NCERT Class 7th Hindi Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार Question Answer
बिरजू महाराज
से साक्षात्कार Class 7
Question Answer
कक्षा 7 हिंदी पाठ 8 प्रश्न उत्तर – Class 7 Hindi बिरजू महाराज
से साक्षात्कार Question
Answer
पाठ से
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का
सबसे सही उत्तर कौन-सा है ?
उनके सामने तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
प्रश्न 1.
बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों
किया होगा ?
- वे गुरु के प्रति
शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।
- वे नृत्य शिक्षण के
लिए परंपरा को महत्वपूर्ण नहीं मानते थे।
- वे नृत्य के प्रति
शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।
- वे शिष्य की भेंट देने
की सामर्थ्य को परखना चाहते थे।
उत्तर:
- वे नृत्य के प्रति
शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे। (★)
प्रश्न 2.
“जीवन में उतार चढ़ाव तो होता ही है ।” बिरजू
महाराज के जीवन में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए?
- पिता के देहांत के बाद
आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
- कोई भी संस्था नृत्य
प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी।
- किसी समय विशेष में घर
में सुख- समद्धि थी।
- नृत्य के औपचारिक
प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।
उत्तर:
- पिता के देहांत के बाद
आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा। (★)
प्रश्न 3.
बिराजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की
अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?
- संगीत, नृत्य, नाटक और
सभी कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।
- कला संबंधी विषयों से
जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
- वर्तमान समय में कला
भी एक सफल माध्यम नहीं है।
उत्तर:
- कला संबंधी विषयों से
जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। (★)
(ख) अब अपने मित्रों के साथ
चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि अपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर:
(1) मेरे द्वारा इस विकल्प का
चयन करने का कारण यह है कि बिरजू महाराज गंडा बाँधने को एक औपचारिक परंपरा नहीं
बनाना चाहते थे। जब वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन, निष्ठा और
समर्पण को स्वयं जाँच परख लेते थे, तभी गंडा बाँधते थे। गंडा
बाँधने की परंपरा को वे एक पवित्र और पावन परंपरा मानते थे, जिसका निर्वहन वे पूरी ईमानदारी के साथ करते थे।
(2) मेरे द्वारा इस विकल्प का
चयन करने का कारण यह है कि बिरजू महाराज ने अपने जीवन में बचपन से लेकर बड़े होने
तक अनेक उतार-चढ़ाव देखे थे। यद्यपि एक समय में उनका परिवार समृद्ध था किंतु पिता
के देहांत के बाद उनकी आर्थिक परिस्थिति अच्छी नहीं रही। प्रतिकूल स्थितियों में
भी उन्होंने अपने कला-कर्म का पूरी निष्ठा और लगन के साथ निर्वहन किया और नृत्य के
प्रति अपने जुनून को कम नहीं होने दिया।
(3) मेरे द्वारा इस विकल्प का
चयन करने का कारण यह है कि नृत्य कला भी एक बौद्धिक खेल है अतः बिरजू महाराज मानते
थे कि नृत्य, गीत-संगीत आदि कलाएँ बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए
महत्वपूर्ण हैं और वे सभी को इसके लिए प्रेरित करते थे।
(विद्यार्थी अपने मित्रों के
साथ चर्चा करके बताएँगे कि उनके द्वारा विकल्प चुनने के क्या कारण हैं ।)
मिलकर करें
मिलान
पाठ में से
चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए
और इन्हें इनके सही संदर्भों या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
उत्तर:
1. – 2
2. – 6
3. – 1
4. – 4
5. – 3
6. – 5
शीर्षक
• इस पाठ का शीर्षक ‘बिरजू
महाराज से साक्षात्कार’ है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं
तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।
उत्तर:
यदि मुझे इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना होता तो मैं
‘पद्मविभूषण बिरजू महाराज’ देता क्योंकि पद्मविभूषण भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक
सम्मान है जो विविध क्षेत्रों में असाधारण सेवा अथवा उपलब्धि के लिए दिया जाता है।
चूँकि बिरजू महाराज ने कथक के क्षेत्र में अपना अमूल्य और असाधारण योगदान दिया है
जिसके कारण उन्हें यह गरिमामय सम्मान मिला है, इसलिए मुझे पूरा साझात्कार
का उक्त शीर्षक देना उचित और पूरी तरह से प्रासंगिक प्रतीत हुआ।
पंक्तियों पर
चर्चा
साक्षात्कार
में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार
कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए ।
- “तुम नौकरी में बँट जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी
तरह पनप नहीं पाएगा।”
- “लय हम नर्तकों के लिए देवता है । “
- “नृत्य में शरीर, ध्यान और
तपस्या का साधन होता है ।”
- “कथक में गर्दन को हल्के से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान ।”
उत्तर:
- नृत्य में साधना, समर्पण और ध्यान का संकेंद्रण आवश्यक होता है। यह एक
पूर्णकालिक समय की माँग करने वाली विधा है । आजीविका के लिए नौकरी जैसे
पूर्णकालिक साधन को अपनाने के बाद नृत्य के प्रति वह प्रतिबद्धता, समर्पण अथवा लगन नहीं रह पाएगी जो अपेक्षित है।
- जिस प्रकार देवता के
प्रति आराधना करते समय पूरी लगन, निष्ठा और
समर्पण की आवश्यकता होती हैं, उसी
प्रकार नृत्य में लय ही उसकी विशिष्टता है। नर्तकों को लय को देवता तुल्य
मानकर साधना करनी पड़ती है।
- नृत्य शरीर के माध्यम
से किया जाता है। नृत्य में तपस्या और ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए शरीर
को ध्यान और तपस्या का साधन कहा गया है।
- जिस प्रकार चिराग की
लौ बहुत ही मधुरता से धीरे-धीरे लय के साथ जलती है उसी प्रकार कथक नृत्य करते
समय नर्तक अपनी गर्दन को बहुत धीरे से मधुरता और नजाकत से हिलाता है।
सोच-विचार के
लिए
प्रश्न 1.
साक्षात्कार को एक बार पुनः पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों
के उत्तर लिखिए ।
(क) बिरजू महाराज नृत्य का
औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?
उत्तर:
बिरजू महाराज के घर में कथक का माहौल था। उनके पिता व दोनों
चाचा कथक नर्तक थे, अतः औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही बिरजू महाराज
उन्हें देख-देखकर कथक करना सीख गए थे।
(ख) नृत्य सीखने के लिए
संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर:
नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना इसलिए आवश्यक है
क्योंकि संगीत में लय होती है अतः उसका ज्ञान आवश्यक है। लय एक तरह का आवरण है जो
नृत्य को सुंदरता प्रदान करता है। अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ है, तो वह जान पाएगा कि नृत्य की लय ठीक है या नहीं ।
(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू
महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी ?
उत्तर:
नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज का मशीनों में खूब मन लगता
था। कोई भी मशीन या यंत्र खोलकर उसके कल-पुर्जे देखने में उनकी रुचि थी। उनके
ब्रीफकेस में हरदम पंखा, फ्रिज ठीक करने वाले औज़ार रहते थे। इसके अलावा, उन्हें पेंटिंग बनाने में भी रुचि थी ।
(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों
की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?
उत्तर:
बिरजू महाराज ने अभिभावकों से कहा है कि यदि बच्चे की रुचि
है, तो उसे लय के साथ खेलने दें। इस खेल की दुनिया में संतुलन
और समय का सदुपयोग बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए बहुत ज़रूरी है। बच्चों के पास
शिक्षा या कोई न कोई हुनर ज़रूर होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। हुनर ऐसा
खज़ाना है, जिसे कोई छीन नहीं सकता, वक्त पड़ने पर हमेशा काम
आता है।
प्रश्न 2.
पाठ में से उन प्रसंगों की पहचानकर उन पर चर्चा कीजिए, जिनसे पता चलता है कि-
(क) बिरजू महाराज बहुमुखी
प्रतिभा के धनी थे।
उत्तर:
घर में कथक का माहौल था। उनके पिता, चाचा आदि कथक नर्तक थे,
अत: बिरजू महाराज ने औपचारिक प्रशिक्षण से पूर्व ही कथक सीख
लिया था और नवाब के दरबार में नृत्य प्रस्तुतियाँ भी देने लगे थे।
- वे नृत्य के साथ ही
बजाते और गाते भी थे। इसके अतिरिक्त नृत्य नाटिकाएँ और उनके लिए संगीत भी
तैयार करते थे।
- उन्होंने कथक की
पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए अपने परिवार की विरासत को सँभालते हुए
प्रस्तुतीकरण का एक नया रूप तैयार किया। इसी प्रकार टैगोर, त्यागराज आदि कई आधुनिक कवियों की रचनाओं को लेकर भी
कथक रचनाएँ तैयार कीं ।
- उन्होंने बहुत छुटपन
से ही तबला बजाना शुरू कर दिया था। उनके चाचा ने उनके हाथ की कला और तबले के
धुन की लय को पहचाना और उन्हें तबला बजाने के लिए प्रोत्साहित किया। पाँच
वर्ष का होते-होते वे हारमोनियम भी बजाने लगे और वे फ़िल्मी गीतों पर भी गाते
और खूब नाचते । परिवार से उन्हें इसके लिए सदैव प्रोत्साहन मिलता।
- मशीनी कामों में भी
उनकी रुचि थी। वे पंखा, फ्रिज़ आदि स्वयं ठीक
कर लेते थे। उनका कहना था, अगर 1. मैं नर्तक न होता तो शायद इंजीनियर होता ।
- अपनी बेटी-दामाद को
देखकर बिरजू महाराज को पेंटिंग बनाने का शौक भी हो गया। जब उनका मन होता, तब वे पेंटिंग भी बनाते थे ।
(ख) बिरजू महाराज को नृत्य
की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।
उत्तर:
संघर्षों के दौर में उनकी माँ सदैव उनकी सहयोगी बनी रहीं ।
पिता की मृत्यु के बाद आर्थिक संकट आने पर माँ और बेटे ने बड़ी मुश्किलों से
गुजारा किया। वे पुरानी ज़री की साड़ियों को जलाकर उनके सोने-चाँदी के तार निकालकर
बेचते थे और अपना गुज़ारा करते थे। नृत्य के कार्यक्रम से कभी-कभी पैसा आ जाता था, किंतु कई बार ऐसी भी परिस्थितियाँ आई कि एक ही समय खाना मिल पाता था। किंतु
फिर भी उनकी माँ उनका हौसला बढ़ाती और कहतीं खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी
मिले, पर अभ्यास जरूर करो।
(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के
लिए समानता के पक्षधर थे।
उत्तर:
बिरजू महाराज की बहनों को कथक नहीं सिखाया गया, किंतु उन्होंने अपनी बेटियों को खूब कथक सिखाया। उनका कहना था कि लड़कियों के
पास शिक्षा या कोई-न-कोई अन्य हुनर अवश्य होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
वे लड़कों के समान लड़कियों को भी शिक्षा का समान अवसर देने के पक्ष में थे।
शब्दों की बात
(क) पाठ में आए हुए कुछ शब्द
नीचे दिए गए हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए-
आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या
पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया
है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि—
अदृश्य – अ + दृश्य
आवरण- आ + वरण
प्रशिक्षण – प्र + शिक्षण
यहाँ पर ‘अ’, ‘आ’, ‘प्र’ उपसर्ग हैं।
शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और
मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव
उत्पन्न करते हैं, जैसे कि—
सीमित – सीमा + इत
सुंदरता – सुंदर + ता
भारतीय भारत + इय
सामूहिक – समूह + इक
यहाँ पर ‘इत’, ‘ता’, ‘ईय’, और ‘इक’ प्रत्यय हैं।
उत्तर:
(विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या – 106-107 को पढ़कर उपसर्ग और प्रत्यय के विषय में समझें।)
(ख) नीचे दो तबले हैं एक में
कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द
हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए-
उत्तर:
मार्मिक, आगमन, राष्ट्रीय, खंडित, श्रमिक, सांस्कृतिक, अकर्म, सुकर्म, अनाम, असाधरण ।
(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व
प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करेंगे।
शब्दों का
प्रभाव
• पाठ में आए नीचे दिए गए
वाक्य पढ़िए-
प्रश्न 1.
“ कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो
गए।” इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाकर वाक्य पढ़िए और पहचानिए कि क्या
परिवर्तन आया है?
पाठ में आए हुए वाक्यों में से ऐसे ही कुछ और शब्द ढूँढ़कर
उन्हें रेखांकित कीजिए जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है ?
उत्तर:
इस वाक्य में ‘इतना’ शब्द के प्रयोग से वाक्य में विशेष
प्रभाव उत्पन्न होता है।
अन्य उदाहरण
- जिन डिब्बों में कभी तीन चार
लाख की कीमत के हार हुआ करते थे वे अब खाली पड़े थे।
- भेंट मिलने पर ही गंडा
बाँधूगा ।
- कई वर्षों तक नृत्य
सिखाने के बाद जब देखता हूँ कि शिष्य में सच्ची लगन है तभी गंडा
बाँधता हूँ।
- तुम नौकरी में बँट
जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।
- हुनर ऐसा खज़ाना है
जिसे कोई नहीं छीन सकता और वक्त पड़ने पर काम आता है।
पाठ से आगे
कला का संसार
(क) बिरजू महाराज – ” कथक की
पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में
बदलाव किए हैं। ” इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखिए कि कथक की प्रस्तुतियों में
किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?
उत्तर:
बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपराओं को कायम रखते हुए
अपने पारिवारिक नर्तकों की भाव- 9 -भंगिमाओं को भी शामिल किया।
इसके अतिरिक्त उन्होंने आधुनिक कवियों की (चाहे वह किसी भी भाषा के हों) रचनाओं को
लेकर भी कथक नृत्य की प्रस्तुतियाँ तैयार कीं। इस प्रकार, पांरपरिक शैली के अतिरिक्त उन्होंने नए प्रयोग करते हुए प्रस्तुतियों में
परिवर्तन किया है।
(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय
नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए ।
(इस प्रश्न के उत्तर के लिए आप अपने सहपाठियों, अभिभावकों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की
सहायता भी ले सकते हैं ।)
उत्तर:
लोकनृत्य
1. लोकनृत्य विशिष्ट प्रादेशिक और सांस्कृतिक परंपराओं से
जुड़े होते हैं।
2. लोकनृत्य प्रायः सरल और अनौपचारिक होते हैं, इनकी प्रस्तुति आम लोगों द्वारा की जाती है।
3. लोकनृत्य लोकप्रिय और मनोरंजक होते हैं। इन्हें त्योहारों, पारिवारिक उत्सवों आदि में प्रस्तुत किया जाता है।
शास्त्रीय
नृत्य
1.
शास्त्रीय
नृत्य पारंपरिक और संरचित होते हैं। इन्हें विशिष्ट नियमों के अनुसार प्रस्तुत
किया जाता है।
2.
शास्त्रीय
नृत्य प्रायः थोड़ा कठिन होते हैं, इन्हें प्रस्तुत करने के
लिए विशेष प्रशिक्षण एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है।
3.
शास्त्रीय
नृत्य अकसर आध्यात्मिक और भावनात्मक होते हैं। इन्हें विशिष्ट रागों और तालों के
साथ प्रस्तुत किया जाता है।
भारत के कुछ
प्रसिद्ध लोकनृत्य हैं- भांगड़ा (पंजाब), गरबा (गुजरात), लावणी (महाराष्ट्र) ।
भारत के कुछ शास्त्रीय नृत्य हैं- भरतनाट्यम (तमिलनाडु), ओडिसी (ओडिशा), कथक (उत्तर भारत)
इन दोनों
प्रकार के नृत्यों में अपनी विशिष्ट विशेषताएँ और महत्व हैं और ये भारतीय संस्कृति
की समृद्धि को दर्शाते हैं।
(ग) “बैरगिया नाला जुलुम जोर,
नौ कथिक नचावें तीन चोर ।
जब तबला बोले धीन – धीन,
तब एक-एक पर तीन-तीन ।”
इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का
उल्लेख है । आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत
कीजिए ।
उत्तर:
यह अवध क्षेत्र में गाया जाने वाला पारंपरिक टोली गीत है।
होली खेलें रघुबीरा
अवध में होली खेलें रघुबीरा
सिया के हाथ कनक पिचकारी
लक्ष्मण हाथ अबीरा अवध में होली खेलें रघुबीरा ।
साक्षात्कार की
रचना
प्रस्तुत पाठ
की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यतः इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया
जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इस संदर्भ में भिन्न है कि इसका एक
निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में
प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिलकुल भिन्न है। प्रस्तुत
साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य
साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के
सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर
निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न
किस प्रकार के बनाए गए हैं।
प्रस्तुत
‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए –
(क) साक्षात्कार से पहले
क्या – क्या तैयारियाँ की गई होंगी?
उत्तर:
1. सर्वप्रथम बिरजू महाराज के विषय में जानकारियाँ एकत्र की गई
होंगी।
2. वे कहाँ रहते हैं; कब उपलब्ध हो सकेंगे, कितना समय दे सकेंगे इत्यादि विश्वसनीय सूत्रों से संपर्क करके साक्षात्कार
निश्चित किया गया होगा ।
3. प्रश्नों की सूची बनाई गई होगी।
4. विचार-विमर्श के पश्चात उन प्रश्नों का चुनाव किया गया होगा, जो साक्षात्कार के उद्देश्य को पूर्ण करते हैं।
(ख) आप इस साक्षात्कार में
और क्या – क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?
उत्तर:
मैं इस साक्षात्मकार में बिरजू महाराज शिक्षा-दीक्षा, उनके बचपन और युवावस्था के मित्रों, खान-पान में उनकी रुचि आदि
के बारे में जानने के लिए कुछ प्रश्न जोड़ना चाहूँगा । इसके अतिरिक्त देश – दुनिया
की वर्तमान परिस्थितियों पर भी उनका दृष्टिकोण जानना चाहूँगा ।
(ग) यह साक्षात्कार एक
सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपको किसी सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या सहायिका का साक्षात्कार लेना हो तो आपके
प्रश्न किस प्रकार के होंगे?
उत्तर:
यदि मैं किसी सब्जी विक्रेता का साक्षात्कार लूँगा, तो मैं इन प्रश्नों को उससे पूछँगा कि उसका दिन कैसे शुरू होता है; वह सब्ज़ियों का चुनाव कैसे करता है; खड़े होकर सब्ज़ी बेचने में
लाभ है या घूम-घूमकर ; उसे कैसी-कैसी कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है; कितनी कमाई हो जाती है;
वह संतुष्ट है या कभी-कभी यह काम छोड़ देने का मन करता है, कितने बजे तक अपने घर पहुँच जाता है; इसी प्रकार के प्रश्न
रिक्शा चालक या घरेलू सहायिका से उसके पेशेगत और व्यक्तिगत कार्यों के संदर्भ में
पूछे जा सकते हैं।
सृजन
आपके विद्यालय
में कथक नृत्य का आयोजन होने जा रहा है।
(क) आप दर्शकों को कथक
नृत्यकला के बारे में क्या-क्या बताएँगे? लिखिए।
उत्तर:
1.
किस प्रकार की
कथक नृत्य कला की प्रस्तुति होने जा रही है, उसके विषय में बताएँगे।
2.
नृत्य के
माध्यम से कौन – सी कहानी प्रस्तुत की जाएगी, उसकी थीम के विषय में
बताएँगे।
3.
नृत्य को
प्रस्तुत करने वाले कलाकार और उसका सहयोग करने वाले सहयोगियों की जानकारी देंगे।
4.
इसके अतिरिक्त
यदि किसी विशिष्ट पहलू पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता हुई, तो उससे संबंधित जानकारी देंगे।
(ख) इस कार्यक्रम की सूचना
देने के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए ।
उत्तर:
सम्मानित अतिथियों, अभिभावकों, शिक्षकों और प्रिय विद्यार्थियों को सूचित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रहे है
कि दिनांक 12.4.2025 को दोपहर 2:30 पर संत कबीर विद्यालय के
वाटिका सभागार में कक्षा 10
की प्रतिभाशाली छात्रा कुमारी हार्दिका बंसल द्वारा कथक
नृत्य की विविध शैलियों में मोहक नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा। आप सभी से अनुरोध है
कि कृपया समय पर पधार कर कार्यक्रम का आनंद ले और बच्चों का उत्साहवर्धन करें।
संपर्क करें-संत कबीर विद्यालय प्रशासन, नई दिल्ली, फोन-989744600
(ग) यदि इस नृत्य कार्यक्रम
में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है और वह नृत्य का आनंद लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय
की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?
उत्तर:
1. दृष्टिबाधित दर्शक के लिए विद्यालय द्वारा ऑडियो विवरण
प्रदान किया जा सकता है, जिसमें नृत्य की गतिविधियों, केंद्रीय भाव
और संगीत का वर्णन किया जाता है।
2. नृत्य कार्यक्रम से पहले या बाद में दृष्टिबाधित दर्शकों को
ब्रेल लिपि द्वारा तैयार नृत्य की मुद्राओं और गतिविधियों को व्यक्त करने वाले
कागज़ को स्पर्श करके अनुभव करने का अवसर प्रदान किया जा सकता है।
3. दृष्टिबाधित दर्शकों के लिए विशेष सिटिंग व्यवस्था की जा
सकती है; जैसे कि ध्वनि प्रणाली के साथ विशेष सीटें |
आज की पहेली
“अगर नर्तक को सुर-ताल की
समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से
नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा । ” संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल
का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं
द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में व्यतीत
हो रहे समय को हम सेकेंड के द्वारा मापते हैं। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त
रूप होता है।
संगीत के समय
को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है और ताल कई मात्राओं का संयुक्त रूप है। जिस
तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकेंड होते हैं, उसी तरह ताल
में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।
एक विद्यार्थी
ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में
संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढ़िए-
उत्तर:
• सुर ताल और मात्रा के बारे में जानने के लिए
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 109 देखें।)
एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक
दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन
तालों के नाम ढूँढ़िए-
• कल हमारे विद्यालय में
संगीत और नृत्य सभा का आयोजन हुआ था। उसमें एक – दो नहीं बल्कि चार कलाकार आए थे।
उन कलाकारों में एक का नाम रूपक और दूसरे का नाम लक्ष्मी था। शेष दो कलाकारों के
नाम पता नहीं चल पाए। वे दोनों जब अपनी प्रस्तुति के लिए मंच पर आए तो दर्शकों से
पूछने लगे–“ तिलवाड़ा, दादरा या झूमरा?” दर्शक बोले–“तीनों में से
कोई नहीं। हमें दीपचंदी और कहरवा पसंद है।” दर्शकों की यह बात सुनते ही कलाकारों
ने अपनी प्रस्तुति प्रारंभ कर दी।
अब नीचे दी गई
शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए-
उत्तर:
1.
रूपक
2.
लक्ष्मी
3.
दादरा
4.
झूमरा
5.
तिलवाड़ा
6.
दीपचंदी
7.
कहरवा
झरोखे से
नृत्य की छटाएँ
बिरजू महाराज
ने भारत के विभिन्न राज्यों के शास्त्रीय नृत्यों का उल्लेख किया है। आइए, इनके बारे में अपनी समझ बढ़ाते हैं—
भरतनाट्यम— यह
नृत्य विधा का सर्वाधिक प्राचीन रूप है। इसका नाम ‘भरतमुनि’ तथा ‘नाट्यम’ शब्द से
मिलकर बना है। कुछ विद्वान ‘भरत’ शब्द को राग ताल, भाव से भी
जोड़ते हैं। इस नृत्य विद्या की उत्पत्ति का संबंध तमिलनाडु में मंदिर नर्तकों की
एकल नृत्य प्रस्तुति ‘सादिर’ से है।
कथकली— दक्षिण
भारत के एक राज्य के मंदिरों में रामायण तथा महाभारत की कहानियाँ प्रस्तुत करने
वाली दो लोक नाट्य परंपराएँ, रामानाट्टम तथा
कृष्णानाट्टम कथकली के उद्भव का स्रोत हैं। यह संगीत, नृत्य और नाटक का अद्भुत संयोजन है। सुप्रसिद्ध मलयाली कवि वी. एन. मेनन के
द्वारा राजा मुकुंद के संरक्षण में इसका प्रचार-प्रसार हुआ। यह नृत्य पुरूष मंडली
द्वारा किया जाता है। इसकी विषयवस्तु महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित कहानियाँ
होती हैं। पूरे नृत्य नाटक का अनमोल आभूषण हैं भाव-भंगिमाएँ। आँखों और भौहों का लय
संचालन बहुत महत्वपूर्ण है।
कथक— ब्रजभूमि
की रासलीला से उत्पन्न, कथक एक परंपरागत नृत्य विद्या है। कथक का नाम ‘कथिक’ से
लिया गया है, जिसे कथावाचक भी कहते हैं।
ये कथिक महाकाव्यों के पदों व छंदों को संगीत तथा
भाव-भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत करते थे। कथक की महत्वपूर्ण विशेषता विभिन्न घरानों
का विकास है। जुगलबंदी कथक प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण है, जिसमें तबलावादक तथा नर्तक के बीच प्रतिस्पर्धात्मक खेल होता है।
कुचिपुड़ी—
आंध्र प्रदेश का कुचिपुड़ी नृत्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य एक पारंपरिक शैली है।
कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुति प्रार्थना से आरंभ होती है, तत्पश्चात नृत्य-अभिनय को प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य प्रस्तुति कर्नाटक
संगीत की संगत दी जाती है। कुचिपुड़ी नृत्य का समापन तरंगम प्रस्तुति के पश्चात
होता है।
मणिपुरी नृत्य
– पौराणिक आख्यानों के अनुसार मणिपुरी नृत्य का स्रोत भारत के एक उत्तर-पूर्वी
राज्य मणिपुर की घाटियों में स्थानीय गंधर्वों के साथ शिव और पार्वती का दैवीय
नृत्य है। इस राज्य के प्रमुख त्योहार ‘लाई हरोबा’ में इस नृत्य को करने का प्रचलन
है। सामान्यत: यह नृत्य स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इसमें चेहरे की अभिव्यक्ति
के स्थान पर हाथ के हाव-भाव व पैरों की गति महत्वपूर्ण होती है।
ओडिसी नृत्य—
नाट्यशास्त्र में उल्लिखित ‘सोदा नृत्य’ से ओडिसी नृत्य रूप को नाम मिला है। कुछ
भाव-मुद्राएँ भरतनाट्यम् से मिलती-जुलती हैं। इस नृत्य रूप का मुख्य आकर्षण है।
त्रिभंग मुद्रा अर्थात शरीर का तीन मोड़ वाला रूप। नृत्य के दौरान शरीर का निचला
हिस्सा काफी सीमा तक स्थिर रहता है और धड़ लय-ताल के साथ गति करता है।
मोहिनीअट्टम —
भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से एक मोहिनीअट्टम का उद्भव केरल राज्य में हुआ।
मोहिनीअट्टम की विशेषता घुमावदार कोमल भाव वाले आंगिक अभिनय हैं। इस नृत्य के
अंतर्गत अभिनय पर बल दिया जाता है। इस नृत्य शैली में मुख की अभिव्यक्ति और हस्त
मुद्राओं को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। नर्तकियाँ पारंपरिक पोशाक पहनती हैं
जिसे ‘मुंडू’ कहा जाता है। पारंपरिक रूप से मोहिनीअट्टम केवल स्त्रियों द्वारा ही
किया जाता है, जबकि कथकली केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है।
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बारे में जान-समझ सकते हैं-
- भारतीय शास्त्रीय
संगीत में नृत्य संगत
https://www.youtube.com/watch?v=W1ZXCUgi848 - कथक परिचय भाग 7
https://www.youtube.com/watch?v=Dprj69iAM24 - पंडित बिरजू महाराज
https://www.youtube.com/watch?v=0r3M8D2eAGg&list=PLqtVCj5iilH6BnMc4hIRzVyJ_wtPgky9B
(विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक के
पृष्ठ संख्या – 113 पर दिए गए लिंक द्वारा निर्देशित जानकारी स्वयं प्राप्त
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