सोमवार, 1 जनवरी 2024

NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

NCERT Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 14 आर्यभटः

Class 8 Sanskrit Chapter 14 आर्यभटः Summary

पाठ परिचय
ज्ञान-विज्ञान की सुदीर्घ परमपरा भारतवर्ष की अमूल्य निधि है। इस परम्परा को प्रबुद्ध मनीषियों ने सम्पोषित किया। आर्यभट इन्हीं मनीषियों में अग्रगण्य थे। दशमलव पद्धति आदि के प्रारम्भिक प्रयोक्ता आर्यभट ने गणित को विज्ञान बनाने वाले तथा गणितीय गणना पद्धति के द्वारा आकाशीय पिण्डों (नक्षत्रों) की गति के प्रवर्तन करने वाले ये प्रथम आचार्य थे। आचार्य आर्यभट के इसी वैदुष्य के उद्घाटन प्रस्तुत पाठ में है। अधिक जानकारी के लिए ‘योग्या-विस्तार:’ द्रष्टव्य है।

शब्दार्थ-
उदेति – उदित होता है;

लोके – संसार में;

अवबोध्यम् – जानने योग्य;

अचलः – गतिहीन;

स्थिर चला – अस्थिर, गतिशील;

स्वकीये – अपने;

अक्षे – धुरी पर;

घूर्णति – घूमती है;

सुस्थापितः – भली-भाँति स्थापित;

प्राथम्येन – प्राथमिकता से;

ज्योतिविद् – ज्योतिषी;

रूढिः – प्रथमा, परम्परा

प्रत्यादिष्टा – खण्डन किया;

ख्रिस्ताब्दे – ईस्वी में;

षट्सप्ततिः – छिहत्तर;

वयसि – आयु में;

निकषा – निकट;

वेधशाला – ग्रह-नक्षत्रों को जानने की प्रयोगशाला;

आकलनम् – गणना;

आदधाति – रखता है;

भ्रमन्त्या – रूक जाता है।

अपरत्र – दूसरी ओर;

अवस्थितः – स्थित:

उपेक्षिता – नहीं माने गए;

पण्डितम्मन्यानाम् – स्वयं को अधिक विद्वान मानने वालो की;

कालातिगामिनी – समय को लाँघने वाली;

प्रकटितः – प्रकट किया; असौ – वह।

 

मूलपाठः
पूर्वदिशायाम्…………वेत्ति।

सरलार्थः
संसार में यह देखा जाता है कि सूर्य पूर्व दिशा में उदित होता है और पश्चिम दिशा में अस्त हो जाता है। परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सूर्य गतिशील है। सूर्य स्थिर है और पृथ्वी गतिशील है जो अपने अक्ष (धुरी) पर घूमती है। यह सिद्धान्त अब पूरी तरह स्थापित है। यह सिद्धान्त सबसे पहले जिसने स्थापित किया वे थे – महान् गणितज्ञ और ज्योतिषी ‘आर्यभट’। पृथ्वी स्थिर है’ इस परम्परा वाली प्रथा को उन्होंने नकार दिया। उन्होंने उदाहरण दिया कि ‘गतिशील नौका में बैठा हुआ व्यक्ति नौका के स्थिर होने का अनुभव करता है और दूसरे पदार्थो को गतिशील समझता है।’ इसी प्रकार गतिशील पृथ्वी में स्थिर मानव पृथ्वी को स्थिर समझता है। और सूर्यादि ग्रहों को गतिशील जानता है।

 

तमे ख्रिस्ताब्दे……………..दृश्यते।

सरलार्थः
476 ई. में सन में आर्यभट्ट ने जन्म लिया। यह उनके द्वारा ‘आर्यभटीयम् नामक ग्रन्थ’ में लिखित है यह ग्रन्थ उन्होंने तेईसवे (23वें) वर्ष में रचा। ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) के निकट आर्यभट को वेधशाला की। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उसकी कर्मभूमि पाटलिपुत्र ही थी।

आर्यभट का योगदान गणित ज्योतिष से है, जहाँ संख्याओं का आकलन (गणना) महत्त्व रखता है। आर्यभट फलितज्योतिष में विश्वास नहीं करते थे। गणितीय पद्धति के लिए गए आकलन को ही आधार मानकर उन्होंने प्रतिपादित किया कि ग्रहण में राहु व केतु राक्षस कारण नहीं है इसमें सूर्य, चन्द्र और पृविी ये तीन ही कारण है। सूर्य के चारों और धूमती दुई पृथ्वी व चन्द्रमा के परिक्रमा। पथ के संयोग होने के कारण ग्रहण होता है। जब पृथ्वी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रूक जाता है। तब चन्द्रग्रहण होता है। वैसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीच आए हुए चन्द्रमा की छाया पड़ने से सूर्यग्रहण दिखाई देता है।

समाजे……….आसीत्।

सरलार्थः
समाज के नए विचारों को अपनाने में प्रायः सामान्य लोग कठिनाई का अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में उसी प्रकार आर्यभट का विरोध भी हुआ। उसके सिद्धान्तों की उपेक्षा की गई। वे स्वयं को विद्वान मानने वाले लोगों में उपहास के पात्र बने। फिर भी उनकी दृष्टि काल को लाँघने वाली थी। आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा उनमें व उनके सिद्धान्तों में आदर प्रकट किया गयाहै। इसी कारण से हमारे प्रथम उपग्रह का नाम ‘आर्यभट’ रखा गया। वास्तव में ये भारतीय गणित-परम्परा तथा विज्ञान-परम्परा के शिखर श्रेष्ठ पुरुष’ थे।

अभ्यासः

प्रश्न 1.
एकपेदन उत्तरत-
(क) सूर्यः कस्यां दिशायाम् उदेति?
उत्तरम्:
पूर्वदिशायाम्।

(ख) आर्यभटस्य वेधशाला कुत्र आसीत्?
उत्तरम्:
पाटलिपुत्रे।

(ग) महान् गणितज्ञ: ज्योतिर्विच्च कः अस्ति?
उत्तरम्:
आर्यभटः।

(घ) आर्यभटेन कः ग्रन्थः रचितः?
उत्तरम्:
आर्यभटीयम्।

(ङ) अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम किम् अस्ति?
उत्तरम्:
आर्यभटम्

प्रश्न 2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) कः सुस्थापितः सिद्धांत?
उत्तरम्:
आर्यभटः सूर्योऽचलः पृथिवी च चला या स्वकीये अक्षे घूर्णति इति साम्प्रतं सुस्थापितः सिद्धान्तः।

(ख) चन्द्रग्रहणं कथं भवति?
उत्तरम्:
यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरूध्यते तदा चन्द्राग्रहणं भवति।

(ग) सूर्यग्रहणं कथं दृश्यते?
उत्तरम्:
पृथ्वी सूर्ययोः मध्ये समागतस्य चन्द्रस्य छायापातेन सूर्य ग्रहणं दृश्यते।

(घ) आर्यभटस्य विरोधः किमर्थमभवत्?
उत्तरम्:
समाजे नूतनानां विचारणाम् स्वीकरने प्राय: सामान्यजना: काठिन्यं अनुभवन्ति। भारतीय ज्योतिष शास्त्रे तथैव आर्यभटस्य अपि विरोधः अभवत्।

(ङ) प्रथमोपग्रहस्यं नाम आर्यभटः इति कथं कृतम?
उत्तरम्:
आधुनिकैः वैज्ञानिकैः तस्य सिद्धान्तै समादरः प्रकटितः। अस्मादेव कारणाद् अस्माकं प्रथमोपग्रहस्य नाम आर्यभटः इति कृतम।

प्रश्न 3.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) सूर्यः पश्चिमायां दिशायाम् अस्तं गच्छति?
उत्तरम्:
सूर्यः कस्यां दिशायाम् अस्तं गच्छति?

(ख) पृथिवी स्थिरा वर्तते इति परम्परया प्रचलिता रूढिः?
उत्तरम्:
पृथिवी स्थिरा वर्तते इति कया प्रचलिता रूढि:?

(ग) आर्यभटस्य योगदानं गणितज्योतिष संबद्धः वर्तते?
उत्तरम्:
आर्यभटस्य योगदानं कः संबद्धः वर्तते?

(घ) समाजे नूतनविचाराणाम् स्वीकरणे प्रायः सामान्यजनाः काठिन्यमनुभवन्ति?
उत्तरम्:
समाजे नूतनविचाराणाम् स्वीकरणे प्रायः के काठिन्यमनभवन्ति?

(ङ) पृथ्वीसूर्ययोः मध्ये चन्द्रस्य छाया पातेन सूर्य ग्रहणं भवति?
उत्तरम्:
कयो: मध्ये चन्द्रस्य छाया पातेन सूर्य ग्रहणं भवति?

प्रश्न 4. मञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
(नौकाम्, पृथिवी, तदा, चला, अस्त)
(क) सूर्य पूर्वदिशायाम् उदेति पश्चिमदिशि च _________ गच्छति।
(ख) सूर्य अचल: पृथिवी च _________
(ग) _________ स्वकीये अक्षे घूर्णति।
(घ) यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरूहयते _________ चन्द्रग्रहणं भवति।
(ङ) नौकायाम् उपविष्ट: मानव: _________ स्थिरामनुभवति।
(च) उदाहरणानुसारं पदपरिचयं ददत
उत्तरम्:
(क) सूर्य पूर्वदिशायाम् उदेति पश्चिमदिशि च अस्तं गच्छति।
(ख) सूर्य अचल: पृथिवी च चला।
(ग) पृथिवी स्वकीये अक्षे घूर्णति।
(घ) यदा पृथिव्याः छायापातेन चन्द्रस्य प्रकाशः अवरूहयते तदा चन्द्रग्रहणं भवति।
(ङ) नौकायाम् उपविष्ट: मानव: नौकां स्थिरामनुभवति।

प्रश्न 5. सन्धिविच्छेदं कुरुतं-
(क) ग्रन्थोऽयम् – _______ + _________
(ख) सूर्याचलः – _______ + _________
(ग) तथैव – _______ + _________
(घ) कालातिगामिनी – _______ + _________
(ङ) प्रथमोपग्रहस्य – _______ + _________
उत्तरम्:
(क) ग्रन्थोऽयम् – ग्रन्थः + अयम्
(ख) सूर्याचलः – सूर्य + अचलः
(ग) तथैव – तथा + एव
(घ) कालातिगामिनी – काल + अतिगामिनी
(ङ) प्रथमोपग्रहस्य – प्रथम + उपग्रहस्य

प्रश्न 6(अ). अधोलिखितपदानां विपरीतार्थकपदानि लिखत-
(क) उदयः – __________
(ख) अचलः – __________
(ग) अन्धकारः – __________
(घ) स्थिरः – __________
(ङ) समादरः – __________
(च) आकाशस्य – __________
उत्तरम्:
(क) उदयः – अस्तः
(ख) अचलः – चल:
(ग) अन्धकारः – प्रकाशः
(घ) स्थिरः – अस्थिरः
(ङ) समादरः – निरादरः
(च) आकाशस्य – पातालस्य

प्रश्न 6(आ). अधोलिखितपदानां समानार्थकपदानि पाठात् चित्वा लिखत-
(क) संसारे – ___________
(ख) इदानीम् – ___________
(ग) वसुन्धरा – ___________
(घ) समीपम् – ___________
(ङ) गणनम् – ___________
(च) राक्षसौ – ___________
उत्तरम्:
(क) संसारे – लोके
(ख) इदानीम् – अधुना
(ग) वसुन्धरा – पृथ्वी
(घ) समीपम् – निकषा
(ङ) गणनम् – आकलनं
(च) राक्षसौ – दानवौ

प्रश्न 7. अधोलिखितानि पदानि आधुत्य वाक्यानि रचयत-
साम्प्रतम्: – __________
निकषा – __________
परितः – __________
उपविष्टः – __________
कर्मभूमिः – __________
वैज्ञानिक: – __________

उत्तरम्-

साम्प्रतम्ः        (अब)           साम्प्रतः क्रीडनीयम्।

निकषा          (निकट)         गृहम् निकषा मन्दिरम् अस्ति।

परितः           (चारों ओर)       विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति।

उपविष्टः         (बैठा हुआ)       'सः उपविष्टः पठति।

कर्मभूमिः        (कर्मभूमि)       पठनमेव मे कर्मभूमिः।

वैज्ञानिकः        (वैज्ञानिक)       अहं वैज्ञानिकः भवितुम् इच्छामि।

 

योग्यता-विस्तार
आर्यभट को अश्मकाचार्य नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है कि इसके जन्मस्थान के विषय में विवाद है। कोई इन्हें पाटलिपुत्र का कहते हैं तो कोई महाराष्ट्र का।

आर्यभट ने दशमलव पद्धति का प्रयोग करते हुए π (पाई) का मान निर्धारित किया। उन्होंने दशमलव के बाद के चार अंकों तक π के मान को निकाला। उनकी दृष्टि में π का मान है 3.1411 आधुनिक गणित के π का मान, दशमलव के बाद सात अंकों तक जाना जा सकता है, तदनुसार π = 3.14169261 भारतीयज्योतिषशास्त्र का उद्भव हुआ। कालान्तर में इसके अन्तर्गत ग्रहों का संचार, वर्ष, मास, पक्ष, वार, तिथि, घंटा आदि पर गहन विचार, किया जानेलगा। लगध, आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, बालगंगाधर तिलक, रामानुजन् आदि हमारे देश के प्रमुख ज्योतिषशास्त्री हैं। आर्यभटीयम्, सौरसिद्धान्त: बृहत्संहिता लीलावती, पञ्चसिद्धान्तिका आदि ज्योतिष के प्रमुख संस्कृत ग्रन्थ हैं।

आर्यभटीयम्-आर्यभट ने 499 ई. में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ 20 आर्याछन्दों में निबद्ध है। इसमें ग्रहों की गणना के लिए कलि संवत् (499 ई. में 3600 कलि संवत्) को निश्चित किया गया है।

गणितज्योतिष-संख्या के द्वारा जहाँकाल की गणना हो वह गणित ज्योतिष है। ज्योतिषशास्त्र की तीन विधाओं यथा-सिद्धान्त, फलित एवं गणित में यह सर्वाधिक प्रमुख है।

फलितज्योतिष-इसके अन्तर्गत ग्रह नक्षत्रों आदि की स्थिति के आधार पर भाग्य, कर्म आदि का विवेचन किया जाता है। वेधशाला-ग्रह, नक्षत्र की गति, स्थिति की जानकारी जहाँ गणना तथा यान्त्रिक विधि के आधार पर ली जाए वह वेधशाला है। यथा-जन्तर-मन्तर।

परियोजना-कार्यम्

  • योग्यता विस्तार में उल्लेखित विद्वानों की कृतियों के नाम का सङ्कलन करें।
  • योग्यता विस्तार में उद्धत पुस्तकें के लेखक का नाम बताए।
  • आर्यभट्ट के अतिरिक्त कुछ अन्य गणितज्ञों के नाम तथा उनके कार्यों की सूची तैयार करें।

 


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