गुरुवार, 17 अगस्त 2023

सामुदायिक प्रार्थना Samudayik Prarthna

 

सामुदायिक प्रार्थना

 

या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रा वृता ।

या वीणा वरदण्ड मंडित करा या श्वेतपदमासना ।।

या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभि: देवै: सदा वन्दिता ।

सा माम् पातु सरस्वति भगवति निःशेष जाड्यापहा ।। १।।

 

अर्थ - जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुद्ध सफेद वस्त्रों को धारण किये हुए है, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, जिसकी ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देव जिनकी सदा उपासना करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वह माँ सरस्वती मेरा पालन करें। 


शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्याम् जगद्व्यापिनीम् ।

वीणा पुस्तक धारिणीम् अभयदाम् जाड्यान्धकारापाहाम् ।।

हस्ते स्फाटिक मालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम् ।

वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धि प्रदाम् शारदाम् ।।२।।


अर्थ - जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथों मे वीणा-पुस्तक औऱ स्फाटिक की माला धारण करने वाली, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ।

 

ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

अर्थ: : हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।

ॐ : परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द

भूः :  भूलोक

भुवः : अंतरिक्ष लोक

स्वः : स्वर्गलोक

त : परमात्मा अथवा ब्रह्म

सवितुः : ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता

वरेण्यम : पूजनीय

भर्गः:  अज्ञान तथा पाप निवारक

देवस्य : ज्ञान स्वरुप भगवान का

धीमहि : हम ध्यान करते है

धियो :  बुद्धि प्रज्ञा

योः :  जो

नः : हमें

प्रचोदयात् : प्रकाशित करें। 

 

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।
ॐ शांति: शांति: शांतिः

मन्त्र का अर्थ: वह जो (परब्रह्म) दिखाई नहीं देता है, वह अनंत और पूर्ण है। क्योंकि पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व बहिर्गत हुआ। यह अनंत विश्व उस अनंत से बहिर्गत होने पर भी अनंत ही रह गया।

 

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।

अर्थ - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"

 

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

यह श्लोक बृहदारण्यकोपनिषद् से लिया गया है. इसका अर्थ है कि मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो. मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो.

 

ॐ सहनाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

अर्थ: हे परमात्मा विद्यार्थी और शिक्षक दोनों की रक्षा करें, विद्यार्थी और शिक्षक दोनों का पोषण करें, हम दोनों ऊर्जा और शक्ति के साथ कार्य करें। हे परमात्मा विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें और हमारी बुद्धि को तेज करें, हमें शक्ति दे कि हम एक दूसरे से ईर्ष्या न करें।

 

 

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