मंगलवार, 22 अगस्त 2023

Shree Hanumat Stwan Lyrics and Meaning in Hindi

श्री हनुमत् स्तवन

 

प्रनवऊं पवन कुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।

अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामअग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियं भक्तं वातंजातं नमामि।

गोष्पदीकृत वारिशं मशकीकृत राक्षसम्। रामायण महामालारत्नं वन्दे नीलात्मजं।
अंजनानंदनंवीरं जानकीशोकनाशनं। कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लंकाभयंकरम्।

उलंघ्यसिन्धों: सलिलं सलिलं य: शोकवह्नींजनकात्मजाया:।
तादाय तैनेव ददाहलंका नमामि तं प्राञ्जलिंराञ्नेयम।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।

आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।
पारिजाततरूमूल वासिनं भावयामि पवमाननंदनम्।

यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिंलम।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं राक्षसान्तकाम्।

 

हिंदी अर्थ

मैं उन पवन पुत्र श्री हनुमान जी को प्रणाम करता हूं, जो दुष्ट रूपी वन में अर्थात राक्षस रूपी वन में अग्नि के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। जिनके हृदय रूपी घर में धनुषधारी श्री राम निवास करते हैं।

अतुलीय बल के निवास, हेमकूट पर्वत के समान शरीर वाले राक्षस रूपी वन के लिए अग्नि के समान, ज्ञानियों के अग्रणी रहने वाले, समस्त गुणों के भंडार, वानरों के स्वामी, श्री राम के प्रिय भक्त वायुपुत्र श्री हनुमान जी को नमस्कार करता हूं।


समुद्र को गाय के खुर के समान संक्षिप्त बना देने वाले, राक्षसों को मच्छर जैसा बनाने वाले, रामायण रूपी महती माला का रत्न वायुनंदन हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं।

माता अंजनी को प्रसन्न रखने वाले , माता सीता जी के शोक को नष्ट करने वाले, अक्ष को मारने वाले, लंका के लिए भंयकर रूप वाले वानरों के स्वामी को मैं प्रणाम करता हूं।


जिन्होंने समुद्र के जल को लीला पूर्वक( खेल-खेल में) लांघ कर माता सीता जी की शोकरूपी अग्नि को लेकर उस अग्नि से ही लंका दहन कर दिया, उन अंजनी पुत्र को मैं हाथ जोड़ कर नमस्कार करता हूं।

मन के समान गति वाले, वायु के समान वेग वाले, इंद्रियों के जीतने वाले, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वायुपुत्र, वानरों के समूह के प्रमुख, श्री राम के दूत की शरण प्राप्त करता हूं।

अंजना के पुत्र, गुलाब के समान मुख वाले, हेमकुट पर्वत समान सुंदर शरीर वाले, कल्पवृक्ष की जड़ पर रहने वाले, पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं याद करता हूं।

जहां- जहां श्री रामचंद्र जी का कीर्तन होता है वहां-वहां मस्तक पर अंजलि बांधे हुए आनंदाश्रु से पूरित नेत्रों वाले, राक्षसों के काल वायुपुत्र (श्री हनुमान जी) को नमस्कार करें।

 

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