सोमवार, 31 जुलाई 2023

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 6-गृहं शून्यं सुतां विना व्याख्या

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 6-गृहं शून्यं सुतां विना व्याख्या

शब्दार्थ, अनुवाद, पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास, योग्यता विस्तार

Subject – Sanskrit / संस्कृत

पुस्तक का नाम - रुचिरा भाग -3

Class 8 Sanskrit Chapter 6-गृहं शून्यं सुतां विना Summary

षष्ठः पाठः
गृहं शून्यं सुतां विना
कन्याओं के बिना घर शून्य है

यह पाठ कन्याओं की हत्या पर रोक और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने की प्रेरणा हेतु निर्मित है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच भेद-भाव की भावना आज भी समाज में यत्र-तत्र देखी जाती है। जिसे दूर किए जाने की आवश्यकता है। संवादात्मक शैली में इस बात को सरल संस्कृत में प्रस्तुत किया गया है।

 

 

शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितृगृहम् आगच्छति। सर्वे प्रसन्नमनसा तस्याः स्वागतं कुर्वन्ति परं तस्याः भ्रातृजाया उदासीना इव दृश्यते”।

शालिनी- भ्रातृजाये! चिन्तिता इव प्रतीयसे, सर्व कुशलं खलु?
माला – आम् शालिनि! कुशलिनी अहम्। त्वदर्थं किम् आनयानि, शीतलपेयं चायं वा?
शालिनी- अधुना तु किमपि न वाञ्छामि । रात्रौ सवै: सह भोजनमेव करिष्यामि।

(भोजनकालेऽपि मालायाः मनोदशा स्वस्था न प्रतीयते स्म, परं सा मुखेन किमपि नोक्तवती)

 

Hindi Translation: शालिनी गर्मी की छुट्टियों में पिता के घर आती है। सभी खुश मन से उसका स्वागत करते हैं परन्तु उसकी भाभी उदास दिखती है”।

शालिनी- भाभी! चिन्तित सी लग रही हो, सब ठीक तो है?
माला – हाँ शालिनि! कुशल हूँ मैं। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ, ठंढा पेय या चाय?
शालिनी- अभी तो कुछ भी नहीं चाहती हूँ। रात को सभी के साथ ही भोजन करुँगी।

(भोजन के समय में भी माला की मनोदशा स्वस्थ नहीं प्रतीत हो रही थी, परंतु वह मुँह से कुछ भी नहीं कहती है)

 

राकेश:- भगिनि शालिनि! दिष्ट्या त्वं समागता। अद्य मम कार्यालये एका महत्त्वपूर्णा गोष्ठी सहसैव निश्चिता। अद्यैव मालाया: चिकित्सिकया सह मेलनस्य समय: निर्धारित: त्वं मालया सह चिकित्सिकां प्रति गच्छ, तस्या: परामर्शानुसारं यद्विधेयं तद् सम्पादय।
शालिनी- किमभवत्? भ्रातृजायायाः स्वास्थ्यं समीचीनं नास्ति? अहं तु हय: प्रभृति पश्यामि सा स्वस्था न प्रतिभाति इति प्रतीयते स्म।

राकेश:- चिन्तायाः विषय: नास्ति। त्वं मालया सह गच्छ। मार्गे सा सर्व ज्ञापयिष्यति।

(माला शालिनी च चिकित्सिकां प्रति गच्छन्त्यौ वार्ता कुरुतः)

 

राकेश- बहन शालिनि! भाग्य से तुम आई। आज मेरे कार्यालय में एक महत्त्वपूर्ण बैठक (मीटींग) अचानक ही निश्चित हुई है। आज ही माला का चिकित्सिका के साथ मिलने का समय निर्धारित है। तुम माला के साथ चिकित्सिक के पास जाओ उसके परामर्श के अनुसार जो करना हो वह करो ।
शालिनी- क्या हुआ है? भाभी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है? मैं तो कल से देख रही हूँ वह स्वस्था नहीं लग रही है – ऐसा प्रतीत हो रहा था।
राकेश- चिन्ता का विषय नहीं है। तुम माला के साथ जाओ। रास्ते में वह सब बता देगी।

माला और शालिनी चिकित्सिक के पास जाते हुए बातचीत करते हैं।

 

शालिनी- किमभवत्? भ्रातृजाये! का समस्याऽस्ति?
माला-शालिनि! अहं मासत्रयस्य गर्भं स्वकुक्षौ धारयामि। तव भ्रातुः आग्रह: अस्ति यत् अहं लिङ्गपरीक्षणं कारयेयं कुक्षौ कन्याऽस्ति चेत् गर्भ पातयेयम्। अहम् अतीव उद्विग्नाऽस्मि परं तव भ्राता वार्तामेव न श्रृणोति।
शालिनी- भ्राता एवं चिन्तयितुमपि कथं प्रभवति ? शिशुः कन्याऽस्ति चेत् वधार्हा? जघन्यं कृत्यमिदम्। त्वम् विरोधं न कृतवती? सः तव शरीरे स्थितस्य शिशोः वधार्थ चिन्तयति त्वम् तूष्णीम् तिष्ठसि ? अधुनैव गृहं चल, नास्ति आवश्यकता लिङ्गपरीक्षणस्य। भ्राता यदा गृहम् आगमिष्यति अहम् वार्ता करिष्ये।

 

शालिनीक्या हुआ है? भाभी क्या समस्या है?
माला – शालिनी! मैं तीन महीने के गर्भ को अपने कोख में धारण कर रही हूँ। तुम्हारे भाई का आग्रह है कि मैं लिङ्ग परीक्षण करवा कर कोख में (अगर) कन्या है तो (मैं) गर्भपात करवा लूँ। मैं बहुत व्याकुल हूँ पर तुम्हारे भाई बात भी नहीं सुनते हैं।
शालिनी- भैया ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं? शिशु कन्या है तो मार दी जाये? जघन्य पाप है यह। तुमने विरोध नहीं किया? वह तुम्हारे शरीर में स्थित शिशु के वध के लिए सोच रहे हैं, तुम चुप बैठी हो? अभी ही घर चलो, नहीं है आवश्यकता लिङ्गपरीक्षण की । भईया जब घर आएंगे, मैं बात करुँगी।

 

(सन्ध्याकाले भ्राता आगच्छति हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिबत्त्य पूजागृहं गत्वा दीपं प्रज्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति। तदनन्तरं चायपानार्थम् सर्वेऽपि एकत्रिताः।)

राकेश:- माले! त्वं चिकित्सिकां प्रति गतवती आसी:, किम् अकथयत् सा?

(माला मौनमेवाश्रयति। तदैव क्रीडन्ती त्रिवर्षीया पुत्री अम्बिका पितुः क्रोडे उपविशति तस्मात् चाकलेहं च याचते । राकेश: अम्बिकां लालयति, चाकलेहं प्रदाय तां क्रोडात् अवतारयति ।
पुन: मालां प्रति प्रश्नवाचिकां दृष्टिं क्षिपति। शालिनी एतत् सर्वं दृष्ट्वा उत्तरं ददाति)

 

शाम के समय भाई आते हैं, हाथ-पैर धो कर और वस्त्र बदल कर और पूजा घर में जाकर दीप जलाकर भवानी (दुर्गा) की स्तुति करता है। उसके बाद चाय पीने के लिए सभी एकत्रित होते हैं।

राकेश- माला! तुम चिकित्सिका के पास गई थी, वह क्या बोली?

(माला चुप रहकर ही सुनती है। उसके बाद ही खेलती हुई तीन वर्ष की पुत्री अम्बिका पिता के गोद में बैठती है और उनसे चॉकलेट मांगती है। राकेश अम्बिका को दुलार करता है, चॉकलेट देता है, (फिर) उसको गोद से उतार देता है। पुन: माला को प्रश्नवाचक निगाह से देखता है। शालिनी यह सब देखकर उत्तर देती है।)

 

शालिनी- भ्रात:! त्वं किं ज्ञातुमिच्छसि ? तस्या: कुक्षि पुत्रः अस्ति पुत्री वा? किमर्थम्?
षण्मासानन्तरं सर्व स्पष्टं भविष्यति, समयात् पूर्व किमर्थम् अयम् आयास:?
राकेशः- भगिनि, त्वं तु जानासि एव अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव
अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि…..
शालिनी- तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या? (तीव्रस्वरेण) हत्यायाः पापं कर्तु प्रवृत्तोऽसि त्वम्।
राकेश:- न, हत्या तु न……

 

शालिनी- भईया! तुम क्या जानना चाहते हो? उसकी कोख में बेटा है या बेटी? किसलिए? छ: महीने बाद सब स्पष्ट हो जाएगा, समय से पहले किसलिए यह कोशिश?
राकेश- बहन, तुम तो जानती ही हो, हमारे घर में अम्बिका पुत्री रूप में है ही। अब एक पुत्र की आवश्यकता है इसलिए …..
शालिनी- इसलिए कोख में पुत्री है तो (उसकी) हत्या कर देनी चाहिए? (ऊँचे आवाज़ में) हत्या का पाप करने के लिए प्रवृत हो तुम।
राकेश- नहीं, हत्या तो नहीं ……

 

शालिनी- तर्हि किमस्ति निर्घृणं कृत्यमिदम्? सर्वथा विस्मृतवान् अस्माकं जनकः कदापि
पुत्रीपुत्रयोः विभेदं न कृतवान्? सः सर्वदैव मनुस्मृते: पंक्तिमिमाम् उद्धरति स्म “आत्मा वै जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा “। त्वमपि सायं प्रातः देवीस्तुतिं करोषि? किमर्थं सृष्टे: उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोषि? तव मनसि इयती कुत्सिता वृत्तिः आगता, इदं चिन्तयित्वैव अहं कुण्ठिताऽस्मि । तव शिक्षा वृथा…

 

शालिनी-तो क्या यह कार्य निर्दयतापूर्वक है? सब भूल गए हमारे पिताजी कभी पुत्र-पुत्री में भेद नहीं किए? वह हमेशा ही मनुस्मृति की इस पंक्ति का उदाहरण देते थे – “पिता की आत्मा पुत्र के रूप में जन्म लेती है और पुत्री पुत्र के सामान होती है “। तुम भी सुबह- शाम देवी की स्तुति करते हो? सृष्टि के उत्पादन शक्ति का अनादर किसलिए करते हो? तुम्हारे मन में इतना क्रूर विचार आया, यह मैं सोचकर ही शक्तिहीन हो गयी हूँ। तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ गई…

 

राकेश:- भगिनि! विरम विरम। अहं स्वापराधं स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मि। अद्यप्रभृति कदापि गर्हितमिदं कार्य स्वप्नेऽपि न चिन्तयिष्यामि। यथैव अम्बिका मम हृदयस्य सम्पूर्णस्नेहस्य अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशुः अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्र: भवतु पुत्री वा। अहं स्वरगर्हितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्नः अस्मि, अह कथं विस्मृतवान्

 

राकेश- बहन! रुको, रुको। मैं अपने अपराध को स्वीकार करता हूँ और लज्जित भी हूँ। आज से कभी भी इस तरह का गन्दा कार्य स्वप्न में भी नहीं सोचूंगा। जिस प्रकार अम्बिका मेरी हृदय के सम्पूर्ण स्नेह की अधिकारिणी है, उसी प्रकार आने वाला शिशु भी स्नेह का अधिकारी होगा चाहे पुत्र हो या पुत्री। मैं अपने गंदे कार्य के प्रति पश्चात्ताप में मग्नः हूँ। मैं कैसे भूल गया-

 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैताः न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया
:

राकेश:- अथवा “पितुर्दशगुणा मातेति।” त्वया सन्मार्गः प्रदर्शित: भगिनि। कनिष्ठाऽपि त्वं मम गुरुरसि।
शालिनी- अलं पश्चात्तापेन। तव मनसः अन्धकारः अपगतः प्रसन्नतायाः विषयोऽयम्।
भ्रातृजाये! आगच्छ। सर्वा चिन्तां त्यज आगन्तुः शिशोः स्वागताय च सन्नद्धा भव। भ्रातः त्वमपि प्रतिज्ञां कुरु – कन्यायाः रक्षणे, तस्याः पाठने दत्तचित्तः स्थास्यसि “पुत्रीं रक्ष, पुत्रीं
पाठय” इतिसर्वकारस्य घोषणेयं तदैव सार्थिका भविष्यति यदा वयं सर्वे मिलित्वा चिन्तनमिदं
यथार्थरूपं करिष्याम:-

 

जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है वहाँ देवता निवास करते हैं, लेकिन जहाँ सम्मान नहीं होता वहाँ सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं।

राकेश-या पिता से दस गुणा माता होती है।” तुम्हारे द्वारा अच्छा मार्ग दिखाया गया। बहन। तुम छोटी होते हुए भी मेरी गुरु हो।
शालिनी- पश्चात्ताप मत करो। तुम्हारे मन का अन्धकार दूर हो गया। यह प्रसन्नता का विषय है। भाभी! आओ। सब चिन्ता को छोड़ो और आने वाले शिशु के स्वागत के लिए तैयार हो। भैया तुम भी प्रतिज्ञा करो – कन्या की रक्षा में, उसके पढ़ाई में सचेत रहोगे” बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” ये सरकार की घोषणा तब ही सार्थक होगी जब सभी मिलकर इस सोच को यथार्थ रूप के साथ करेंगे-

 

या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे,
लक्ष्मीः शत्रुविदारणे गगनं विज्ञानाङ्गणे कल्पना।
इन्द्रोद्योगपथे च खेलजगति ख्याताभितः साइना,
सेयं स्त्री सकलासु दिक्षु सबला स्वै: सदोत्साह्यताम् ॥

 

शब्दार्थ: पाञ्चालिद्रौपदी । विक्रमेसाहस में । सकलासुसभी में । दिक्षुदिशाओं में। सबलासशक्तबलशालीशक्ति-युक्त।

विशेष - गार्गीगार्गी का पूरा नाम गार्गी वाचक्नवी बृहदारण्यकोपनिषद (3.6 और 3.8श् में वही मिलता है जहां वह जनक की राजसभा में याज्ञवल्क्य से अध्यात्म संवाद करती है। इसी वाचक्नवी के आधार पर बाद में लोगों ने कल्पना कर ली कि किसी वचक्नु नामक ऋषि की पत्‍नी होने के कारण गार्गी का नाम वाचक्नवी पड़ गया।

साइना नेहवालभारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं

 

Hindi Translation: जो (स्त्री), राजसभा में अध्यात्म चिंतन में गार्गी (की तरह), साहस में द्रौपदी (की तरह), शत्रु के विनाश में लक्ष्मीबाई (की तरह), अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला (की तरह), उद्योग के पथ पर इन्द्र (के तरह) और खेल जगत में साइना नेहवाल की तरह- वह स्त्री सभी दिशाओं में सशक्त है। सदा इन्हें सभी प्रोत्साहित करें।

 

 

अभ्यासः

1.अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्ताराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(क) दिष्ट्या का समागता?
उत्तरं- दिष्ट्या शालिनी समागता।

 

(ख) राकेशस्य कार्यालये का निश्चिता?
उत्तरं- राकेशस्य कार्यालये एका गोष्ठी सहसैव निश्चिता।

 

(ग) राकेशः शालिनीं कुत्र गन्तुं कथयति?
उत्तरं- राकेशः शालिनीं चिकित्सिकां प्रति गन्तुं कथयति।

 

(घ) सायंकाले भ्राता कार्यालयात् आगत्य किं करोति?
उत्तरं- सायंकाले भ्राता कार्यालयात् आगत्य हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिवर्त्य पूजागृहं गत्वा दीपं प्रज्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति।

 

(ङ) राकेशः कस्याः तिरस्कारं करोति?
उत्तरं- राकेशः सृष्टेः उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोति।

 

(च) शालिनी भ्रातरम् कां प्रतिज्ञां कर्तुं कथयति?
उत्तरं- शालिनी भ्रातरम् “कन्यायाः रक्षणे तस्या: पाठने दत्तचित्त: स्थास्यसि पुत्रीं रक्ष, पुत्रीं पाठय” इति प्रतिज्ञा कर्तुं कथयति।

 

(छ) यत्र नार्यः न पूज्यन्ते तत्र किं भवति?
उत्तरं- यत्र नार्यः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रिया: अफलाः भवन्ति ।

 

2.अधोलिखितपदानां संस्कृतरूपं (तत्समरूपं) लिखत-

(क) कोख
उत्तरं- कुक्षि।

(ख) साथ
उत्तरं- सह।

(ग) गोद
उत्तरं- क्रोडम्।

(घ) भाई
उत्तरं- भ्रातृ।

(ङ) कुआँ
उत्तरं- कूपः।

(च) दूध
उत्तरं- दुग्धम्।

3.उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकप्रदत्तेषु पदेषु तृतीयाविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-

(क) मात्रा सह पुत्री गच्छति (मातृ)
(ख) ……… विना विद्या न लभ्यते (परिश्रम)
(ग) छात्र: ……… लिखति (लेखनी)
(घ) सूरदासः ……… अन्धः आसीत् (नेत्र)
(ङ) सः ……… साकम् समयं यापयति। (मित्र)

उत्तरं-
(क) मात्रा सह पुत्री गच्छति (मातृ)
(ख) परिश्रमेण विना विद्या न लभ्यते (परिश्रम)
(ग) छात्र: लेखन्या लिखति (लेखनी)
(घ) सूरदासः नेत्राभ्याम् अन्धः आसीत् (नेत्र)
(ङ) सः मित्रेण साकम् समयं यापयति। (मित्र)

 

4.’क’ स्तम्भे विशेषणपदं दत्तम् ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्यपदम्। तयोर्मेलनम् कुरुत-

क’ स्तम्भः

ख’ स्तम्भः  

(1) स्वस्था  

(क) कृत्यम्  

(2) महत्वपूर्णा  

(ख) पुत्री  

(3) जघन्यम्  

(ग) वृत्तिः  

(4) क्रीडन्ती  

(घ) मनोदशा  

(5) कुत्सिता  

(ङ) गोष्ठी

उत्तरं-

क’ स्तम्भः

 

ख’ स्तम्भः  

(1) स्वस्था  

  (घ) मनोदशा

(2) महत्वपूर्णा  

  (ङ) गोष्ठी

(3) जघन्यम्  

  (क) कृत्यम्  

(4) क्रीडन्ती

  (ख) पुत्री

(5) कुत्सिता 

  (ग) वृत्तिः

 

 5.अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत-

(क) श्वः
उत्तरं- अद्य।

(ख) प्रसन्ना
उत्तरं- चिन्तिता।

(ग) वरिष्ठा
उत्तरं- कनिष्ठा।

(घ) प्रशंसितम्
उत्तरं- निघृणम्।

(ङ) प्रकाशः
उत्तरं- अन्धकारः।

(च) सफलाः
उत्तरं- अफलाः।

(छ) निरर्थक:
उत्तरं- सार्थकः।

 

6.रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) प्रसन्नतायाः विषयोऽयम्।
उत्तरं- कस्याः विषयोऽयम्?

 

(ख) सर्वकारस्य घोषणा अस्ति।
उत्तरं- कस्य घोषणा अस्ति?

 

(ग) अहम् स्वापराधं स्वीकरोमि।
उत्तरं- अहम् कम् स्वीकरोमि? a

 

(घ) समयात् पूर्वम् आयासं करोषि।
उत्तरं- कस्मात् पूर्वम् आयासं करोषि?

 

(ङ) अम्बिका क्रोडे उपविशति।
उत्तरं- अम्बिका कुत्र उपविशति?

 

7.अधोलिखिते सन्धिविच्छेदे रिक्त स्थानानि पूरयत-

यथा – नोक्तवती  

 =

न  

+

उक्तवती  

सहसैव  

=

सहसा  

+

………  

परामर्शानुसारम्  

=

………..

+

अनुसारम्  

वधार्हा  

=

………..

+

अर्हा  

अधुनैव  

=

अधुना  

+

……….

प्रवृत्तोऽपि  

=

प्रवृत्तः  

+

…………

उत्तरं-

यथा – नोक्तवती  

=

न  

+

उक्तवती  

सहसैव  

=

सहसा  

+

एव

परामर्शानुसारम्  

=

परामर्श

+

अनुसारम्  

वधार्हा  

=

वध

+

अर्हा  

अधुनैव  

=

अधुना  

+

एव

प्रवृत्तोऽपि  

=

प्रवृत्तः  

+

अपि

 

 

 

Class 6th sanskrit solutions

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