NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 7 धर्म की आड़
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों
में दीजिए-
प्रश्न
1.
आज धर्म के नाम पर क्या-क्या हो रहा है?
उत्तर-
आज धर्म के नाम पर उत्पात किए जाते हैं, जिद्
की जाती है और आपसी झगड़े करवाए जाते हैं।
प्रश्न
2.
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए क्या
उद्योग होने चाहिए?
उत्तर-
धर्म के व्यापार को रोकने के लिए हमें
कुछ स्वार्थी लोगों के बहकावे में
नहीं आना चाहिए। हमें अपने विवेक से काम
लेते हुए धार्मिक उन्माद का विरोध
करना चाहिए।
प्रश्न
3.
लेखक के अनुसार, स्वाधीनता आंदोलन का
कौन-सा दिन सबसे बुरा था?
उत्तर-
आज़ादी के आंदोलन के दौरान सबसे बुरा
दिन वह था जब स्वाधीनता के लिए
खिलाफ़त, मुँल्ला-मौलवियों और
धर्माचार्यों को आवश्यकता से अधिक महत्त्व
दिया गया।
प्रश्न
4.
साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में
क्या बात अच्छी तरह घर कर बैठी है?
उत्तर-
अति साधारण आदमी तक के दिल में यह बात
घर कर बैठी है कि धर्म और ईमान की रक्षा में जान देना उचित है।
प्रश्न
5.
धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?
उत्तर-
धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं-शुद्ध आचरण और
सदाचार।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों
के उत्तर ( 25-30 शब्दों में ) लिखिए-
प्रश्न
1.
चलते-पुरज़े लोग धर्म के नाम पर क्या
करते हैं?
उत्तर-
चलते-पुरज़े लोग अपनी स्वार्थ की पूर्ति
एवं अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए
भोले-भाले लोगों की शक्तियों और उत्साह
का दुरुपयोग करते हैं। वे धार्मिक
उन्माद फैलाकर अपना काम निकालते हैं।
प्रश्न
2.
चालाक लोग साधारण आदमी की किस अवस्था का
लाभ उठाते हैं?
उत्तर-
चालाक आदमी साधारण आदमी की धर्म के
प्रति अटूट आस्था का लाभ उठाते हैं। वे
अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ऐसे
आस्थावान धार्मिक लोगों को मरने-मारने
के लिए छोड़ देते हैं।
प्रश्न
3.
आनेवाला समय किस प्रकार के धर्म को नहीं
टिकने देगा?
उत्तर-
कुछ लोग यह सोचते हैं कि दो घंटे का
पूजा-पाठ और पाँचों वक्त की नमाज पढ़कर
हर तरह का अनैतिक काम करने के लिए
स्वतंत्र हैं तो आने वाला समय ऐसे धर्म
को टिकने नहीं देगा।
प्रश्न
4.
कौन-सा कार्य देश की स्वाधीनता के
विरुद्ध समझा जाएगा?
उत्तर-
देश की आजादी के लिए किए जा रहे
प्रयासों में मुल्ला, मौलवी और
धर्माचार्यों की सहभागिता को देश की
स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाएगा। लेखक
के अनुसार, धार्मिक व्यवहार से
स्वतंत्रता की भावना पर चोट पहुँचती है।
प्रश्न
5.
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धन
लोगों में क्या अंतर है?
उत्तर-
पाश्चात्य देशों में धनी और निर्धनों के
बीच घोर विषमता है। वहाँ धन का
लालच दिखाकर गरीबों का शोषण किया जाता।
है। गरीबों की कमाई के शोषण से अमीर
और अमीर, तथा गरीब अधिक गरीब
होते जा रहे हैं।
प्रश्न
6.
कौन-से लोग धार्मिक लोगों से अधिक अच्छे
हैं?
उत्तर-
नास्तिक लोग, जो किसी धर्म को नहीं
मानते, वे
धार्मिक लोगों से अच्छे हैं।
उनका आचरण अच्छा है। वे सदा सुख-दुख में
एक दूसरे का साथ देते हैं। दूसरी
ओर धार्मिक लोग एक दूसरे को धर्म के नाम
पर लड़वाते हैं।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में ) लिखिए-
प्रश्न
1.
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले
भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर-
धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले
भीषण व्यापार को रोकने के लिए
दृढ़-निश्चय के साथ साहसपूर्ण कदम उठाना
होगा। हमें साधारण और सीधे-साधे
लोगों को उनकी असलियत बताना होगा जो
धर्म के नाम पर दंगे-फसाद करवाते हैं।
लोगों को धर्म के नाम पर उबल पड़ने के
बजाए बुद्धि से काम लेने के लिए
प्रेरित करना होगा। इसके अलावा धार्मिक
ढोंग एवं आडंबरों से भी लोगों को
बचाना होगा।
प्रश्न
2.
‘बुधि पर मार’ के संबंध में लेखक के
क्या विचार हैं?
उत्तर-
बुद्धि की मार से लेखक का अर्थ है कि
लोगों की बुद्धि में ऐसे विचार भरना
कि वे उनके अनुसार काम करें। धर्म के
नाम पर, ईमान
के नाम पर लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काया जाता है। लोगों की बुद्धि पर परदा
डाल दिया जाता है।
उनके मन में दूसरे धर्म के विरुद्ध जहर भरा जाता है। इसका उद्देश्य खुद का प्रभुत्व
बढ़ाना होता है।
प्रश्न
3.
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी
होनी चाहिए?
उत्तर-
लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना ऐसी
होनी चाहिए, जिसमें
दूसरों का कल्याण निहित
हो। यह भावना पवित्र आचरण और मनुष्यता से भरपूर होनी चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक
व्यक्ति को अपना धर्म चुनने,
पूजा-पाठ की विधि अपनाने की छूट होनी चाहिए।
इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। धार्मिक भावना पशुता को समाप्त करने के साथ
मनुष्यता बढ़ाने वाली होनी चाहिए।
प्रश्न
4.
महात्मा गांधी के धर्म-संबंधी विचारों
पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
महात्मा गाँधी अपने जीवन में धर्म को
महत्त्वपूर्ण स्थान देते थे। वे एक
कदम भी धर्म विरुद्ध नहीं चलते थे।
परंतु उनके लिए धर्म का अर्थ था-ऊँचे
विचार तथा मन की उदारता। वे ‘कर्तव्य’ पक्ष
पर जोर देते थे। वे धर्म के नाम
पर हिंदू-मुसलमान की कट्टरता के फेर में
नहीं पड़ते थे। एक प्रकार से
कर्तव्य ही उनके लिए धर्म था।
प्रश्न
5.
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना
क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारनी
इसलिए ज़रूरी है कि पूजा-पाठ करके,
नमाज़ पढ़कर हम दूसरों का अहित करने, बेईमानी
करने के लिए आज़ाद नहीं हो
सकते। आने वाला समय ऐसे धर्म को बिल्कुल
भी नहीं टिकने देगा। ऐसे में
आवश्यक है कि हम अपना स्वार्थपूर्ण आचरण
त्यागकर दूसरों का कल्याण करने
वाला पवित्र एवं शुद्धाचरण अपनाएँ। आचरण
में शुद्धता के बिना धर्म के नाम
पर हम कुछ भी करें, सब
व्यर्थ है।
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न
1.
उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें
केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी
नहीं समझता-बूझता, और
दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं,
उधर जुत जाता है।
उत्तर-
उक्त कथन का आशय है कि साधारण आदमी में सोचने-विचारने
की अधिक शक्ति नहीं होती। वह अपने धर्म,
संप्रदाय के प्रति अंधी श्रद्धा रखता
है। उसे धर्म के नाम
पर जिस काम के लिए कहा जाता है,
वह उसी काम को करने लगता है। उसमें अच्छा-बुरा
सोचने-विचारने की शक्ति नहीं होती।
प्रश्न
2.
यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले
ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना,
और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर
और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिधि के लिए लोगों को
लड़ाना-भिड़ाना।
उत्तर-
यहाँ अर्थात् भारत में कुछ लोग अपनी
स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगों का
बौधिक-शोषण करते हैं। वे धर्म के नाम पर
तरह तरह की विरोधाभासी बातें
साधारण लोगों के दिमाग में भर देते हैं
और धर्म के नाम पर उन्हें गुमराह कर
उनका मसीहा स्वयं बन जाते हैं। इन
धर्माध लोगों को धर्म के नाम पर आसानी
से लड़ाया-भिड़ाया जा सकता है। कुछ
चालाक लोग इनकी धार्मिक भावनाएँ भड़काकर
अपनी स्वार्थपूर्ति करते हैं।
प्रश्न
3.
अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा
जाएगा, आपकी
भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
उत्तर-
इस उक्ति का अर्थ है कि आनेवाले समय में
किसी मनुष्य के पूजा-पाठ के आधार
पर उसे सम्मान नहीं मिलेगा। सत्य आचरण
और सदाचार से भले आदमी की पहचान की
जाएगी।
प्रश्न
4.
तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व
कायम नहीं रहेगा, दया करके,
मनुष्यत्व को मानो, पशु
बनना छोड़ो और आदमी बनो!
उत्तर-
स्वयं को धार्मिक और धर्म का तथाकथित
ठेकेदार समझने वाले साधारण लोगों को
लड़ाकर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं। ऐसे
लोग पूजा-पाठ, नमाज़
आदि के माध्यम से
स्वयं को सबसे बड़े आस्तिक समझते हैं। ईश्वर ऐसे लोगों से कहता है। कि तुम मुझे मानो या न
मानो पर अपने आचरण को सुधारो,
लोगों को लड़ाना-भिड़ाना बंद करके उनके भले की
सोचो। अपनी इंसानियत को जगाओ। अपनी स्वार्थ-पूर्ति की पशु-प्रवृत्ति को
त्यागो और अच्छे आदमी बनकर अच्छे काम करो।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न
1.
उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक
लिखिए-
- सुगम – दुर्गम
- ईमान – ………..
- धर्म – ………..
- स्वार्थ – ……….
- साधारण – ………….
- नियंत्रित – ………
- दुरुपयोग – …………
- स्वाधीनता – …………
उत्तर-
- धर्म – अधर्म
- ईमान – बेईमान
- साधारण – असाधारण
- स्वार्थ – परमार्थ
- दुरुपयोग – सदुपयोग
- नियंत्रित – अनियंत्रित
- स्वाधीनता – पराधीनता
प्रश्न
2.
निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके
दो-दो शब्द बनाइए-
ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
उत्तर-
- ला – लापता, लावारिस
- ना – नासमझ, नालायक
- बिला – बिलावज़ह, बिलानागा
- खुश – खुशकिस्मत, खुशबू
- बद – बदनसीब, बदतमीज़
- हर – हरवक्त, हर दिन
- बे – बेवफा, बेरहम
- गैर – गैरहाजिर, गैरकानूनी
प्रश्न
3.
उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय
लगाकर पाँच शब्द बनाइए-
उदाहरण : देव + त्व = देवत्व
उत्तर-
- व्यक्ति + त्व = व्यक्तित्व
- अपना + त्व = अपनत्व
- देव + त्व = देवत्व
- मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
- गुरु + त्व = गुरुच
प्रश्न
4.
निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए
संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए-
उदहारण : चलते-पुरजे
उत्तर-
- पढ़े – लिखे
- इने – गिने
- सुख – दुख
- पूजा – पाठ
प्रश्न
5.
‘भी’ का प्रयोग करते हुए
पाँच वाक्य बनाइए-
उदाहरण : आज मुझे बाज़ार होते हुए
अस्पताल भी जाना है।
उत्तर-
- यहाँ आम के साथ नीम के भी पौधे लगाना।
- बाज़ार से फल के साथ सब्जियाँ भी लाना।
- सुमन के साथ काव्या भी आएगी।
- पूजा-पाठ के अलावा सदाचार भी सीखना चाहिए।
- किसानों की समस्याएँ अभी भी ज्यों की त्यों हैं।
योग्यता-विस्तार
प्रश्न
1.
‘धर्म एकता का माध्यम है’- इस
विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर-
‘धर्म एकता का माध्यम है’ इस
विषय पर छात्र स्वयं चर्चा करें।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित
प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1.
रमुआ पासी और बुधू मियाँ किनके प्रतीक
हैं?
उत्तर-
रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ उन
लोगों-करोड़ों अनपढ़ साधारण-से आदमियों के
प्रतीक हैं जो धर्म के नाम पर आसानी से
बहलाए-फुसलाए जा सकते हैं।
प्रश्न
2.
रमुआ और बुधू मियाँ जैसे लोगों का दोष
क्या है?
उत्तर-
रमुआ और बुद्धू मियाँ जैसे लोगों का दोष
यह है कि वे अपने दिमाग से कोई बात
सोचे बिना दूसरों के बहकावे में आ जाते
हैं और धर्म को जाने बिना
धर्मांधता में अपनी जान देने को तैयार
रहते हैं।
प्रश्न
3.
साम्यवाद का जन्म क्यों हुआ?
उत्तर-
पश्चिमी देशों में गरीबों को पैसे का
लालच दिखाकर उनसे काम लिया जाता है।
उनकी कमाई का असली फायदा धनी लोग उठाते
हैं और गरीबों का शोषण करते हैं।
इसी शोषण के विरोध में साम्यवाद का जन्म
हुआ।
प्रश्न
4.
गांधी जी के अनुसार धर्म का स्वरूप क्या
था?
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार धर्म में ऊँचे और
उदार तत्व होने चाहिए। उनमें त्याग,
दूसरों की भलाई, सहिष्णुता, सद्भाव
जैसे तत्व होने चाहिए। दूसरे को दुख
देने वाले भाव, असत्यता, धर्मांधता
तथा बाह्य आडंबर धर्म के तत्व नहीं होने
चाहिए।
प्रश्न
5.
चालाक लोग सामान्य आदमियों से किस तरह
फायदा उठा लेते हैं? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-
चालाक लोग सामान्य लोगों की धार्मिक
भावनाओं का शोषण करना अच्छी तरह जानते
हैं। ये सामान्य लोग धर्म के बारे में
कुछ नहीं जानते हैं। वे लकीर को
पीटते रहना ही धर्म समझते हैं। ये चालाक
लोग धर्म का भय दिखाकर उनसे अपनी
बातें मनवा ही लेते हैं और उनसे फायदा
उठा लेते हैं।
प्रश्न
6.
लेखक किसके द्वारा किए गए शोषण को बुरा
मानता है-धनायों द्वारा या अपने देश
के स्वार्थी तत्वों द्वारा किए जा रहे
शोषण को? पाठ
के आलोक में लिखिए।
उत्तर-
लेखक जानता है कि पाश्चात्य देशों में
अमीरों द्वारा अपने धन का लोभ दिखाकर
गरीबों का शोषण किया जाता है, परंतु
हमारे देश में स्वार्थी तत्व गरीबों
का शोषण धर्म की आड़ में लोगों की बुधि
पर परदा डालकर करते हैं। लेखक इस
शोषण को ज्यादा बुरा मानता है।
प्रश्न
7.
हमारे देश में धर्म के ठेकेदार कहलाने
का दम भरने वाले लोग मूर्ख लोगों का शोषण किस तरह करते हैं?
उत्तर-
हमारे देश में धर्म के ठेकेदार कहलाने
का दम भरने वाले लोग मूर्ख लोगों के
मस्तिष्क में धर्म का उन्माद भरते हैं
और फिर उसकी बुधि में ईश्वर और आत्मा
का स्थान अपने लिए सुरक्षित करके धर्म, आत्मा, ईश्वर, ईमान
आदि के नाम पर एक-दूसरे
से लड़ाते हैं।
प्रश्न
8.
लेखक की दृष्टि में धर्म और ईमान को
किसका सौदा कहा गया है और क्यों ?
उत्तर-
लेखक ने दृष्टि में धर्म और ईमान को मन
का सौदा कहा गया है क्योंकि यह
व्यक्ति का अधिकार है कि उसका मन किस
धर्म को मानना चाहता है। इसके लिए
व्यक्ति को पूरी आज़ादी होनी चाहिए।
व्यक्ति को कोई धर्म अपनाने या त्यागने
के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।
प्रश्न
9.
लेखक ने लोगों के किन कार्यों को
वाह्याडंबर कहा है और क्यों?
उत्तर-
लेखक ने लोगों द्वारा अजाँ देने, नमाज
पढ़ने, पूजा-पाठ
करने, नाक
दबाने आदि को
वाह्याडंबर कहा है क्योंकि ऐसा करके व्यक्ति ने अपनी आत्मा को शुद्ध कर पाता है और न अपना
भला। इन कार्यों का उपयोग वह अपनी धार्मिकता को दिखाने के लिए करता है जिससे
भोले-भाले लोगों पर अपना वर्चस्व बनाए रख सके।
प्रश्न
10.
धर्म के बारे में लेखक के विचारों को
स्पष्ट करते हुए बताइए कि ये विचार कितने उपयुक्त हैं?
उत्तर-
धर्म के बारे में लेखक के विचार धर्म के
ठेकेदारों की आँखें खोल देने वाले
और उन्हें धर्म का सही अर्थ समझाने वाले
हैं। लेखक के इन विचारों में
धर्मांधता, दिखावा और आडंबर की
जगह जनकल्याण की भावना समाई है। इस रूप में
धर्म के अपनाने से दंगे-फसाद और झगड़े
स्वतः ही समाप्त हो सकते हैं। लेखक
के ये विचार आज के परिप्रेक्ष्य में
पूर्णतया उपयुक्त और प्रासंगिक हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1.
लेखक चलते-पुरज़े लोगों को यथार्थ दोष
क्यों मानता है?
उत्तर-
कुछ चालाक पढ़े-लिखे और चलते पुरज़े लोग, अनपढ़-गॅवार
साधारण लोगों के मन में कट्टर बातें भरकर उन्हें धर्माध बनाते हैं। ये लोग धर्म
विरुद्ध कोई बात
सुनते ही भड़क उठते हैं,
और मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। ये
लोग धर्म
के विषय में कुछ नहीं जानते यहाँ तक कि धर्म क्या है, यह भी नहीं जानते हैं। सदियों से
चली आ रही घिसी-पिटी बातों को धर्म मानकर धार्मिक होने का दम भरते हैं
और धर्मक्षीण रक्षा के लिए जान देने को तैयार रहते हैं। चालाक लोग उनके
साहस और शक्ति का उपयोग अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए करते हैं। उनके इस
दुराचार के लिए लेखक चलते-पुरजे लोगों का यथार्थ दोष मानता है।
प्रश्न
2.
देश में धर्म की धूम है’-का
आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
देश में धर्म की धूम है’-को
आशय यह है कि देश में धर्म का प्रचार-प्रसार अत्यंत जोर-शोर से
किया जा रहा है। इसके लिए गोष्ठियाँ,
चर्चाएँ, सम्मेलन, भाषण
आदि हो रहे हैं। लोगों को अपने धर्म से जोड़ने के लिए धर्माचार्य विशेषताएँ गिना रहे
हैं। वे लोगों में धर्मांधता और कट्टरता भर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि
साधारण व्यक्ति आज भी धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं जान-समझ सका है। लोग
अपने धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ समझने की भूल मन में बसाए हैं। ये लोग
अपने धर्म के विरुद्ध कोई बात सुनते ही बिना सोच-विचार किए मरने-कटने को
तैयार हो जाते हैं। ये लोग दूसरे धर्म की अच्छाइयों को भी सुनने को तैयार नहीं
होते हैं और स्वयं को सबसे बड़ा धार्मिक समझते हैं।
प्रश्न
3.
कुछ लोग ईश्वर को रिश्वत क्यों देते हैं? ऐसे
लोगों को लेखक क्या सुझाव देता है?
उत्तर-
कुछ लोग घंटे-दो घंटे पूजा करके, शंख
और घंटे बजाकर, रोजे
रखकर, नमाज
पढ़कर ईश्वर
को रिश्वत देने का प्रयास इसलिए करते हैं, ताकि लोगों की दृष्टि
में धार्मिक
होने का भ्रम फैला सकें। ऐसा करने के बाद वे अपने आपको दिन भर बेईमानी करने और
दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझने लगते हैं। ऐसे लोगों को लेखक यह
सुझाव देता है। कि वे अपना आचरण सुधारें और ऐसा आचरण करें जिसमें सभी के
कल्याण की भावना हो। यदि ये लोग अपने आचरण में सुधार नहीं लाते तो उनका
पूजा-नमाज़, रोज़ा
आदि दूसरों की आज़ादी रौंदने का रक्षा
कवच न बन सकेगा।
प्रश्न
4.
‘धर्म की आड़’ पाठ में निहित संदेश
का उल्लेख कीजिए।
अथवा
‘धर्म की आड़’ पाठ से युवाओं को
क्या सीख लेनी चाहिए?
उत्तर-
‘धर्म की आड़’ पाठ में निहित संदेश
यह है कि सबसे पहले हमें धर्म क्या है,
यह समझना चाहिए। पूजा-पाठ, नमाज़
के बाद दुराचार करना किसी भी रूप में धर्म
नहीं है। अपने स्वार्थ के लिए लोगों को
गुमराह कर शोषण करना और धर्म के
नाम पर दंगे फसाद करवाना धर्म नहीं है।
सदाचार और शुद्ध आचरण ही धर्म है,
यह समझना चाहिए। लोगों को धर्म के
ठेकेदारों के बहकावे में आए बिना अपनी
बुधि से काम लेना चाहिए तथा उचित-अनुचित
पर विचार करके धर्म के मामले में
कदम उठाना चाहिए। इसके अलावा धर्मांध
बनने की जगह धर्म, सहिष्णु बनने की
सीख लेनी चाहिए। युवाओं को यह सीख भी लेनी
चाहिए कि वे धर्म के मामले में
किसी भी स्वतंत्रता का हनन न करें तथा
वे भी चाहे जो धर्म अपनाएँ,
पर उसके कार्यों में मानव
कल्याण की भावना अवश्य छिपी होनी चाहिए।
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