़ का
नाम है। यह दक्षिण भारत में बहुतायत से मिलता है। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और
मसाले के काम में आती है। इसे दारचीनी भी कहते हैं। |
मिलकर करें चयन
(क) पाठ से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं।
प्रत्येक वाक्य के सामने दो-दो निष्कर्ष दिए गए हैं – एक सही और एक भ्रामक । अपने
समूह में इन पर विचार कीजिए और उपयुक्त निष्कर्ष पर सही का चिह्न लगाइए।
उत्तर:
|
पंक्ति |
निष्कर्ष |
|
1. पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ
मनोरथों की भाँति फैलकर लह- लहा रही है। |
|
|
2. बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े
तपस्या करते हैं। और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं। |
|
|
3. इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के
दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं। |
|
|
4. जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो
चीनी के पने को बरफ में जमाया है। |
|
|
5. एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही
पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया। |
|
|
6. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा । |
|
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन
पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए-
(क) “यहाँ की कुशा सबसे विलक्षण होती है जिसमें
से दालचीनी, जावित्री इत्यादि की अच्छी सुगंध आती है। मानो यह प्रत्यक्ष प्रगट होता है कि
यह ऐसी पुण्यभूमि है कि यहाँ की घास भी ऐसी सुगंधमय है।”
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ है कि हरिद्वार की
कुशा घास बहुत ही अनोखी और विशेष है। इस घास से दालचीनी और जावित्री जैसी मसालों
की तेज़ और मनमोहक खुशबू आती है।
लेखक यह कहना चाहते हैं कि यह सुगंध इतनी अद्भुत और स्पष्ट है कि ऐसा लगता है
मानो यह सीधे-सीधे यह प्रकट कर रही हो कि यह जगह कोई साधारण भूमि नहीं बल्कि एक
पवित्र और पुण्यमयी भूमि है। इतनी पवित्र कि यहाँ की सामान्य घास में भी इतनी
दिव्य सुगंध है।
(ख) “अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं जिनसे अर्थी
विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का
मनोर्थ पूर्ण करते हैं।’
उत्तर:
ये पंक्तियाँ वृक्षों की महिमा का वर्णन करती
हैं। लेखक कहता है कि इनका जन्म धन्य है जिससे याचना करने वाले कभी खाली हाथ वापस
नहीं जाते हैं। वृक्ष हमें फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़ प्रदान तो करते ही हैं साथ ही जलने के बाद
इनसे बने कोयले और राख (भस्म) भी हमारे मनोरथ को पूरा करते हैं। प्रस्तुत
पंक्तियों में वृक्षों की परोपकारिता साफ-साफ झलकती हैं।
सोच-विचार के लिए
पाठ को पुनः ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए।
(क) “ और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ
……..”
लेखक का यह वाक्य क्या दर्शाता है ? क्या आपने कभी किसी स्थान को छोड़कर ऐसा अनुभव
किया है? कब-कब?
(संकेत – किसी स्थान से
लौटने के बाद भी उसी के विषय में सोचते रहना)
उत्तर:
यह वाक्य लेखक की गहरी भावनात्मक जुड़ाव और
हरिद्वार के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है। पंक्ति का अर्थ है कि लेखक शारीरिक
रूप से भले ही कहीं और हों, लेकिन उनका मन, उनकी भावनाएँ और उनकी चेतना अभी भी हरिद्वार की
पावन और सुगंधमय भूमि में ही बसी हुई हैं। हाँ, मैंने भी किसी स्थान को छोड़कर ऐसा ही अनुभव
किया है। एक बार मैं ऋषिकेश गया था ।
वहाँ की प्राकृतिक छटा को देखकर मैं आत्मविभोर हो गया। जब मैं वापस घर लौटा तो
मेरा मन नहीं लग रहा था। मेरे दिमाग से ऋषिकेश की प्राकृतिक सुंदरता का चित्र
निकलता ही नहीं था । ऐसा लगता था मानो मेरा शरीर ही घर पर है और मन ऋषिकेश में।
मैं जब- जब घर से बाहर किसी रमणीक जगह पर घूमने गया तब-तब वापस आने के बाद ऐसा
अनुभव होता रहा ।
(ख) “पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक
पैसे को लाख करके मान लेते हैं।”
लेखक का यह कथन आज के समाज में कितना सच है? क्या अब भी ऐसे संतोषी लोग मिलते हैं? अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए ।
उत्तर:
आज के समाज में यह कथन आंशिक रूप से सच है। कुछ
लोग वाकई में सादा जीवन, संतोष और आध्यात्मिकता में विश्वास रखते हैं, लेकिन बहुत बार संतोष का दिखावा किया जाता है।
पहाड़ों या गाँव में रहने वाले कई शिक्षक, किसान या साधु कम संसाधनों में भी खुश रहते हैं, लेकिन कई बार पंडे नाम मात्र की दक्षिणा मिलने
पर भी ऊपर से संतोष प्रकट करते हैं, पर मन में असंतोष रखते हैं।
(ग) “मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले
पर टिका था। यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है।”
आपके विचार से लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने
योग्य’ क्यों कहा है? उस स्थान में कौन-कौन सी विशेषताएँ होंगी जो उसे ‘टिकने
योग्य’ बनाती होंगी? (संकेत – केवल आराम, सुविधा या कोई और कारण भी ।)
उत्तर:
लेखक ने दीवान कृपा राम के बंगले को ‘टिकने
योग्य’ इसलिए कहा है कि उसका बंगला हरिद्वार में था । हरिद्वार जैसे धार्मिक और
प्राकृतिक स्थल में स्थित होने के कारण बंगले का वातवरण शांतिपूर्ण और मन को सुकून
देने वाला था।
विशेषताएँ-
दीवान कृपा राम का बंगला हरिद्वार में था ।
हरिद्वार एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ गंगा नदी बहती है और अनेक धार्मिक
गतिविधियाँ होती रहती हैं। साथ ही हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता बरबस लोगों का
ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। इन सारी विशेषताओं के कारण दीवान कृपा राम के बंगले
को लेखक ने ‘टिकने योग्य’ बताया है।
(घ) “फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का
मनोर्थ पूर्ण करते हैं।’
इस वाक्य के माध्यम से आपको वृक्षों के महत्त्व
के बारे में कौन-कौन सी बातें सूझ रही हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत वाक्य के माध्यम से हमें वृक्षों के
महत्त्व के बारे में निम्नलिखित बातें सूझ रही हैं-
- संपूर्ण जीवन उपयोगी – वृक्ष का हर अंग जैसे- फल, फूल, पत्ते, बीज, लकड़ी, जड़, छाल आदि मनुष्य के लिए
किसी न किसी रूप में उपयोगी होता है।
- जलने के बाद भी उपयोगी – जब वृक्ष जलता है तब भी उसकी राख (भस्म) और
कोयले लोगों के काम आते हैं।
- पर्यावरण और सुखद वातावरण प्रदान करना-वृक्ष, छाया और गंध से भी लोगों को सुख देते हैं।
- त्याग और परोपकार का प्रतीक – वृक्ष बिना किसी स्वार्थ के दूसरों के लिए
फल-फूल देते हैं।
अनुमान और कल्पना से
(क) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से
घिरी है। कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार में हैं। आप वहाँ क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर:
मैं हरिद्वार में निम्नलिखित कार्य करना
चाहूँगा-
- गंगा स्नान करना – हर की पैड़ी पर सुबह- सुबह पवित्र गंगा नदी में स्नान
करूँगा । ऐसा माना जाता है कि इसमें आत्मा शुद्ध होती है और पापों से मुक्ति
मिलती है।
- गंगा आरती में भाग लेना-शाम के समय हर की पैड़ी पर होने वाली भव्य गंगा
आरती में भाग लेना एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव होता है। दीपों की रोशनी और
मंत्रों की ध्वनि मन को शांति देती है।
- मंदिर दर्शन
- मनसा देवी मंदिर और चंडी देवी मंदिर की यात्रा
करूँगा। ये मंदिर पहाड़ियों पर स्थित हैं,
जहाँ जाने के लिए रोपवे या पैदल रास्ता होता है।
- भरत माता मंदिर दक्षेश्वर महादेव मंदिर आदि भी देखना
चाहूँगा।
- स्थानीय व्यंजन चखना – हरिद्वार के प्रसिद्ध शुद्ध शाकाहारी भोजन जैसे –
कचौड़ी, जलेबी, आलू-पूड़ी और रबड़ी का
स्वाद लेना चाहूँगा ।
- स्थानीय बाज़ार घूमना – हरिद्वार के बाज़ारों से रुद्राक्ष, पूजा सामग्री, गंगाजल की बोतलें और
हस्तशिल्प खरीदना चाहूँगा ।
- आश्रमों का भ्रमण – शांति और साधना के लिए शांति कुञ्ज और पतंजलि योगपीठ
जैसे आश्रमों का भ्रमण करूँगा।
- गंगा किनारे बैठकर समय बिताना – गंगा किनारे बैठकर बहते जल की आवाज़ और
ठंडी हवा का आनंद लेना एक अलौकिक अनुभव होता है।
(ख) “जल के छलके पास ही ठंढे-ठंढे आते थे। ”
कल्पना कीजिए कि आप गंगा के तट पर हैं और पानी के छींटे आपके मुँह पर आ रहे हैं।
अपने अनुभवों को अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर:
मैं गंगा तट पर हूँ। सूरज की सुनहरी किरणें गंगा
के जल पर पड़कर उसे स्वर्णिम बना रही हैं। मैं गंगा तट पर बैठा हूँ और सामने से
आती ठंडी हवाएँ मेरे चेहरे को छू रही हैं। पानी की लहरें किनारे से टकरा रही हैं
और उनके हल्के छींटे मेरे मुख पर पड़ रहे हैं – जैसे माँ गंगा स्वयं मुझे आशीर्वाद
दे रही हों।
उन छींटों में एक अद्भुत ठंडक है, जो केवल शरीर को ही नहीं, बल्कि आत्मा को भी शीतल कर रही हैं। ऐसा लग रहा
है जैसे मन की सारी उलझनें, सारे दुःख, इस पवित्र जल में बहते जा रहे हैं। भीड़ के बीच भी मैं
स्वयं को अकेला अनुभव कर रहा हूँ – शांत, स्थिर और भीतर तक स्पर्शित।
(ग) “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार
करने लगें तो क्या होगा ?
उत्तर:
यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार
करने लगे तो निम्नलिखित बातें हो सकती हैं-
- वे हमसे बात करेंगे। शिकायत करेंगे कि हमने उन्हें बिना वजह क्यों काटा।
- वे अपने दुःख-दर्द, इच्छाएँ और भावनाएँ
व्यक्त करेंगे।
- फल देने से पहले कहेंगे – “ पहले पानी दो,
फिर फल लो।”
- हर पेड़ का एक ‘परिवार’ होगा – माँ – पेड़,
बच्चा-पौधा, दादा-वृक्ष।
- जंगलों में पंचायतें होंगी, फैसले लिए जाएँगे कि
कौन पेड़ कहाँ उगेगा या किसको कितनी धूप – पानी चाहिए।
- घरों के गमले में रहने वाले पौधे कहेंगे कि हमें खुले मैदान में रहना है, तंग गमले में नहीं। वे माली से कहेंगे कि हमें रोज़
पानी चाहिए ।
- वे मनुष्यों से कहेंगे कि हम ऑक्सीजन देते हैं, बदले में हमारी रक्षा करो।
(घ) “यहाँ पर श्री गंगा जी दो धारा हो गई हैं –
एक का नाम नील धारा, दूसरी श्री गंगा जी ही के नाम से।
इस पाठ में ‘गंगा’ शब्द के साथ ‘श्री’ और ‘जी’
लगाया गया है। आपके अनुसार उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा ?
उत्तर:
“गंगा” शब्द के साथ ‘श्री’
और ‘जी’ लगाने का उद्देश्य सम्मान, श्रद्धा और पूज्यता प्रकट करना है। लेखक ने ऐसा
निम्न कारणों से किया होगा-
- गंगा को देवी रूप में माना जाता है।
- श्रद्धा की भावना व्यक्त करने हेतु ।
- भाषा की मर्यादा और भावनात्मक जुड़ाव बताने हेतु।
- शुद्ध और भक्ति से युक्त शैली |
(ङ) कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार एक श्रवणबाधित
या दृष्टिबाधित व्यक्ति के साथ गए हैं। उसकी यात्रा को अच्छा बनाने के लिए कुछ
सुझाव दीजिए।
उत्तर:
श्रवणबाधित (सुनने में असमर्थ) व्यक्ति के साथ
यात्रा के सुझाव –
1. संकेतों और लिखित संचार का उपयोग करें-
·
आवश्यक सूचनाएँ जैसे – आरती का समय, दर्शन – स्थल, भोजन व्यवस्था लिखकर दें।
·
सांकेतिक भाषा का प्रयोग करें या मोबाइल ऐप की मदद लें।
2. दृष्टिगत सूचनाओं का महत्त्व बढ़ाएँ-
·
संकेत चिह्न आदि की मदद से स्थान की जानकारी दें।
·
किसी भी धार्मिक स्थल या स्थान के इतिहास को लिखित में दिखाएँ ।
3. सुरक्षा का ध्यान रखें-
·
भीड़-भाड़ वाले स्थानों में उन्हें साथ रखें ताकि वे दिशा भ्रम न हो जाएँ।
·
आपात स्थिति के लिए संपर्क विवरण एक कार्ड में लिखकर उनकी जेब में रखें।
* दृष्टिबाधित ( देखने में असमर्थ ) व्यक्ति के
साथ यात्रा के सुझाव-
1. साथ-साथ चलने की योजना बनाएँ-
·
उन्हें हाथ पकड़कर या कंधे पर हाथ रखवाकर सावधानी से चलाएँ, खासकर सीढ़ियों, घाटों और भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में ।
2. क्षव्य अनुभव को प्रोत्साहित करें-
·
गंगा की लहरों की आवाज़, मंदिरों की घंटियाँ, आरती का संगीत – इनका वर्णन करें, उन्हें सुनने के लिए प्रेरित करें।
3. वर्णनात्मक भाषा का प्रयोग करें-
·
“यहाँ गंगा का जल ठंडा है, हल्की हवा चल रही है, फूलों की खुशबू आ रही है …” जैसे विवरण देकर
उन्हें वातावरण का अनुभव कराएँ।
4. स्पर्श के अनुभव को शामिल करें-
·
मंदिर की दीवारें, घंटियाँ, जल, फूल – इन्हें छूने दें ताकि वे भावनात्मक रूप से जुड़ सकें।
लिखें संवाद
(क) “मेरे संग कल्लू जी मित्र भी परमानंदी थे।”
लेखक और कल्लू जी के बीच हरिद्वार यात्रा पर एक काल्पनिक संवाद लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
(ख) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से
घिरी है।
लेखक और प्रकृति के बीच एक कल्पनात्मक संवाद
तैयार कीजिए- जैसे पर्वत बोल रहे हों।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
‘है’ और ‘हैं’ का उपयोग
इन वाक्यों में रेखांकित शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-
- विशेष आश्चर्य का विषय यह है कि यहाँ केवल गंगा जी
ही देवता हैं, दूसरा देवता नहीं ।
- यों तो वैरागियों ने मठ मंदिर कई बना लिए हैं। आप जानते ही हैं कि
एकवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘है’ का प्रयोग किया जाता है और बहुवचन संज्ञा
शब्दों के साथ ‘हैं’ का। सोचिए, ‘गंगा’ शब्द एकवचन है, फिर भी इसके साथ ‘हैं’ क्यों लिखा गया है?
इसका कारण यह है कि कभी-कभी हम आदर-सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एकवचन संज्ञा
शब्दों को भी बहुवचन के रूप में प्रयोग करते हैं। इसे ‘आदरार्थ बहुवचन’ प्रयोग
कहते हैं। उदाहरण के लिए–
- मेरे पिता जी सो रहे हैं।
- भारत के प्रधानमंत्री भाषण दे रहे हैं।
अब ‘आदरार्थ बहुवचन’ को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों
की पूर्ति कीजिए-
प्रश्न 1.
प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं ………… वे अभी
सभा में उपस्थित ……….।
उत्तर:
हैं, हैं
स्कूल का सामान
प्रश्न 2.
माता – पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते ………., हमें उनका कहना मानना चाहिए ।
उत्तर:
हैं
प्रश्न 3.
मेरी बहन बाज़ार जा रही ………….. वहाँ से किताबें
ले आएगी।
उत्तर:
है
प्रश्न 4.
बाहर फेरीवाला ……….. ………… …………. बुला लाओ।
उत्तर:
जा रहा है, उसे
प्रश्न 5.
डाकिया जी आए ………। उन्हें भी बुला लाओ।
उत्तर:
हैं
प्रश्न 6.
आप तो बहुत दिन बाद …………..,
……….. का स्वागत है।
उत्तर:
आए हैं,
प्रश्न 7.
डॉक्टर साहब बहुत विद्वान …………..,
…………… से परामर्श लेना चाहिए ।
उत्तर:
हैं, उन
प्रश्न 8.
आपके माता-पिता कहाँ …………? क्या मैं ………. से मिल सकता हूँ?
उत्तर:
हैं, उन
प्रश्न 9.
ये हमारे हिंदी के अध्यापक ……….. हम ………. से
बहुत-कुछ सीखते-समझते हैं।
उत्तर:
हैं, उन
प्रश्न 10.
बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर ……… ……… ।
उत्तर:
रहा है
भावों की पहचान
प्रेम, संतोष, भक्ति, श्रद्धा, वैराग्य, आश्चर्य
करुणा, हास्य, शांति, परोपकार, दया, दुःख
नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। सोचिए कि इनमें कौन-सा भाव प्रकट हो रहा है? पहचानिए और चुनकर लिखिए-
प्रश्न 1.
उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल
के भोजन से कहीं बढ़ के था ।
उत्तर:
संतोषी, प्रेम
प्रश्न 2.
चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।
उत्तर:
श्रद्धा, भक्ति
प्रश्न 3.
पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं।
उत्तर:
हास्य, आश्चर्य
प्रश्न 4.
हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।
उत्तर:
शांति, करुणा
प्रश्न 5.
सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
उत्तर:
परोपकार, दया
काल की पहचान
“यहाँ हरि की पैड़ी नामक एक पक्का घाट है और यहीं
स्नान भी होता है।’
आप जानते ही होंगे कि काल के तीन भेद होते हैं- :- भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल । परस्पर चर्चा करके
पता लगाइए कि ऊपर दिए गए वाक्य में कौन-सा काल प्रदर्शित हो रहा है? सही पहचाना, यह वाक्य वर्तमान काल को प्रदर्शित कर रहा है।
(क) नीचे दी गई पाठ की इन पंक्तियों को पढ़कर
बताइए, इनमें क्रिया
कौन-से काल को प्रदर्शित कर रही है ? (भूतकाल / वर्तमान / भविष्य)
प्रश्न 1.
निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा ।
………………….
उत्तर:
भविष्य काल
प्रश्न 2.
यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी
है। ………………….
उत्तर:
वर्तमान काल
प्रश्न 3.
वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
………………….
उत्तर:
वर्तमान काल
प्रश्न 4.
चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। ………………….
उत्तर:
भूतकाल
प्रश्न 5.
मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर
टिका था। ………………….
उत्तर:
भूतकाल
(ख) अब इन वाक्यों के काल को अन्य कालों में
बदलकर लिखिए और नए वाक्य बनाइए ।
उत्तर:
1. वर्तमान काल
·
निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दे रहे हैं।
भूतकाल
·
निश्चय था कि आपने इस पत्र को स्थानदान दिया।
2. भूतकाल
·
यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी थी।
भविष्य काल
·
यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी होगी।
3. भूतकाल
·
वृक्ष ऐसे थे कि पत्थर मारने से फल देते थे।
भविष्य काल
·
वृक्ष ऐसे होंगे कि पत्थर मारने से फल देंगे।
4. वर्तमान काल
·
चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता है।
भविष्य काल
·
चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होगा।
5. वर्तमान काल
·
मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले में टिका हूँ।
भविष्य काल
·
मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले में टिकूँगा ।
पत्र की रचना
“और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ……….”
इस पंक्ति में लेखक संपादक महोदय को संबोधित करके अपनी बात लिख रहे हैं। आप
जानते ही होंगे कि पत्र जिस व्यक्ति के लिए लिखा जाता है, उसे संबोधित किया जाता है। पत्र के अंत में अपना
नाम लिखा जाता है ताकि पत्र पाने वाले को पता चल सके कि पत्र किसने लिखा है।
नीचे इस पत्र की कुछ विशेषताएँ दी गईं हैं। अपने समूह के साथ मिलकर इन
विशेषताओं से जुड़े वाक्यों से इनका मिलान कीजिए-
आप एक विशेषता को एक से अधिक वाक्यों से भी जोड़
सकते हैं।
उत्तर:
|
पत्र की विशेषताएँ |
पत्र से उदाहरण |
|
1. व्यक्तिपरकता-पत्र लेखन में लेखक के विचार, अनुभव और
भावनाएँ प्रमुख होते हैं। |
हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिकता, साधु-संन्यासियों का जीवन, नदी, पर्वत, जल, गंगा स्नान
आदि का अत्यंत विस्तार से वर्णन | |
|
2. संवादात्मकता-पत्र का रूप है; पाठक से सीधा
संवाद होता है। |
और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ… |
|
3. स्वाभाविक शैली-भाषा कृत्रिम नहीं होती; भावनाओं के
अनुरूप होती है। |
“ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया …” |
|
4. व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन-जहाँ लेखक अपने
वास्तविक अनुभव को साझा करता है। |
एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके …….. |
|
5. अभिवादन या संबोधन – पत्र का आरंभ, जिसमें
संबोधित व्यक्ति को आदरपूर्वक संबोधित किया जाता है। |
श्रीमान कविवचन सुधा संपादक महामहिम मित्रवरेषु ! |
|
6. हस्ताक्षर – लेखक अपने नाम या संबंध से पत्र
को समाप्त करता है। |
आपका मित्र – यात्री |
|
7. उपसंहार और निवेदन – लेखक पत्र समाप्त करता है
| और अपनी इच्छा
या निवेदन प्रकट करता है। |
और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…
निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। |
|
8. मुख्य विषय-वस्तु |
मुझे हरिद्वार का समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है …. |
पत्र
आपने जो यात्रा – वर्णन पढ़ा है, इसे भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक संपादक को पत्र
के रूप में लिखकर भेजा था। आप भी अपनी किसी यात्रा के विषय में अपने किसी परिचित
को पत्र लिखकर बताइए |
उत्तर:
प्रिय मित्र शशांक
सप्रेम नमस्कार,
आशा है कि तुम सपरिवार कुशलपूर्वक होंगे। मैं यहाँ स्वस्थ और प्रसन्न हूँ। इस
पत्र के माध्यम से मैं तुम्हें अपनी हाल ही की हरिद्वार यात्रा का वर्णन करना
चाहता हूँ, जो मेरे जीवन की सबसे अविस्मरणीय यात्राओं में से एक रही ।
पिछले सप्ताह मैं अपने परिवार के साथ हरिद्वार गया । जैसे ही हमने गंगा के
पावन तट पर कदम रखा, मन एक अलौकिक शांति से भर गया। गंगा की कलकल ध्वनि मानो मन
के सारे क्लेशों को बहा ले जाती थी । हर-हर गंगे के घोष के बीच जब हमने गंगा स्नान
किया, तो ऐसा लगा मानो
आत्मा भी पवित्र हो गई हो ।
हमने हर की पैड़ी पर संध्या आरती देखी। सैकड़ों दीपों की रोशनी जब गंगा जल में
झिलमिलाने लगी, तो वह दृश्य इतना मनोहारी था कि शब्दों में वर्णन कर पाना कठिन है। चारों ओर
भक्तों की आस्था और भक्ति की गूँज थी।
इसके पश्चात हमने मनसा देवी और चंडी देवी के दर्शन किए। पर्वत पर स्थित ये
मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। रोपवे से ऊपर जाते समय पूरा हरिद्वार शहर
और गंगा नदी का दृश्य दिखाई देता है, जो अत्यंत रमणीय होता है।
इस यात्रा ने न केवल मुझे धार्मिक रूप से छू लिया, बल्कि प्रकृति की गोद में बिताया गया समय मेरे
मन को भी बहुत शांति दे गया। यदि अवसर मिले तो मैं तुम्हें भी यही यात्रा करने की
सलाह दूँगा । यकीन मानो, यह अनुभव जीवन-भर याद रहेगा। शेष कुशल है । तुम्हारे पत्र
की प्रतीक्षा रहेगी।
तुम्हारा मित्र
हिमांशु
शब्द से जुड़े शब्द
नीचे दिए गए स्थानों में ‘हरिद्वार’ से जुड़े शब्द अपने मन से या पाठ से चुनकर
लिखिए-
उत्तर:
लेखन के अनोखे तरीके
(क) ‘हरिद्वार’ पाठ में लेखक ने हरिद्वार के अपने
अनुभवों को बहुत ही साहित्यिक और कल्पनाशील भाषा में प्रस्तुत किया है जिसमें कई
स्थानों पर उन्होंने तुलनात्मक वाक्यों के माध्यम से दृश्यों का वर्णन किया है।
जैसे- हरी-भरी लताओं की तुलना सज्जनों से इस प्रकार की गई है-
“पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी
सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।”
नीचे कुछ तुलनात्मक वाक्य दिए गए हैं। पाठ में ढूँढ़िए कि इन तुलनात्मक
वाक्यों को लेखक ने किस प्रकार विशिष्ट तरीके से लिखा है यानी विशिष्टता प्रदान की
है?
प्रश्न 1.
वृक्षों की तुलना साधुओं से की गई है।
उत्तर:
बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानों एक पैर
से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।
प्रश्न 2.
गंगाजल की मिठास की तुलना चीनी से की गई है।
उत्तर:
जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही
है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है।
प्रश्न 3.
हरियाली की तुलना गलीचे से की गई है।
उत्तर:
वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दिखाई पड़ती थी
मानो हरे गलीचे की जात्रियों के विश्राम हेतु बिछायत बिछी थी।
प्रश्न 4.
नदी की धारा की तुलना राजा भगीरथ के यश (कीर्ति)
से की गई है।
उत्तर:
एक ओर त्रिभुवन पावनी श्री गंगा जी की पवित्र
धारा बहती है जो राजा भगीरथ के उज्ज्वल कीर्ति की लता – सी दिखाई देती है।
(ख) “मैं उस पुण्य भूमि का वर्णन करता हूँ जहाँ
प्रवेश करने ही से मन शुद्ध हो जाता है।” “पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं।
एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं। ” उपर्युक्त पंक्तियों को ध्यान से देखिए, ये आज की हिंदी की तरह नहीं लिखी गई हैं। इसे
लेखक ने न केवल अपनी शैली में लिखा है, अपितु इसमें प्राचीन हिंदी भाषा की छवि भी दिखाई
देती है। नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं आप इन्हें आज की हिंदी में लिखिए।
प्रश्न 1.
“ इन वृक्षों पर अनेक रंग के
पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।”
उत्तर:
इन पेड़ों पर रंग-बिरंगे पक्षी निर्भय होकर
चहचहाते हैं और शहर के शोरगुल से बेपरवाह होकर आनंदपूर्वक खेलते हैं।
प्रश्न 2.
“वर्षा के कारण सब ओर
हरियाली ही दृष्टि पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु
बिछायत बिछी थी ।”
उत्तर:
वर्षा के मौसम में चारों ओर हरियाली ही हरियाली
दीखती है, जैसे हर तरफ हरे
कालीन बिछाए गए हों, जो विश्राम के लिए आमंत्रित करते हों ।
प्रश्न 3.
“यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि
इच्छा क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं।”
उत्तर:
यह एक ऐसा निर्मल तीर्थ है जहाँ काम और क्रोध-
जैसी भावनाओं से युक्त मनुष्य वहाँ वास तक नहीं करता।
प्रश्न 4.
“मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही
ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है।”
उत्तर:
मैं वहाँ पहुँचते ही इतना प्रसन्न और निर्मल
अनुभव करने लगा कि शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है।
प्रश्न 5.
“यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ
और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में श्री भागवत का
पारायण भी किया ।”
उत्तर:
यहाँ रात में ग्रहण लगा; हमने उस दौरान आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में
श्री भागवत का पाठ भी किया।
प्रश्न 6.
“उस समय के पत्थर पर का भोजन
का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था ।”
उत्तर:
उस समय – सीलन में मिले साधारण भोजन का आनंद तो
सोने की थाली में परोसे जाने वाले व्यंजनों से भी कहीं अधिक था।
प्रश्न 7.
“निश्चय है कि आप इस पत्र को
स्थानदान दीजिएगा।”
उत्तर:
कृपया इस पत्र को उचित स्थान प्रदान करने की
कृपा करें।
(ग) इस रचना में हरिश्चंद्र जी ने कहीं-कहीं
प्राचीन वर्तनी का प्रयोग किया है, जैसे-शिखर के लिए शिषर, यात्रियों के लिए जात्रियों। ऐसे शब्दों की सूची
बनाइए। आप इन शब्दों को कैसे लिखते हैं? कक्षा में चर्चा कीजिए ।
उत्तर:
- प्राचीन वर्तनी – आधुनिक वर्तनी
- शिवर – शिखर
- जात्रियों – यात्रियों
- घाम – धूप
- अर्थी – याचक
- बिछायत – बिछौना
- मिष्ट – मीठा
- खानि – युक्त
पाठ से आगे
प्रश्न – अभ्यास (पृष्ठ 58-62)
आपकी बात
प्रश्न 1.
“मैंने गंगा जी के तट पर
रसोई करके… भोजन किया”
क्या आपने कभी खुले वातावरण में या प्रकृति के
पास भोजन किया है? वह अनुभव घर के खाने से कैसे भिन्न था ?
उत्तर:
हाँ, हमने खुले वातावरण में भोजन किया है। स्वच्छ और
खुली हवा में खाना खाने पर मुझे लगता है कि खाना ज़्यादा स्वादिष्ट और ताज़ा लगने
लगता है। प्रकृति के बीच पेड़ों की सरसराहट, पक्षियों की चहचहाहट, हल्की हवा, इन सबकी उपस्थिति खाने को ‘“इस पल में जीने”
जैसा एहसास देती है। घर में हम अक्सर टीवी, फोन या चर्चा में बह जाते हैं, लेकिन बाहर ध्यान केंद्रित रहता है जिससे हर कौर
का स्वाद गहराई से महसूस होता है ।
प्रश्न 2.
“उस समय के पत्थर पर का भोजन
का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था ।” आपके जीवन में ऐसा कोई क्षण आया, जब किसी सामान्य-सी वस्तु ने आपको गहरा सुख दिया
हो? उसके बारे में
बताइए ।
उत्तर:
हाँ, मेरे जीवन में कई ऐसे पल आए हैं जब सबसे साधारण
चीज़ ने गहरा सुख दिया और एक यादगार तारीख बना दिया।
एक ठंडी सुबह, मैं घर की बालकनी में बैठा था। आस-पास सिर्फ पत्तों की
सरसराहट थी और दूर पक्षियों की चहचहाहट । मेरी माँ ने मुझे एक साधारण चाय का
प्याला दिया। उस एक प्याली में मुझे न केवल स्वाद मिला, बल्कि एक घर की भावना, संबंध और माँ की ममता का एहसास हुआ। उतना साधारण, फिर भी कितना गहन – एक उस पल ने जीवन को गहराई
से महसूस करने में मदद की।
प्रश्न 3.
“हर तरफ पवित्रता और
प्रसन्नता बिखरी हुई थी।”
आपको किस स्थान पर पवित्रता और प्रसन्नता का
अनुभव होता है? क्या कोई ऐसा स्थान है जहाँ जाते ही मन शांत हो गया हो? उस स्थान की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर:
मेरे लिए सबसे ज्यादा पवित्रता और प्रसन्नता का
अनुभव उस समय होता है जब मैं किसी शांत प्राकृतिक स्थल पर होता हूँ, जैसे पहाड़ी, झील किनारा, जंगल का कोना या नदी के पास एकांत बेंच। जब मैं
ऐसे प्राकृतिक परिवेश में होता हूँ, तो मेरा मन तुरंत तनावमुक्त हो जाता है। इस जगह
की निम्न बातें हमें अच्छी लगीं-
1. यहाँ हरी-भरी घाटियाँ, बहती नदियाँ और पेड़ों की सरसराहट सुनने को
मिलती है।
2. कोई भीड़-भाड़ नहीं, फोन की रिंगटोन या तेज मशीनों का कोई स्थान नहीं
है।
3. बिना किसी सामाजिक दबाव या जरूरत महसूस किए, पूरी तरह खुद को खो देने की आज़ादी |
प्रश्न 4.
पाठ में वर्णित है, यहाँ के वृक्ष “फल, फूल, गंध… जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ
पूर्ण करते हैं ।”
क्या आपके जीवन में कोई पेड़, फूल या प्राकृतिक वस्तु है जिससे आप विशेष
जुड़ाव महसूस करते हैं? क्यों?
उत्तर:
हाँ, मेरे लिए भी प्रकृति की एक खास वस्तु है-वह है
बरगद का पेड़। इसके साथ मेरा एक गहरा और आत्मीय संबंध है। इसका प्रमुख कारण
निम्नलिखित हैं-
1. बरगद वर्षों तक जीता है और उसकी मजबूत जड़ें और
विशाल तने मुझे समय की गहराइयाँ महसूस कराती हैं। यह मुझे जीवन में धैर्य और
स्थिरता का संदेश देता है।
2. उसके विस्तृत वृक्ष तले बैठकर महसूस होता है
जैसे सारी ऊर्जा उसके विशाल तने और शाखाओं से मेरे भीतर प्रवाहित हो रही हो । यह
अनावश्यक चिंताओं और तनाव को दूर कर, आंतरिक शक्ति से जोड़ता है।
3. बचपन से ही कई त्योहार, पंचायतें और मिलन स्थल बरगद के नीचे होते थे।
इसलिए मेरे मन में यह पेड़ खुशी, संस्कृति और पुरानी यादों का प्रतीक भी है।
4. गर्मियों में बरगद की बड़ी छाया, गिरते पत्तों की आवाज़ और आस-पास के पक्षियों की
चहचहाहट- ये सभी मिलकर मुझे मौन में
ताज़गी और पूर्णता का अनुभव कराते हैं।
प्रकृति का सौंदर्य और संरक्षण
“यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी
है….
आपने पत्र में पढ़ा कि हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। इस सौंदर्य
को बनाए रखने में प्रत्येक मानव की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस विषय में अपने समूह
में चर्चा कीजिए। इसके बाद अपने समूह के साथ मिलकर “तीर्थ ही नहीं, पृथ्वी भी पावन हो! ” विषय पर जन-जागरूकता
पोस्टर बनाइए।
स्वास्थ्य और योग
“चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।”
अनेक लोग आज भी मन की शांति, स्वास्थ्य लाभ और भक्ति के लिए तीर्थ और पर्वतीय
स्थानों की यात्रा करते हैं। मन की शांति और स्वास्थ्य के लिए हमारे देश में
हजारों वर्षों से योग भी किया जाता रहा है।
(क) 5 मिनट ध्यान लगाकर या मौन बैठकर अपने आस-पास की
ध्वनियों को सुनिए, अपनी श्वास पर ध्यान दीजिए तथा ध्यान को केंद्रित करने का
प्रयास कीजिए। इस अनुभव के विषय में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:
जब हम ध्यान के लिए मौन बैठे तो हवा की हल्की
सरसराहट, घर में किसी दूर
से आने वाली गतिविधि या पेड़ों की पत्तियों की हलचल का अनुभव हुआ। पहले तो मन में
फैलाव का एहसास हुआ, पर धीरे-धीरे वह साँसों की लय में केंद्रीकृत हो गया। ऐसी
साधना से तनाव कम होने लगी और आंतरिक शांति का अनुभव हुआ।
(ख) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में अपने
विद्यालय के कार्यक्रमों को बताने के लिए एक ‘सूचना’ लिखिए जिसे सूचना पट पर लगाया
जा सके।
उत्तर:
सूचना
विषय : अंतरराष्ट्रीय योग दिवस – 2026
पर विद्यालय – कार्यक्रम
दिनांक : रविवार, 21 जून 2026
समय : प्रातः 7 : 30 बजे से 9 : 00
बजे तक स्थान : विद्यालय का मुख्य प्रांगण ।
स्कूल का सामान
कार्यक्रम
1. प्रार्थना और उद्घाटन
·
“अतिथि/प्रधानाचार्य द्वारा दीप प्रज्वलन एवं संदेश”
·
“एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” विषय पर संक्षिप्त संबोधन।
2. विद्यार्थियों द्वारा सामान्य आसन
3. विशेष सत्र
·
अनुभवी योग शिक्षक द्वारा निर्देशितः तनाव मुक्ति और मानसिक स्वास्थ्य |
·
स्वस्थ जीवनशैली हेतु योग के लाभों पर मार्गदर्शन
4. समापन
·
धन्यवाद ज्ञापन
·
सामूहिक “ओम” उच्चारण
5. अन्य गतिविधियाँ
·
योग-संबंधी पेंटिंग / पोस्टर प्रतियोगिता
·
योग विषयक निबंध / व्याख्यान प्रतियोगिता । कृपया निम्न निर्देशों का पालन
करें-
·
ड्रेस कोड – हल्का, आरामदायक पोशाक, योग मित्रवत ।
·
वस्तुएँ लाएँ – योग – मैट या तौलिया, पानी की बोतल ।
·
उपस्थिति-दिनांक 21 जून को सुबह 7:20 बजे तक विद्यालय पहुँचना अनिवार्य है।
·
भागीदारी – सभी छात्र, शिक्षक व कर्मचारी अनिवार्य रूप से शामिल हों ।
सूचना जारीकर्ता
प्राचार्य
(अ.ब.स. विद्यालय)
प्रेषितः कक्षा शिक्षकगण, सूचना बोर्ड प्रभारी, योग समन्वयक।
आइए – इस योग दिवस पर हम सब मिलकर “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” का संदेश फैलाएँ और अपनी पर्यावरण
की भलाई में योग की भूमिका को समझें ।
सज्जन वृक्ष
“सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
आप जानते ही हैं कि पेड़-पौधे हमारे जीवन के लिए
अत्यंत आवश्यक हैं। किंतु हमारे ही कार्यों के कारण वे कम होते जा रहे हैं। आइए, पेड़-पौधों को अपना मित्र बनाएँ ।
(क) एक पौधा लगाइए और उसकी देखभाल कीजिए ताकि वह
कुछ वर्षों में बड़ा पेड़ बन सके। उसे एक नाम दीजिए और उसका मित्र बनिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
(ख) उसके बारे में अपनी दैनंदिनी में नियमित रूप
से लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
अपने शब्द
“शीतल वायु… स्पर्श ही से पावन करता हुआ संचार
करता है।”
आइए, एक रोचक गतिविधि करते हैं। ‘शीतल’ शब्द को
केंद्र में रखिए और उसके चारों ओर ये चार बातें लिखिए।
उत्तर:
अब इसी प्रकार आपके समूह का प्रत्येक सदस्य इस पत्र से एक-एक शब्द चुनकर उसके
लिए ऐसा ही शब्द-चित्र बनाए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
यात्रा के व्यय की गणना
इस पत्र में आपने हरिद्वार की एक यात्रा का वर्णन पढ़ा है। मान लीजिए कि आपको
अपने मित्रों या अभिभावकों के साथ अपनी रुचि के किसी स्थान की यात्रा करनी है। उस
स्थान को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) मान लीजिए कि यात्रा के लिए आपको ₹1000
दिए गए हैं। यात्रा, खाना आदि सब मिलाकर एक व्यय विवरण बनाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
(ख) मान लीजिए कि आप इस यात्रा में एक छोटी वस्तु
(स्मृति चिह्न) खरीदना चाहते हैं। आप क्या खरीदेंगे और क्यों?
(संकेत – सोचिए, क्या वह आवश्यक है? बजट कैसे संभालेंगे?)
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
यात्रा सबके लिए
(क) कल्पना कीजिए कि कुछ मित्रों का समूह एक
यात्रा पर जा रहा है। आप एक मार्गदर्शक या टूरिस्ट गाइड हैं। आप इन सबकी यात्रा को
सुविधाजनक बनाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे ?
उपर्युक्त चित्र में सबकी अलग-अलग आवश्यकताएँ हो
सकती हैं। इन्हें ध्यान में रखते हुए सोचिए कि वहाँ पहुँचने, घूमने, भोजन आदि में आप कैसे सहायता करेंगे ?
उत्तर:
यात्रा सुविधाजनक बनाने के लिए ” निम्नलिखित
कार्य करेंगे। –
1. यात्रा कार्यक्रम से अवगत कराना
2. लचीला समय सारणी
3. जिम्मेदारियाँ बाँटना
4. बेहतर संचार और सहभागिता
5. दर्शकों की ओर समर्पण
6. सुरक्षा और तैयारी
7. भोजन और खपत
8. समय-पालन और लचक
उपर्युक्त चित्र में हम विभिन्न तरह के लोगों को देख रहे हैं- जैसे दृष्टिहीन
व्यक्ति, बुर्जुग, बच्चे, महिला, व्हीलचेयर पर व्यक्ति आदि। इनके हिसाब से
पहुँचने, घूमने, खाने आदि में हम निम्न तरीकों से सहायता करेंगे।
1. पहुँचने में सहायता-
(क) दृष्टिहीन व्यक्तिः
- रास्ते का सुरक्षित मार्ग बताएँगे।
- ट्रेन /बस में सुरक्षित सीट तक मार्गदर्शन करेंगे।
(ख) व्हीलचेयर उपयोगकर्ता:
- रैंप, लिफ्ट और सुविधाजनक प्लेटफार्म पर पहुँचाएँगे।
- वाहन तक व्हीलचेयर को आसानी से लोड अनलोड करने में मदद करेंगे।
(ग) बुजुर्ग और बच्चों के साथ परिवार:
- धीमी चाल चलते हुए साथ रहेंगे।
- बच्चे को संभालकर रखेंगे और बचाव के उपाय अपनाएँगे।
2. घूमने-फिरने में सुविधा –
(क) सुलभता पर ध्यान देंगे।
(ख) जरूरतमंद को गाइड अथवा
सहायक उपलब्ध कराएँगे।
(ग) दृष्टिहीन के लिए ऑडियो
गाइड, व्हीलचेयर
उपयोगकर्ता को स्पॉट- फ्री मार्ग ।
(घ) बैठने और ठहरने के लिए
आरामदायक स्थान उपलब्ध कराएँगे।
3. भोजन और चिकित्सा की समुचित व्यवस्था करवाएँगे।
(ख) अपने किसी मित्र के साथ बिना बोले संवाद
कीजिए – संकेतों से। अब सोचिए कि यात्रा में श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए क्या-क्या
आवश्यक होगा?
उत्तर:
यात्रा के दौरान श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए
निम्नलिखित तैयारियाँ और सुविधाएँ आवश्यक होती हैं-
1. यात्रा से पहले सभी तैयारियों को लिखित रूप में
दें।
2. जहाँ जरूरी हों, स्थानीय मदद या साथी के साथ यात्रा करें।
3. अस्पताल, दफ्तर, एयरपोर्ट में अपनी स्थिति बताने के लिए कार्ड
रखें।
(ग) यात्रा करते हुए ऐतिहासिक धरोहरों या भवनों
की सुरक्षा के लिए आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे ?
उत्तर:
1. धरोहरों और उनके आस-पास कूड़ा-कचरा न फैलाएँ।
2. धरोहरों के अंदर फोटोग्राफी न करें ।
3. इमारतों की दीवारों या पत्थरों पर अपना नाम न
लिखें।
4. मूर्ति, कलाकृति या किसी भी नाजुक हिस्से को न छुएँ।
5. धरोहर के अंदर या आस-पास शोर न मचाएँ ।
आज की पहेली
पाठ में से शब्द खोजिए और नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में लिखिए-
प्रश्न 1.
एक मसाले का नाम ……………….
उत्तर:
दालचीनी
प्रश्न 2.
कपास से जुड़ा एक शब्द ……………….
उत्तर:
गलीचा
प्रश्न 3.
जहाँ स्नान होता है। ……………….
उत्तर:
हरि की पैड़ी
प्रश्न 4.
वृक्ष के किसी अंग का नाम ……………….
उत्तर:
जड़
प्रश्न 5.
एक नगर या तीर्थ का नाम ……………….
उत्तर:
हरिद्वार
प्रश्न 6.
व्यापार से जुड़ा स्थान ……………….
उत्तर:
ज्वालापुर
प्रश्न 7.
एक नदी का नाम ……………….
उत्तर:
गंगा
प्रश्न 8.
एक पर्वत का नाम ……………….
उत्तर:
विल्वपर्वत
प्रश्न 9.
एक धार्मिक ग्रंथ का नाम ……………….
उत्तर:
श्री भागवत
झरोखे से
भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखे एक और पत्र का एक अंश नीचे दिया गया है। इसे
पढ़िए और आपस में विचार कीजिए ।
हरिद्वार के मार्ग में
हरिद्वार के मार्ग में अनेक प्रकार के वृक्ष और पक्षी देखने में आए। एक पीले
रंग का पक्षी छोटा बहुत मनोहर देखा गया। बया एक छोटी चिड़िया है उसके घोंसले बहुत
मिले। ये घोंसले सूखे बबूल काँटे के वृक्ष में हैं और एक – एक डाल में लड़ी की
भाँति बीस-बीस तीस-तीस लटकते हैं।
इन पक्षियों की शिल्पविद्या तो प्रसिद्ध ही है, लिखने का कुछ काम नहीं है। इसी से इनका सब
चातुर्य प्रगट है सब वृक्ष छोड़ के काँटे के वृक्ष में घर बनाया है। इसके आगे
ज्वालापुर और कनखल और हरिद्वार हैं, जिसका वृत्तांत अगले नंबरों में लिखूँगा।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
खोजबीन के लिए
भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक प्रसिद्ध नाटक है – अंधेर नगरी । इसे पुस्तकालय या
इंटरनेट से ढूँढ़कर पढ़िए और अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए ।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें