NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न
1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) कविता की उन पंक्तियों को निखिए, जिनमें
निम्नलिखित अथं का बोध होता है-
(i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय
काँप उठता था।
उत्तर-
नहीं खेलना रुकता उसका
नहीं ठहरती वह पल-भर।
मेरा हृदय काँप उठता था,
बाहर गई निहार उसे।
(ii) पर्वत
की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
उत्तर-
ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
(iii) पुजारी
से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
उत्तर-
भूल गया उसका लेना झट,
परम लाभ-सा पाकर मैं।
सोचा, -बेटी को माँ के ये
पुण्य-पुष्प दें जाकरे मैं।
(iv) पिता
की वेदना और उसका पश्चाताप।
उत्तर-
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी,
हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी!
अंतिम बार गोद में बेटी,
तुझको ले न सका मैं हा!
एक फूल माँ का प्रसाद भी
तुझको दे न सका मैं हा!
(ख)
बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
उत्तर-
बीमार बच्ची सुखिया ने अपने पिता के
सामने यह इच्छा प्रकट की कि वह देवी माँ के मंदिर के प्रसाद का फूल चाहती है।
(ग)
सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
उत्तर-
सुखिया का पिता उस वर्ग से संबंधित था, जिसे
समाज अछूत समझता था। समाज के
कुलीन तथाकथित भक्तों ने इस वर्ग के
लोगों का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर
रखा था। सुखिया का पिता अपनी बेटी की
इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में
प्रवेश कर गया। मंदिर की पवित्रता नष्ट
करने और देवी का अपमान करने का आरोप
लगाकर उसे सात दिन का कारावास देकर
दंडित किया गया।
(घ)
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?
उत्तर-
जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने
अपनी बच्ची को राख की ढेरी के रूप
में पाया। उसकी मृत्यु हो गई थी। अतः
उसके संबंधियों ने उसका दाह संस्कार
कर दिया था।
(ङ)
इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
केंद्रीय भाव- ‘एक फूल की चाह’ कविता
में समाज में फैले वर्ग-भेद,
ऊँच-नीच और छुआछूत की समस्या
को केंद्र में रखा गया है। समाज दो वर्गों में बँटा हुआ है-एक तथाकथित
कुलीन एवं उच्चवर्ग, दूसरो अछूत समझा। जाने वाला निम्न वर्ग। इसी अछूत वर्ग
की कन्या सुखिया जो महामारी का शिकार होकर बुखार से तपती अवस्था में अर्ध
बेहोशी की स्थिति में पहुँच जाती है। वह अपने पिता से देवी के प्रसाद का
फूल लाने के लिए कहती है।
उसका पिता मंदिर में जाता है और देवी के प्रसाद का फूल लेकर आते समय पकड़ लिया जाता है। न्यायालय भी मंदिर को अपवित्र करने तथा देवी का अपमान करने के जुर्म में उसे सात दिन कारावास देता है। इसी बीच उसकी पुत्री मर जाती है, और जला दी जाती है। इस प्रकार अछुतों के मंदिरों में प्रवेश, उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग पर किया गया अन्याय, एक पिता-पुत्री का अंतिम मिलन न हो पाने की वेदना कविता का केंद्रीय भाव है।
(च)
इस कविता में कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण : अंधकार की छाया
1. …………
2. ……………
3. …………
4. …………..
5. ………..
उत्तर-
1. कितना बड़ा तिमिर आया।
2. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची |
3. हुई राख की थी ढेरी ।
4. स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा
5. झुलसी-सी जाती थी आँखें।
प्रश्न
2.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट
करते हुए उनका अर्थ-सौंदर्य बताइए-
(क) अविश्रांत बरसा करके भी
आँखें तनिक नहीं रीतीं।
उत्तर-
आशय- सुखिया के पिता को
मंदिर की पवित्रता नष्ट करने और
देवी को अपमानित करने के जुर्म में सात
दिन का कारावास मिला। इससे उसे बहुत
दुख हुआ। अपनी मरणासन्न पुत्री सुखिया
को यादकर वह अपना दुख आँसुओं के
माध्यम से प्रकट कर रहा था। सात दिनों
तक रोते रहने से उसकी व्यथा कम न
हुई।
अर्थ सौंदर्य- बादलों के एक-दो दिन बरसने से ही उनका जल समाप्त हो जाता है और वे अपना अस्तित्व खो बैठते हैं। सुखिया के पिता की आँखों से सात दिन तक आँसू बहते रहे फिर भी आँखें खाली नहीं हुईं । अर्थात् उसके हृदय की वेदना कम न हुई।
(ख)
बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
छाती धधक उठी मेरी।
उत्तर-
आशय-जब सुखिया का पिता जेल से छूटा तो
वह श्मशान में गया। उसने देखा कि
वहाँ उसकी बेटी की जगह राख की ढेरी पड़ी
थी। उसकी बेटी की चिता ठंडी हो
चुकी थी।
अर्थ-सौंदर्य-इसमें करुणा साकार हो उठी
है। चिता का बुझना और उसे देखकर
पिता की छाती को धधकना दो मार्मिक दृश्य
हैं। ये पाठक को द्रवित करने की
क्षमता रखते हैं। चाक्षुष बिंब।
(ग)
हाय! वही चुपचाप पड़ी थी।
अटल शांति-सी धारण कर।
उत्तर-
आशय- सुखिया का पिता अपनी
मरणासन्न पुत्री को देखकर सोच
रहा था कि सुखिया, जो
दिन भर खेलती-कूदती और यहाँ-वहाँ भटकती रहती थी, बीमारी के कारण शिथिल
और लंबी शांति धारण कर लेटी पड़ी है।
अर्थ सौंदर्य- तेज़ बुखार ने सुखिया को एकदम अशक्त बना दिया है। वह बोल भी नहीं पा रही है। सुखिया को उसकी शांति अटल अर्थात् स्थायी लग रही है अब वह शायद ही बोल सके।
(घ)
पापी ने मंदिर में घुसकर
किया अनर्थ बड़ा भारी।
उत्तर-
आशय-इसमें ढोंगी भक्तों ने सुखिया के
पिता पर मंदिर की पवित्रता नष्ट करने का भीषण आरोप लगाया है।
सियारामशरण गुप्त वे कहते हैं-सुखिया का
पिता पापी है। यह अछूत है। इसने
मंदिर में घुसकर भीषण पाप किया है। इसके
अंदर आने से मंदिर की पवित्रता
नष्ट हो गई है।
अर्थ-सौंदर्य-तिरस्कार और धिक्कार की भावना प्रकट करने के लिए यह पद्यांश सुंदर बन पड़ा है। ‘पापी’ और ‘बड़ा भारी अनर्थ’ शब्द तिरस्कार प्रकट करने में पूर्णतया समर्थ हैं।
योग्यता-विस्तार
प्रश्न
1.
‘एक फूल की चाह’ एक कथात्मक कविता है।
इसकी कहानी को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
चारों ओर भीषण महामारी फैली हुई थी।
कितने ही लोग इसकी चपेट में आ चुके थे।
सब ओर हाहाकार मचा हुआ था। बच्चों की
मृत्यु पर शोक प्रकट करती माताओं का
करुण क्रंदने हृदय को दहला देता था।
सुखिया के पिता को भय था कि कहीं उसकी
नन्हीं बेटी भी महामारी की चपेट में न
आ जाए। वह उसे बहुत रोकता था कि बाहर न
जाए। घर में ही टिककर बैठे। परंतु
वह बहुत नटखट और चंचल थी। आखिरकार एक
दिन उसका भय सच्चाई में बदल गया। वह
महामारी के प्रभाव में आ ही गई। उसका
नन्हा शरीर ज्वरग्रस्त हो गया। वह
बिस्तर पर लेट गई। एक दिन वह पिता से
बोली कि मुझे देवी माँ के मंदिर के
प्रसाद का एक फूल लाकर दो। पिता सिर
झुकाए बैठा रहा। वह जानता था। कि वह
अछूत है। उसे मंदिर में घुसने नहीं दिया
जाएगा। इसलिए वह सिर नीचा करके
बैठी रहा और उसे बचाने के अन्य उपाय
सोचता रहा
इसी उधेड़बुन में सुबह से दोपहर और शाम हो गई। चारों ओर गहरा अँधेरा छा गया। उसे लगा कि यह महातिमिर उसकी बेटी को निगल जाएगा। सुखिया की आँखें झुलसने लगीं। | सुखिया के पिता ने बेटी को बचाने के लिए मंदिर में जाने का निश्चय किया। वह मंदिर में पहुँचा। मंदिर पहाड़ी पर था। मंदिर के अंदर उत्सव-सा चल रहा था। भक्त लोग ज़ोर-ज़ोर से ‘पतित तारिणी’, ‘पाप हारिणी’ की जय-जयकार कर रहे थे। वह भी भक्तों की भीड़ में पहुँच गया। उसने पुजारी को दीप-फूल दिए। पुजारी ने उसे पूजा के फूल प्रदान किए। फूल को पाकर वह खुशी से फूला न समाया। उसे लगा मानो इससे सुखिया को नया जीवन मिल जाएगा। अतः उत्साह में वह पुजारी से प्रसाद लेना भूल गया।
इस
घटना से पुजारी ने उसे पहचान लिया। उसने शोर मचाया। वहाँ उपस्थित भक्तों ने सुखिया के
पिता को पकड़ लिया। वे उस पर आरोप लगाने लगे। कहने लगे कि यह धूर्त है। यह
साफ सुथरे कपड़े पहनकर हमको धोखा देना चाहता है। इस अछूत ने मंदिर की
पवित्रता नष्ट कर दी है। इसे पकड़ो।
सुखिया के पिता ने उनसे पूछा-‘क्या
मेरा कलुष देवी की महिमा से भी अधिक
बड़ा है? मैं माता की महिमा के
आगे क़हाँ ठहर सकता हूँ।’
परंतु भक्तों ने उसकी एक न सुनी।
उन्होंने उसे मार-मारकर जमीन पर गिरा दिया। उसके हाथों का प्रसाद भी धरती पर
बिखर गया।
वे
भक्तगण सुखिया के पिता को न्यायालय में ले गए। न्यायालय ने उसे सात दिनों की सज़ा सुनाई।
उस पर आरोप यह था कि उसने मंदिर की पवित्रता नष्ट की है। सुखिया के पिता
ने मौन होकर दंड को स्वीकार कर लिया। वे सात दिन उसके लिए सैकड़ों वर्षों
के समान भारी थे। उसकी आँखें निरंतर बहती रहीं, फिर भी दुख कम न हो सका।:
जब सात दिन बीते। सुखिया का पिता जेल से
छूटा। वह मरे हुए मन से घर की ओर
चला। उसे पता चला कि सुखिया मर चुकी है।
वह श्मशान की ओर भागा। परंतु वहाँ
सुखिया की चिता ठंडी पड़ी थी। उसकी कोमल
बच्ची राख की ढेरी बन चुकी थी। वह
रो-रोकर पछताने लगा कि वह बच्ची के
अंतिम समय में भी उसे गोद में न ले सका।
प्रश्न
2.
‘बेटी’ पर आधारित निराला की
रचना ‘सरोज-स्मृति’ पढ़िए।
उत्तर-
छात्र सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ रचित
कविता ‘सरोज
स्मृति’ पुस्तक
से लेकर स्वयं पढ़ें।
प्रश्न
3.
तत्कालीन समाज में व्याप्त स्पृश्य और
अस्पृश्य भावना में आज आए परिवर्तनों पर एक चर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर-
1. पहला छात्र – एक समय था, जबकि हमारे समाज में ऊँच-नीच और छुआछूत का बोलबाला था।
2. दूसरा छात्र – यह बुराई आज कम हो गई है। परंतु पूरी तरह मिटी नहीं है।
3. तीसरा छात्र – आज तो छुआछूत को अपराध घोषित कर दिया गया है।
4. चौथा छात्र – अपराध घोषित होने से कुछ नहीं होता। समाज में समस्या ज्यों की त्यों है। कुछ जातियों को नीच मानकर बड़ी जातियों के लोग उनसे दूर रहते हैं।
5. पाँचवा छात्र – आरक्षण के कारण यह समस्या और अधिक बढ़ गई है। छठा छात्र-मेरे विचार में आरक्षण के कारण यह समस्या कम होगी।
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लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1.
महामारी अपना प्रचंड रूप किस प्रकार
दिखा रही थी?
उत्तर-
बस्ती में महामारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती
ही जा रही थी। यहाँ कई बच्चे इसका
शिकार हो चुके थे। जिन माताओं के बच्चे
अभी इसका शिकार हुए थे,
उनका रो-रोकर बुरा हाल था।
उनके गले से क्षीण आवाज़ निकल रही थी। उस क्षीण आवाज़ में हाहाकार मचाता
उनका अपार दुख था। महामारी के इस प्रचंड रूप में चारों ओर करुण क्रंदन सुनाई
दे रहा था।
प्रश्न
2.
पिता सुखिया को कहाँ जाने से रोकता था
और क्यों?
उत्तर-
पिता सुखिया को बाहर जाकर खेलने से मना
करता था क्योंकि उसकी बस्ती में
महामारी अपने प्रचंड रूप में हाहाकार
मचा रही थी। इस महामारी की चपेट में
कई बच्चे आ चुके थे। सुखिया अपनी बच्ची
से बहुत प्यार करता था। उसे डर था
कि कहीं सुखिया महामारी की चपेट में न आ
जाए।
प्रश्न
3.
सुखिया ने अपने पिता से देवी के प्रसाद
का फूल क्यों माँगा?
उत्तर-
सुखिया महामारी की चपेट में आ चुकी थी।
महामारी के कारण उसकी आवाज कमजोर हो
गई और शरीर के अंग शिथिल पड़ गए थे। उसे
लग गया होगा कि उसकी मृत्यु निकट
है। उसे आशा रही होगी कि वह शायद देवी
के प्रसाद से ठीक हो जाए। बीमारी की
दशा में वह स्वयं तो जा नहीं सकती थी, इसलिए
उसने देवी के प्रसाद का फूल
माँगा।
प्रश्न
4.
मंदिर की भव्यता और सौंदर्य का वर्णन
अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
देवी का विशाल मंदिर ऊँचे पर्वत की चोटी
पर स्थित था। यह मंदिर बहुत बड़ा
था। मंदिर की चोटी पर सुंदर सुनहरा कलश
था जो सूर्य की किरणें पड़ने से कमल
की तरह खिल उठता था। वहाँ का वातावरण
धूप-दीप के कारण सुगंधित था। अंदर
भक्तगण मधुर स्वर में देवी का गुणगान कर
रहे थे।
प्रश्न
5.
न्यायालय द्वारा सुखिया के पिता को
क्यों दंडित किया गया?
उत्तर-
न्यायालय द्वारा सुखिया के पिता को
इसलिए दंडित किया गया, क्योंकि वह अछूत
होकर भी देवी के मंदिर में प्रवेश कर
गया था। मंदिर को अपवित्र तथा देवी का
अपमान करने के कारण सुखिया के पिता को
न्यायालय ने सात दिन के कारावास का
दंड देकर दंडित किया।
प्रश्न
6.
भक्तों द्वारा सुखिया के पिता के साथ
किए गए इस व्यवहार को आप किस तरह देखते हैं?
उत्तर-
भक्तों द्वारा सुखिया के पिता का अपमान
और मारपीट करना उसकी संकीर्ण
मानसिकता और अमानवीय व्यवहार का प्रतीक
है। उनका ऐसा कार्य समाज की समरसता
और सौहार्द नष्ट करने वाला है। इससे
लोगों में तनाव उत्पन्न होता है। ऐसा
व्यवहार सदैव निंदनीय होता है।
प्रश्न
7.
माता के भक्नों ने सुखिया के पिता के
साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर-
माता के भक्त जो माता के गुणगान में लीन
थे, उनमें
से एक की दृष्टि माता के प्रसाद का फूल लेकर जाते हुए सुखिया के पिता पर पड़ी। उसने
आवाज़ दी कि यह अछूत
कैसे अंदर आ गया। इसको पकड़ लो। फिर क्या था, माता के अन्य भक्तगण पूजा-वंदना छोड़कर
उसके पास आए और कोई बात सुने बिना जमीन पर गिराकर मारने लगे।
प्रश्न
8.
पिता अपनी बच्ची को माता के प्रसाद का
फूल क्यों न दे सका?
उत्तर-
पिता जब मंदिर से देवी के प्रसाद का फूल
लेकर बाहर आने वाला था,
तभी कुछ सवर्ण भक्तों की
दृष्टि उस पर पड़ गई। उन्होंने अछूत कहकर उसे मारा-पीटा और न्यायालय तक ले आए।
यहाँ उसे सात दिन का कारावास मिला। इस बीच उसकी बेटी इस दुनिया से जा चुकी
थी और वह अपनी बेटी को माँ के प्रसाद का फूल न दे सका।
प्रश्न
9.
सुखिया का पिता किस सामाजिक बुराई का
शिकार हुआ?
उत्तर-
सुखिया का पिता उस वर्ग से संबंधित था, जिसे
समाज के कुछ लोग अछूत कहते
हैं, इस कारण वह छुआछूत
जैसी सामाजिक बुराई का शिकार हो गया था। अछूत होने के कारण उसे मंदिर को
अपवित्र करने और देवी का अपमान करने का आरोप लगाकर पीटा गया तथा उसे सात
दिन की जेल मिली।
प्रश्न
10.
‘एक फूल की चाह’ कविता की प्रासंगिकता
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्राचीन समय से ही भारतीय समाज वर्गों
में बँटा है। यहाँ समाज के एक वर्ग
द्वारा स्वयं को उच्च तथा दूसरे को
निम्न और अछूत समझा जाता है। इस वर्ग का
देवालयों में प्रवेश आदि वर्जित है, जो
सरासर गलत है। सुखिया का पिता भी
जाति-पाति का बुराई का शिकार हुआ था। यह
कविता हम सभी को समान समझने,
ऊँच-नीच, छुआछूत आदि सामाजिक
बुराइयों को नष्ट करने की प्रेरणा देती है।
अत: यह कविता पूर्णतया प्रासंगिक है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1.
आपके विचार से मंदिर की पवित्रता और
देवी की गरिमा को कौन ठेस पहुँचा रहा था और कैसे?
उत्तर-
मेरे विचार से तथाकथित उच्च जाति के
भक्तगण मंदिर की पवित्रता और देवी की
गरिमा को ठेस पहुँचा रहे थे, सुखिया
का पिता नहीं, क्योंकि
वे जातीय आधार पर
सुखिया के पिता को अपमानित करते हुए देवी के सामने ही मार-पीट रहे थे। वे जिस देवी की गरिमा
नष्ट होने की बात कर रहे थे,
वह तो स्वयं पतित पाविनी हैं तो एक पतित के
आने से न तो देवी की गरिमा नष्ट हो रही थी और न मंदिर की पवित्रता। ऐसा
सोचना उन तथाकथित उच्च जाति के भक्तों की संकीर्ण सोच और अमानवीयता थी।
प्रश्न
2.
‘एक फूल की चाह’ कविता में देवी के
भक्तों की दोहरी मानसिकता उजागर होती हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘एक फूल की चाह’ कविता में देवी के
उच्च जाति के भक्तगण जोर-ज़ोर से गला
फाड़कर चिल्ला रहे थे, “पतित-तारिणी
पाप-हारिणी माता तेरी जय-जय-जय!”
वे माता को भक्तों का
उद्धार करने वाली, पापों को नष्ट करने वाली, पापियों का नाश करने वाली मानकर
जय-जयकार कर रहे थे। उसी बीच एक अछूत भक्त के मंदिर में आ जाने से वे उस
पर मंदिर की पवित्रता और देवी की गरिमा नष्ट होने का आरोप लगा रहे थे। जब
देवी पापियों का नाश करने वाली हैं तो एक पापी या अछूत उनकी गरिमा कैसे कम
कर रहा था। भक्तों की ऐसी सोच से उनकी दोहरी मानसिकता उजागर होती है।
प्रश्न
3.
महामारी से सुखिया पर क्या प्रभाव पड़ा? इससे
उसके पिता की दशा कैसी हो गई?
उत्तर-
महामारी की चपेट में आने से सुखिया को
बुखार हो आया। उसका शरीर तेज़ बुखार
से तपने लगा। तेज बुखार के कारण वह बहुत
बेचैन हो रही थी। इस बेचैनी में
उसका उछलना-कूदना न जाने कहाँ खो गया।
वह भयभीत हो गई और देवी के प्रसाद का
एक फूल पाने में अपना कल्याण समझने लगी।
उसके बोलने की शक्ति कम होती जा
रही थी। धीरे-धीरे उसके अंग शक्तिहीन हो
गए। उसकी यह दशा देखकर सुखिया का
पिता चिंतित हो उठा। उसे कोई उपाय नहीं
सूझ रहा था। सुखिया के पास चिंतातुर
बैठे हुए उसे यह भी पता नहीं चल सका कि
कब सूर्य उगा, कब
दोपहर बीतकर शाम हो
गई।
प्रश्न
4.
सुखिया को बाहर खेलते जाता देख उसके
पिता की क्या दशा होती थी और क्यों?
उत्तर-
सुखिया को बाहर खेलते जाता देखकर सुखिया
के पिता का हृदय काँप उठता था।
उसके मन को एक अनहोनी-सी आशंका भयभीत कर
रही थी, क्योंकि
उसकी बस्ती के आसपास
महामारी फैल रही थी। उसे बार-बार डर सता रहा था कि कहीं उसकी पुत्री सुखिया भी महामारी की
चपेट में न आ जाए। वह इस महामारी से अपनी पुत्री को बचाए रखना चाहता था।
उसे महामारी का परिणाम पता था,
इसलिए अपनी पुत्री की रक्षा के प्रति
चिंतित और आशंकित हो रहा था।
प्रश्न
5.
(क) सुखिया के पिता को मंदिर में देखकर
भक्तों ने क्या-क्या कहना शुरू कर दिया?
(ख) सुखिया के पिता के अनुसार, भक्तगण
देवी की गरिमा को किस तरह चोट पहुँचा रहे थे?
(ग) “मनुष्य होने की गरिमा’ किस
तरह नष्ट की जा रहीं थी?
उत्तर
(क) अपनी बेटी की इच्छा को पूरी करने के
लिए देवी को प्रसाद स्वरूप फूल
लेने सुखिया के पिता को मंदिर में देखकर
भक्तों ने कहा कि इस अछूत ने मंदिर
में घुसकर भारी पाप कर दिया है। उसने
मंदिर की चिरकालिक पवित्रता को नष्ट
कर दिया है।
(ख) सुखिया के पिता का कहना था कि देवी तो पापियों का उद्धार करने वाली हैं। यह बात भक्त जन भी मानते हैं। फिर एक पापी के मंदिर में आने से देवी की गरिमा और पवित्रता किस तरह खंडित हो सकती है।
(ग) भक्तगण मनुष्य होकर भी एक मनुष्य सुखिया के पिता को जाति के आधार पर पापी मान रहे थे, उसे अछूत मान रहे थे। इस तरह वे मनुष्य होने की गरिमा नष्ट कर रहे थे।
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