संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित
(१) न राज्यं न च राजासीत् , न
दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति
स्म परस्परम् ॥
( न राज्य था और ना राजा था , न
दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी ॥ )
(२) रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
( रत्न , रत्न के साथ
जाता है )
(३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न
बलात्कारः ।
( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल
प्रयोग नहीं )
(४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । )
(५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें
बहुत जल भरा होता है । )
(६) अङ्गुलिप्रवेशात् बाहुप्रवेश: |
( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । )
(७) अति तृष्णा विनाशाय.
( अधिक लालच नाश कराती है । )
(८) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । )
(९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्.
( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । )
(१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्.
( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । )
(११) अल्पविद्या भयङ्करी.
( अल्पविद्या भयंकर होती है । )
(१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्.
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । )
(१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:.
( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । )
(१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा
भवेत्.
( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । )
(१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं
मित्रवदाचरेत्.
( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना
चाहिये । )
(१६) मधुरेण समापयेत्.
( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । )
(१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना.
( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । )
(१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । )
(१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्.
( सत्य , कल्याणकारी और
सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) )
(२०) सा विद्या या विमुक्तये.
( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । )
(२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति
कुतो नरम् ।
( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य
कहाँ लगता है । )
(२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२
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