NCERT Solutions for Class 7 Hindi Chapter 13 वीर कुँवर सिंह Veer Kunvar Singh
पाठ्यपुस्तक
के प्रश्न-अभ्यास
वीर कुँवर सिंह पाठ सार (Summary)
प्रस्तुत पाठ में
स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर सिपाही वीर कुँवर सिंह के बारे में बताया गया है।
वीर कुँवर सिंह ने किस तरह 1857 की क्रांति में अपना
योगदान दिया था। सुभद्रा कुमारी जी की कविता ‘झाँसी की रानी ‘में जिस वीर योद्धा
ठाकुर कुँवर सिंह का वर्णन किया गया है, इस पाठ में स्वतंत्रता
संग्राम के उसी वीर कुँवर सिंह के बारे में जानकारी दी जा रही है। 1857 की बगावत ब्रिटिश शासन को
भारत से खदेड़ने का पहला कदम कहा जा सकता है। असल में 1857 में लोगों के द्वारा उस
दमन नीति के विरुद्ध विद्रोह शुरू हुआ था। इसी दमन नीति को न मानने के
कारण मार्च 1857 में बैरकपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करने पर मंगल
पांडे को 8 अप्रैल 1857 को फाँसी दे दी गई। मंगल
पांडे को फाँसी देने के बाद इस आंदोलन ने गति पकड़ी और 10 मई 1857 को मेरठ में भारतीय
सैनिकों ने ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध आंदोलन किया और आंदोलन को सीधे दिल्ली
की ओर बढ़ाते चले गए। दिल्ली पहुँचते ही उन्होंने वहाँ में नियुक्त किए गए सैनिकों
के अपने साथ मिला दिया और 11 मई को उन्होंने दिल्ली पर कब्जा कर लिया अर्थात दिल्ली को
अंग्रेजों से मुक्त कर दिया और अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह ज़फ़र को भारत का शासक
घोषित कर दिया। यह विद्रोह इस तरह दूर–दूर तक फैल गया जिस तरह जंगल की आग कुछ ही
समय में दूर–दूर तक फैल जाती है। इस विद्रोह के मुख्य नेताओं में नाना साहेब, ताँत्या टोपे, बख्त खान, अशीमुल्ला खान, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हशरत महल, कुँवर सिंह, मौलवी अहमदुल्लाह, बहादुर खान और राव तुलाराम
थे। कहा जा सकता है कि लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक करने के लिए 1857 के आंदोलन का महत्वपूर्ण
योगदान रहा है। 1857 के आंदोलन में कई बहादुर वीर सिपाहियों ने अपना सर्वस्व
त्याग दिया, उन्हीं वीर योद्धाओं में वीर कुँवर सिंह का नाम कई
दृष्टियों से उल्लेखनीय है। वीर कुँवर सिंह के बचपन के बारे में कहीं पर भी बहुत
अधिक जानकारी नहीं मिलती। जितनी जानकारी मिल सकी है उसके अनुसार कहा जाता है कि
कुँवर सिंह का जन्म बिहार में शाहाबाद जिले के जगदीशपुर में सन् 1782 ई॰ में हुआ था। उनके पिता
का नाम साहबज़ादा सिंह बताया जाता है और माता का नाम पंचरतन कुँवर कहा जाता था। यह
भी जानकारी मिलती है कि उनके पिता साहबज़ादा सिंह जगदीशपुर रियासत के ज़मींदार थे, परंतु उनको यह ज़मींदारी
विरासत में नहीं मिली थी बल्कि उनको अपनी ज़मींदारी हासिल करने में बहुत संघर्ष
करना पड़ा था। कुँवर सिंह कभी विद्यालय नहीं गए बल्कि उनकी शिक्षा–दीक्षा की
व्यवस्था उनके पिता ने घर पर ही की थी, घर पर ही उन्होंने हिंदी, संस्कृत और फ़ारसी सीखी थी।
परंतु जानकारी के अनुसार कुँवर सिंह का पढ़ने–लिखने में उतना मन नहीं लगता था, जितना मन घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और कुश्ती लड़ने
में लगता था। वीर कुँवर सिंह के पिता का जब निधन हो गया तब उन्होंने अपने पिता की
के बाद सन् 1827 में अपनी रियासत की जिम्मेदारी सँभाली। उस समय ब्रिटिश शासन
का अत्याचार भारतीयों के प्रति बहुत अधिक बढ़ गया था, कहा जा सकता है कि ब्रिटिश
सरकार का अत्याचार अपनी सारी हदें पार कर चूका था। इस बढ़ते हुए अत्याचार के कारण
ही लोगों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ बहुत अधिक नाराज़गी पैदा हो रही थी। ब्रिटिश
सरकार ने भारतीयों को अपने ही देश में महत्त्वपूर्ण और ऊँची नौकरियों से विमुख कर
दिया गया था। इन सभी से भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक ऐसे संघर्ष की स्थिति
बन गई थी जो पुरे देश में फैलता जा रहा था। ऐसी स्थिति को देखते हुए कुँवर सिंह ने
ब्रिटिश शासन से मुकाबला करने का इरादा कर लिया था। जानकारी मिलती है कि जगदीशपुर
के जंगलों में एक महात्मा ज्ञानी रहते थे, जिन्हे सभी ‘बसुरिया बाबा
’ के नाम से जानते थे। उन्हीं बाबा ने ही कुँवर सिंह में देशभक्ति एवं स्वाधीनता
की भावना उत्पन्न की थी। वे 1845 से 1846 तक बहुत अधिक क्रियाशील
रहे और छुपते–छुपाते ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ विद्रोह की योजना बनाते रहे।
उन्होंने अपनी गुप्त बैठकों की योजना के लिए बिहार के प्रसिद्ध सोनपुर मेले को
चुना क्योंकि उस भीड़ भड़ाके में किसी का ध्यान उनकी और जाना स्वाभाविक नहीं था।
इन्ही योजनाओं के तहत 25 जुलाई 1857 को दानापुर की सैनिक टुकड़ी
ने आंदोलन कर दिया और सभी सैनिक आंदोलन करते हुए सोन नदी पार कर आरा
की ओर चल पड़े। इन सभी योजनाओं से कुँवर सिंह पहले से ही परिचित होते थे जिस वजह से
जब वे सैनिक सोन नदी पार कर आरा पहुंचे तो वीर कुँवर सिंह से उनका संपर्क पहले से
ही था। 27 जुलाई 1857 को कुँवर सिंह ने आरा पर
अपना अधिकार स्थापित कर दिया। वीर कुँवर सिंह को सिपाहियों ने फौजी सलामी दी। वीर
कुँवर सिंह भले ही वृद्धावस्था की ओर थे परन्तु उनके जोश में कोई कमी नहीं
थी।आजादी की लड़ाई के आंदोलन की लपटें दानापुर और आरा की इस लड़ाई से बिहार में सब स्थानों
पर फैल गई थी। इस आंदोलन को इतनी सफलता मिल जाने के बाद भी कई कारणों से असफल हो
गया। इन कारणों में मुख्य कारण थे, देसी सैनिकों में अनुशासन
की कमी का होना, स्थानीय ज़मींदारों का बगावत करने वाले सैनिकों का साथ न दे
कर अंग्रेजों के साथ सहयोग करना तथा उस समय के जो समकालीन युद्ध के समय लड़ाई के
उपकरण थे, बगावत करने वाले सैनिकों के पास उनकी कमी थी जिसके
कारण जगदीशपुर का संहार नहीं रोका जा सका अर्थात आंदोलन अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच
सका और 13 अगस्त को जगदीशपुर में कुँवर सिंह की सेना को अंग्रेज़ो से
हार का सामना करना पड़ा। परन्तु इससे वीरवर कुँवर सिंह का आत्म विश्वास टूटा नहीं
और वे भविष्य में होने वाले स्वतंत्रता प्राप्ति के युद्ध की योजना बनाने में लगन
और निष्ठा के साथ तैयारियाँ करने में लग गए। वीर कुँवर सिंह इतने बहादुर थे कि
उनकी वीरता की प्रसिद्धि पूरे उत्तर भारत में फैल गई। वीर कुँवर सिंह आजादी की
लड़ाई की इस विजय यात्रा में सभी को इस तरह जोड़े जा रहे थे की उनके इस कदम से
अंग्रेज़ों के होश उड़ गए थे। कई स्थानों के सैनिक एवं राजा कुँवर सिंह के नेतृत्व
में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़े। स्वतंत्रता की इस लड़ाई में अंग्रेज़ों और कुँवर सिंह
की सेना के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस लड़ाई में कुँवर सिंह की सेना ने अंग्रेजों को
हरा कर, 22 मार्च 1858 को आज़मगढ़ पर कब्ज़ा कर
लिया। 23 अप्रैल 1858 को ही अपनी जीत का उत्सव
मनाते हुए लोगों ने यूनियन जैक यानि ( अंग्रेजों का झंडा ) उतारकर अपना झंडा
फहराया। परन्तु इसके तीन दिन बाद ही 26 अप्रैल 1858 को यह वीर इस संसार से
विदा होकर अपनी अमर कहानी छोड़ गया अर्थात वीर कुँवर सिंह का निधन हो गया और अपने
पीछे वे अपनी बहादुरी के किस्से छोड़ गए जिन्हे आज भी गर्व के साथ याद किया जाता
है। स्वतंत्रता की लड़ाई के वीर सेनापति वीर कुँवर सिंह हर तरह की युद्ध–कला में
पूरी तरह से प्रशिक्षित थे। अचानक या एकाएक किसी पर आक्रमण करने की युद्ध कला में
वीर कुँवर सिंह बहुत ही योग्य थे। उनकी योजनाएँ इतनी कारगर थी कि उनके दुश्मन को
उनके सामने से या तो भागना पड़ता था या अपनी मौत को गले लगाना पड़ता था। कहा जाता है
एक बार वीर कुँवर सिंह को अपनी सेना के साथ गंगा पार करनी थी। अंग्रेजी सेना से
अपनी सेना को बचाने के लिए उन्होंने अंग्रेजी सेना को गलत ख़बर पहुँचा दी कि वे
अपनी सेना को बलिया के पास हाथियों पर चढ़ाकर पार कराएँगे। परन्तु इसके विपरीत
कुँवर सिंह ने बलिया से सात मील दूर शिवराजपुर नामक स्थान पर अपनी सेना को नावों
से गंगा पार करा दिया। जब डगलस को इस घटना की सूचना मिली तो वह बलिया के निकट गंगा
तट से भागते हुए शिवराजपुर पहुँचा, परन्तु तब तक तो कुँवर
सिंह की तो पूरी सेना गंगा पार कर चुकी थी। केवल एक अंतिम नाव ही रह गई थी और
कुँवर सिंह उसी नाव पर सवार हो कर गंगा नदी पार कर रहे थे। अंग्रेज़ सेनापति डगलस
को वीर कुँवर सिंह पर हमला करने का यह अच्छा मौका मिल गया था । जैसे ही सेनापति
डगलस ने वीर कुँवर सिंह को जाते हुए देखा उसने गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं, उसकी गोलियों में से एक
गोली कुँवर सिंह के बाएँ हाथ की कलाई को भेदती हुई निकल गई। वीर कुँवर सिंह अपने
से अधिक अपने साथियों की सुरक्षा के लिए तत्पर रहते थे तभी वे सबसे अंत में सब को
सुरक्षित भेजने के बाद गंगा पार कर रहे थे और वे अत्यधिक बहादुर थे क्योंकि जब
उन्हें गोली लगी तो पुरे शरीर के अस्वस्थ हो जाने के डर से उन्होंने तुरंत अपना
हाथ काट दिया। वीर कुँवर सिंह ने केवल ब्रिटिश शासन के साथ मुकाबला ही नहीं किया
था बल्कि उन्होंने समाज की भलाई के लिए अनेक सामाजिक कार्य भी किए थे। उन्होनें
आरा जिला स्कूल के लिए अपनी ज़मीन दान में दी थी, जिस पर स्कूल के भवन का
निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, परन्तु फिर भी वे अपने
सामर्थ्य के अनुसार गरीब व्यक्तियों की सहायता किया करते थे। उन्होंने अपने इलाके
में लोगों के सुख के लिए अनेक सुविधाएँ प्रदान की थीं। उनमें से एक है–आरा–जगदीशपुर
सड़क और आरा–बलिया सड़क का निर्माण। उस समय पानी की अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए लोग कुएँ खुदवाते थे
और तालाब बनवाते थे। वीर कुँवर सिंह ने भी उस समय अनेक कुएँ खुदवाए और तालाब भी
बनवाए थे। कुँवर सिंह बहुत ही बड़े दिल के एवं बहुत ही अधिक भावुक प्रवृति के
व्यक्ति थे। अर्थात वे किसी भी व्यक्ति को दुःख में नहीं देख सकते थे। इब्राहीम खाँ
और किफ़ायत हुसैन उनकी सेना में ऊँचे पदों पर आसीन थे, इससे पता चलता है कि वीर
कुँवर सिंह हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं करते थे। उनके यहाँ हिन्दुओं
और मुसलमानों के सभी त्योहार एक साथ मिलकर मनाए जाते थे। उन्होंने पाठशालाएँ तो
बनवाई ही थी साथ ही साथ उन्होंने इस्लाम धर्म की शिक्षा–दीक्षा की पाठशालाओं को भी
बनवाया था। वीर कुँवर सिंह ने आजादी की लड़ाई में शहीद होने वाले एक बहुत ही बहादुर
सिपाही थे, जिन्हें आज भी उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है और उनका
गुणगान आज भी गीतों के माध्यम से होता है।
शब्दार्थ –
वीरवर – वीर योद्धा
अत्यधिक – प्रचुर, ज़रूरत से ज़्यादा, बहुत ही अधिक
भीषण – डरावना, भयानक, बहुत बुरा, विकट, उग्र व दुष्ट स्वभाव वाला
दृढ़ – पुष्ट, सबल, मज़बूत, पक्का, प्रगाढ़, अटूट, अडिग, स्थायी
नींव – किसी भवन की दीवार का वह निचला हिस्सा जो ज़मीन के
नीचे रहता है, मूल, जड़, आधार, किसी रचनात्मक कार्य का आरंभ
सांप्रदायिक – संप्रदाय संबंधी ( कम्यूनल ), किसी संप्रदाय का, दूसरे संप्रदाय के प्रति असहिष्णु
सद्भाव – शुभ और
अच्छा भाव, हित की
भावना, दो
पक्षों में मैत्रीपूर्ण स्थिति, मेल–जोल, द्वेष आदि से रहित भाव या विचार
वयोवृद्ध – अत्यधिक उम्रवाला, बूढ़ा
व्यापक – विस्तृत, चारों ओर फैला हुआ, छाया हुआ, घेरने या ढकने वाला, विशद, समावेशी
सशस्त्र – शस्त्रों के साथ
विद्रोह – बगावत, राजद्रोह, ख़िलाफ़त, क्रांति
दमन – शमन, दबाव, अवरोध, निरोध, नियंत्रण
कूच – किसी स्थान के लिए किया जाने वाला प्रस्थान, रवानगी, यात्रा की शुरुआत
तैनात – किसी काम पर लगाया या नियत किया हुआ, मुकर्रर, नियत, नियुक्त
घोषित – जिसकी घोषणा की गई हो, जो जानकारी में हो
विस्तृत – फैला हुआ, विशाल, लंबा–चौड़ा, खुला हुआ
स्वाभिमानी – वह व्यक्ति जिसे अपनी प्रतिष्ठा का गौरव या अभिमान हो, ख़ुद्दार, अपनी इज़्ज़त का ख़याल रखने वाला, स्वाभिमानवाला
उदार – विशाल हृदयवाला, दयालु, दानशील, भला, दूसरों में गुण देखने वाला
व्यक्तित्व – अलग
सत्ता, पृथक
अस्तित्व, निजी
विशेषता, वैशिष्ट्य
चरम सीमा – किसी बात या कार्य की अंतिम अवस्था, चरम अवस्था, पराकाष्ठा, हद
असंतोष – नाख़ुशी, नाराज़गी, अप्रसन्नता, अतृप्ति
रजवाड़ा – देसी रियासत, राजाओं के रहने का स्थान, रियासत का मालिक, राजा
राजदरबार – राजा का दरबार, राजओं का सभागृह
वंचित – जिसे
वांछित वस्तु प्राप्त न हुई हो या प्राप्त करने से रोका गया हो, महरूम, हीन, रहित, विमुख
देशव्यापी – पूरे देश में व्याप्त, सारे देश में फैला हुआ, जो देश भर में मिलता हो, बहुत विस्तृत
लोहा लेना – मुकाबला करना
संकल्प – दृढ़ निश्चय, प्रतिज्ञा, इरादा, विचार, कोई कार्य करने की दृढ इच्छा या निश्चय
सिद्ध – जिसकी साधना पूरी हो चुकी हो, संपन्न,,ज्ञानी, पूर्ण योगी, संत, महात्मा
सक्रिय – जो कोई क्रिया कर रहा हो, क्रियाशील, कर्मठ
गुप्त – छिपा या
छिपाया हुआ, अदृश्य, जिसके संबंध में लोग परिचित न हों
विख्यात – जिसकी बहुत ख्याति हो, प्रसिद्ध, मशहूर
ऐतिहासिक – इतिहास में उल्लिखित, इतिहास संबंधी, कोई बहुत महत्वपूर्ण तथा स्मरणीय घटना
स्वाधीनता – स्वतंत्रता, आज़ादी
एकत्र – एक स्थान पर जमा, इकट्ठा, एक जगह संगृहीत
संपर्क – मिलावट, संयोग, मेल, वास्ता, संगति
मुक्तिवाहिनी – गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होने के लिए किए गए
आंदोलन का नाम
बागी – बगावत करने वाला, विद्रोही, न दबने वाला, अवज्ञाकारी, उपेक्षाकारी
जयघोष – ज़ोर से
कही जाने वाली किसी की जय, जय
ध्वनि, विजय का
ढिंढोरा
सलाखें – जेल में लोहे के डंडे
तत्पर – किसी कार्य को लगन और निष्ठा के साथ करने वाला, तल्लीन, उद्यत, आज्ञाकारी, आतुर, उत्साही, इच्छुक
ज्वाला – आग की लपट या लौ, अग्निशिखा, दुख आदि से होने वाली मानसिक पीड़ा, संताप
सर्वत्र – सब स्थानों पर, सब जगह, हर तरफ़, पूर्ण रूप से
व्याप्त – फैला
हुआ, समाया
हुआ, सब ओर
से आच्छादित या ढका हुआ
आधुनिक – वर्तमान समय या युग का, समकालीन
शस्त्र – हथियार, आयुध, औज़ार, युद्ध के समय लड़ाई का उपकरण
पतन – ऊपर से नीचे आने या गिरने का भाव या क्रिया, मरण, संहार, नाश, घटाव
परास्त – पराजित, हारा हुआ या हराया हुआ, दबा हुआ, झुका हुआ, विनष्ट, ध्वस्त
आत्मबल – आत्मा या मन का बल, आत्मिक शक्ति
भावी – भविष्य में होने वाली बात, भविष्यत, आगामी, भविष्यकालीन
संग्राम – घमासान, युद्ध, लड़ाई, रण
तत्पर – किसी कार्य को लगन और निष्ठा के साथ करने वाला, आतुर, उत्साही, इच्छुक, तैयार
संचालक – किसी बड़े कार्य ( कार्यालय, संस्था, कारख़ाने आदि ) के सभी काम देखने, करने या कराने वाला व्यक्ति, ( डाइरेक्टर )
प्रस्थान – किसी स्थान से दूसरे स्थान को जाना, चलना, गमन, सेना का युद्धक्षेत्र की ओर जाना, कूच, मार्ग, रास्ता
कीर्ति – ख्याति, बड़ाई, यश, प्रसिद्धि, नेकनामी, शोहरत
अधीनता – मातहती, परवशता, विवशता, दीनता, लाचारी, आश्रय, नेतृत्व
सैन्य – सेना का, सेना से संबंधित
रणनीति – युद्ध
संबंधी नीति नियम, युद्ध
कौशल, योजना, कूटनीति, उपाय, युक्ति
विजय पताका – जीत का परचम
सेनानी – सेनापति, सिपहसलार, सेना का नायक
कुशल – जो किसी काम को करने में दक्ष हो, जो किसी काम को श्रेष्ठ तरीके से करता हो, प्रशिक्षित, योग्य
छापामार – अचानक या एकाएक किसी पर आक्रमण करना
महारत – निपुणता, दक्षता, योग्यता, अभ्यास, हस्तकौशल
पूर्णतः – पूर्ण
रूप से, अच्छी
तरह, सम्यक
असमर्थ – अक्षम, अशक्त, दुर्बल, अपेक्षित शक्ति या योग्यता न रखने वाला
अंकित – चिह्नित, लिखित, चित्रित, मुद्रित, उत्कीर्ण, खुदा हुआ
प्रचलित – जिसका प्रचलन हो, जो उपयोग या व्यवहार में आ रहा हो
निरंतर – सदा, हमेशा, लगातार, बिना किसी अंतराल के
अफवाह – गलत ख़बर
भावपूर्ण – भावों से युक्त भावनात्मक, भावनापूर्ण, भावनामय, भावप्रधान
ओजस्वी – जिसमें ओज हो, शक्तिशाली, तेजस्वी, प्रभावशाली, जोश पैदा करने वाला
अकिंचन – अतिनिर्धन, दरिद्र, कंगाल, मामूली, महत्वहीन
पूर्ति – पूरा
करने की क्रिया, पूर्णता, तृप्ति, संतुष्टि, आवश्यकता को पूर्ण करने का भाव, कमी पूरा करना
जलाशय – वह स्थान जहां बहुत सारा पानी एकत्र हो, तालाब, झील, वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए बनाया गया बड़ा
गड्ढा
संवेदनशील – संवेदना से युक्त, भावुक, सहृदय, भावप्रधान
मकतब – इस्लाम
धर्म की शिक्षा–दीक्षा की पाठशाला, छोटे बच्चों का मदरसा या पाठशाला
लोकप्रियता – लोगो में प्रिय
लोकभाषा – बोली, लोगो की आम बोलचाल की भाषा
प्रशस्ति – प्रशंसा, तारीफ़, बड़ाई, किसी की प्रशंसा में लिखी गई कविता आदि
पाठ्यपुस्तक
के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1–वीर कुँवर सिंह के
व्यक्तित्व की कौन–कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया ?
उत्तर–वीर कुँवर सिंह के
व्यक्तित्व की निनलिखित विशेषताओं ने हमें प्रभावित किया हैं –
वीर सेनानी – वीर कुँवर सिंह एक महान
वीर सेनानी थे। 1857 के विद्रोह में उन्होंने अपना पूर्ण योगदान दिया था।
उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया व अंग्रेजों को
कदम–कदम पर परास्त किया। कुँवर सिंह की वीरता पूरे उत्तर भारत द्वारा भुलाई नहीं
जा सकती। आरा पर विजय प्राप्त करने पर इन्हें फौजी सलामी भी दी गई।
स्वाभिमानी – वीर कुँवर सिंह वीर
होने के साथ–साथ स्वाभिमानी भी थे। जब वे शिवराजपुर से गंगा पार करते हुए जा रहे
थे तो डगलस की गोली का निशाना बन गए। उनके हाथ पर गोली लगी। उस समय वे न तो वहाँ
से भागे और न ही उपचार की चिंता की, बल्कि हाथ ही काटकर गंगा
में बहा दिया।
उदार स्वभाव – वीर कुँवर सिंह का
स्वाभाव अत्यधिक उदार था। वे किसी भी व्यक्ति से जातिगत भेदभाव नहीं करते थे। यहाँ
तक कि उनकी सेना में इब्राहिम खाँ और किफायत हुसैन मुसलमान होते हुए भी उच्च पदों
पर आसीन थे। वे हिंदू–मुसलमान दोनों के त्योहार सबके साथ मिलकर मनाते थे।
दृढ़निश्चयी – वीर कुँवर सिंह ने अपना
पूरा जीवन देश की रक्षा हेतु समर्पित किया। जीवन के अंतिम पलों में इतने वृद्ध हो
जाने पर भी सदैव युद्ध हेतु तत्पर रहते थे। यहाँ तक कि मरने से तीन दिन पूर्व ही
उन्होंने जगदीशपुर में विजय पताका फहराई थी।
समाज सेवक – एक वीर सिपाही होने के
साथ–साथ वे समाज सेवक भी थे। उन्होंने अपने इलाके में कई पाठशालाओं–मदरसों, कुओं व तालाबों का निर्माण
करवाया था। अपनी आर्थिक स्थिति सही न होने पर भी वे निर्धनों की सदा सहायता करते
थे।
साहसी – वीर कुँवर सिंह के साहस
की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। 13 अगस्त, 1857 को जब कुँवर सिंह की सेना
जगदीशपुर में अंग्रेजों से परास्त हो गई तो उन्होंने साहस नहीं छोड़ा, परन्तु इससे वीरवर कुँवर
सिंह का आत्म विश्वास टूटा नहीं और वे भविष्य में होने वाले स्वतंत्रता प्राप्ति
के युद्ध की योजना बनाने में लगन और निष्ठा के साथ तैयारियाँ करने में लग गए
अर्थात एक बार असफल हो जाने के कारण उन्होंने पीछे हटने के बजाए अपने लक्ष्य को प्राप्त
करने के लिए तैयारियाँ करना सही समझा। सासाराम से मिर्जापुर होते हुए रीवा, कालपी, कानपुर, लखनऊ से आजमगढ़ की ओर
बढ़ते हुए उन्होंने आजादी की आग को जलाए रखा। पूरे उत्तर भारत में उनके साहस की
चर्चा थी। अंत में 23 अप्रैल, 1858 को आजमगढ़ में अंग्रेजों
को हराते हुए उन्होंने जगदीशपुर में स्वाधीनता की विजय पताका फहरा कर ही दम लिया।
प्रश्न 2–कुँवर सिंह को बचपन में
किन कामों में मज़ा आता था ? क्या उन्हें उन कामों से
स्वतंत्रता सेनानी बनने में कुछ मदद मिली ?
उत्तर–वीर कुँवर सिंह को बचपन
में पढ़ने–लिखने में उतना मन नहीं लगता था, जितना मन घुड़सवारी, तलवारबाज़ी और कुश्ती लड़ने
में लगता था। जब बड़े होकर स्वतंत्रता सेनानी बने तो इन कार्यों से उन्हें बहुत
सहायता मिली। तलवार चलाने व तेज़ घुड़सवारी से तो वे कदम–कदम पर अंग्रेजों को मात
देते रहे।
प्रश्न 3–सांप्रदायिक सद्भाव में
कुँवर सिंह की गहरी आस्था थी। पाठ के आधार पर कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर–कुँवर सिंह की सांप्रदायिक
सद्भाव में गहरी आस्था थी। उनकी सेना में मुसलमान भी उच्च पदों पर थे। थे।
इब्राहीम खाँ और किफ़ायत हुसैन उनकी सेना में ऊँचे पदों पर आसीन थे, इससे पता चलता है कि वीर
कुँवर सिंह हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं करते थे। उनके यहाँ हिन्दुओं
और मुसलमानों के सभी त्योहार एक साथ मिलकर मनाए जाते थे। उन्होंने पाठशालाएँ तो
बनवाई ही थी साथ ही साथ उन्होंने इस्लाम धर्म की शिक्षा–दीक्षा की पाठशालाओं को भी
बनवाया था।
प्रश्न 4–पाठ के किन प्रसंगों से
आपको पता चलता है कि कुँवर सिंह साहसी, उदार एवं स्वाभिमानी
व्यक्ति थे ?
उत्तर–वीर कुँवर सिंह के साहस की
तुलना किसी से नहीं की जा सकती। 13 अगस्त, 1857 को जब कुँवर सिंह की सेना
जगदीशपुर में अंग्रेजों से परास्त हो गई तो उन्होंने साहस नहीं छोड़ा, परन्तु इससे वीरवर कुँवर
सिंह का आत्म विश्वास टूटा नहीं और वे भविष्य में होने वाले स्वतंत्रता प्राप्ति
के युद्ध की योजना बनाने में लगन और निष्ठा के साथ तैयारियाँ करने में लग गए
अर्थात एक बार असफल हो जाने के कारण उन्होंने पीछे हटने के बजाए अपने लक्ष्य को प्राप्त
करने के लिए तैयारियाँ करना सही समझा। वीर कुँवर सिंह वीर होने के साथ–साथ
स्वाभिमानी भी थे। जब वे शिवराजपुर से गंगा पार करते हुए जा रहे थे तो डगलस की
गोली का निशाना बन गए। उनके हाथ पर गोली लगी। उस समय वे न तो वहाँ से भागे और न ही
उपचार की चिंता की, बल्कि हाथ ही काटकर गंगा में बहा दिया। वीर कुँवर सिंह का
स्वाभाव अत्यधिक उदार था। वे किसी भी व्यक्ति से जातिगत भेदभाव नहीं करते थे। यहाँ
तक कि उनकी सेना में इब्राहिम खाँ और किफायत हुसैन मुसलमान होते हुए भी उच्च पदों
पर आसीन थे। वे हिंदू–मुसलमान दोनों के त्योहार सबके साथ मिलकर मनाते थे। उन्होंने
पाठशालाएँ तो बनवाई ही थी साथ ही साथ उन्होंने इस्लाम धर्म की शिक्षा–दीक्षा की
पाठशालाओं को भी बनवाया था।
प्रश्न 5–आमतौर पर मेले मनोरंजन, खरीद–फरोख्त एवं मेलजोल के
लिए होते हैं। वीर कुँवर सिंह ने मेले का उपयोग किस रूप में किया ?
उत्तर–प्रायः मेले का उपयोग
लोगों के मनोरंजन, खरीद–फरोख्त तथा मेलजोल के लिए किया जाता है, लेकिन कुँवर सिंह ने
सोनपुर के मेले का उपयोग स्वाधीनता संग्राम की योजना बनाने के लिए किया। उन्होंने
यहाँ सोनपुर के मेले का उपयोग अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी बैठकों एवं योजनाओं के
लिए किया। यहाँ लोग गुप्त रूप से इकट्ठे होकर क्रांति के बारे में योजनाएँ बनाते
थे। सोनपुर में एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। इसका आयोजन कार्तिक पूर्णिमा
पर होता है। इस मेले में हाथियों की खरीद-बिक्री होती है। इस मेले की आड़ में
कुँवर सिंह अंग्रेजों को चकमा देने में सफल रहे।
6. सन् 1857 के आंदोलन में भाग लेने वाले
किन्हीं चार सेनानियों पर दो-दो वाक्य लिखिए।
उत्तर: सन् 1857 के आंदोलन में भाग लेने वाले चार सेनानियों के नाम
:
क) मंगल पांडे : यह एक सिपाही थे एवं यह
बंगाल आर्मी में शामिल थे। एक बार इन्होंने दूसरे सिपाहियों का आत्मबल बढ़ाने के
लिए कहा था कि “बाहर आओ अंग्रेज यहां है”।
ख) नाना साहेब : इन्होंने कानपुर के कलेक्टर
चार्ल्ज़ हिल्लेरी का विश्वास जीता था कि वह सिपाहियों को लेकर आएंगे उनकी रक्षा
के लिए। लेकिन जब वह अंदर घुसे थे अपने 1500 सिपाहियों के साथ तो इनके खिलाफ आक्रमण बोल दिया
था।
ग) रानी लक्ष्मीबाई : इन्होंने अपने जिंदगी में
काफी चुनौतियों का सामना किया और उन्होंने अन्य महिलाओं को भी यह विश्वास दिलवाया
कि वह भी वीर हो सकती हैं।
घ) तात्या टोपे : तात्या टोपे को सन् 1857 जून के महीने के बाद पेशवा
घोषित किया गया था। तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई की भी बहुत मदद की थी।
7. सन् 1857 के क्रांतिकारियों से
संबंधित गीत विभिन्न भाषाओं और बोलियों में गाए जाते हैं। ऐसे कुछ गीतों को संकलित
कीजिए।
उत्तर: सन् 1857 से संबंधित गीत :
क) 1857 की जंग ए
आज़ादी का क़ौमी गीत!
हम हैं इसके मालिक,
हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है क़ौम का,
जन्नत से भी प्यारा,
ये है हमारी
मिलकियत, हिन्दुस्तान
हमारा,
इसकी रूहानियत से रोशन है, जग सारा।
कितनी क़दीम, कितनी
नईम, सब दुनिया से न्यारा,
करती है, जरखेज
जिसे, गंग ओ जमुन की धारा,
ऊपर बर्फीला परवत,
पहरेदार हमारा।
नीचे साहिल पर बजता,
सागर का नक्कारा।
ख) सन् 1857 के
क्रांतिकारियों से संबंधित एक भोजपुरी गीत :
“अब छोड़ रे फिरंगिया! हमारा डेस्वा लूटपाट केले तहँ, मजवा उड़ेले कैलस, देस पर जुल्म जोर”।
8. वीर कुँवर
सिंह का पढ़ने के साथ-साथ कुश्ती और घुड़सवारी में अधिक मन लगता था। आपको पढ़ने के
अलावा किन किन गतिविधियों या कामों को करने में खूब मजा आता है? लिखिए।
उत्तर: वीर कुँवर सिंह का पढ़ने के
साथ-साथ कुश्ती और घुड़सवारी में बहुत मन लगता था उसी प्रकार मेरी भी बहुत
गतिविधियां है या काम है जिसमें मुझे खूब मजा आता है या मैं उसमें खूब रुचि लेती
हूं जैसे: नाचना, बच्चों
को ट्यूशन पढ़ाना तथा घर के काम करना या खाना पकाना आदि इन सब गतिविधियों में मुझे
खूब आनंद आता है।
9. सन् 1857 मैं अगर आप 12 वर्ष के होते तो क्या करते
कल्पना करके लिखिए।
उत्तर: मैं अगर सन् 1857 में 12 वर्ष की होती तो उस समय
मेरे अंदर बालपन मौजूद होता तो शायद मैं उस आंदोलन में या उस लड़ाई में अपना
ज्यादा सहयोग नहीं दे पाती और उस समय के हालात ही ऐसे थे कि बच्चों का कुछ कर पाना
मुश्किल था लेकिन अगर उस समय कुछ बच्चों को करने दिया जाता तो शायद मैं इतना ही कर
पाती की अपने मां-बाप को सुरक्षित रखने की कोशिश करती और अपने वातावरण अपने आसपास
के माहौल को सुरक्षित रखने की कोशिश करती।
10. अनुमान
लगाइए, स्वाधीनता
की योजना बनाने के लिए सोनपुर के मेले को क्यों चुना गया होगा?
उत्तर: स्वाधीनता की योजना बनाने
के लिए सोनपुर के मेले को इसलिए चुना गया होगा क्योंकि वहां लोग एकत्रित होकर
क्रांति के बारे में योजना बनाते थे और अपने युद्ध की रणनीति तैयार करते थे और वह
स्थान काफी खुला हुआ था और काफी बड़ा था इसलिए कुछ करने में वहां आसानी रहती थी।
11. आप जानते
हैं कि किसी शब्द को बहुवचन में प्रयोग करने पर उसकी वर्तनी में बदलाव आता है जैसे
– सेनानी एक व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं और सेनानियों एक से अधिक व्यक्तियों
के लिए। सेनानी शब्द की वर्तनी में बदलाव यह हुआ है कि अंत के नी से यह नि हो गई।
ऐसे शब्दों को जिनके अंत में दीर्घ ईकार होता है बहुवचन बनाने पर वह इकार हो जाता
है, यदि शब्द
के अंत में हस्व इकार
होता है तो उसमें परिवर्तन नहीं होता जैसे दृष्टि से दृष्टियों।
नीचे दिए गए शब्दों का वचन बदलिए –
1. नीति – नीतियाँ
2. सलामी – सलामियाँ
3. स्थिति – स्थितियाँ
4. गोली - गोलियाँ
5. जिम्मेदारी
- जिम्मेदारियाँ
6. स्वाभिमानी – स्वाभिमानियों