शनिवार, 29 अप्रैल 2023

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter-2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 2 बिलस्य वाणी न कदापि में श्रुता

शब्दार्थ, अनुवाद, पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास, योग्यता विस्तार

Subject – Sanskrit / संस्कृत

पुस्तक का नाम - रुचिरा भाग -3

Class 8 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि Summary

पाठ-परिचय:
संस्कृत के प्रसिद्ध कथाग्रन्थ ‘पञ्चतन्त्रम्’ को कौन नहीं जानता है? इसकी कथाएँ न केवल भारत अपितु विश्व के भी जनमानस में रची-बसी हुई हैं। प्रस्तुत पाठ ‘पञ्चतन्त्र’ के तृतीय तन्त्र ‘काकोलूकीयम्’ से संकलित है। पञ्चतन्त्र के मूल लेखक विष्णुशर्मा हैं। इसमें पाँच खण्ड हैं जिन्हें ‘तन्त्र’ कहा गया है। इनमें गद्य-पद्य रूप में कथाएँ दी गई हैं जिनके पात्र मुख्यत: पशु-पक्षी हैं। अत्यधिक रोचक कथाओं के माध्यम से नीतिकार ने बहुमूल्य शिक्षाओं को मनोहारी हार के रूप में गूँथकर विश्व पर उपकार किया है।

 

शब्दार्थ

कस्मिश्चित्          किसी (कस्मिंश्चन)।
कदाचित्             किसी समय (एकदा, कदाचन)।
परिभ्रमन्            घूमता हुआ (पर्यटन्)।
क्षुधार्तः              भूख से व्याकुल (बभुक्षुः, क्षुधापीडित:)।
आहारम्         -    भोजन (भोजनम्, अशनम्)।
महतीं गुहाम्         बड़ी गुफा को (विशाल गुहाम्, बृहद्गुहाम्)।
दृष्ट्वा              देखकर (विलोक्य, आलोक्य, अवलोक्य)।
नूनम्               अवश्य ही (अवश्यमेव, खलु)।
निगूढो भूत्वा     -    छिपकर (तिरोभूय)।
अन्तरे              बीच में (मध्ये, अन्तराले)।
सिंहपदपद्धतिः        शेर के पैरों के चिह्न (सिंहचरण पद्धतिः)।
तकयामि            सोचता हूँ (चिन्तयामि)।
विचिन्त्य            सोचकर (विचार्य, तर्कयित्वा)।
रवम्                आवाज़ को (शब्दम्, ध्वनिम्)।
समयः          -    शर्त, समझौता (नियमः, पण:)।
बाह्यतः         -    बाहर से (बाह्यपक्षात्)।
आकारयिष्यसि        तुम पुकारोगे (शब्दापयिष्यसि)।
यास्यामि        -    जाऊँगा (गमिष्यामि)।
एतच्छ्रुत्वा        -    यह सुनकर (एतदाकर्ण्य)।
उच्यते              कहा जाता है (कथ्यते)।
भयसन्वस्तमनसाम् –     डरे हुए मन वालों का (भयभीतचेतसाम्)।
वेपथुः           -    कम्पन (कम्पनम्)।
विचार्य          -    सोचकर (विचिन्त्य)।
सहसा               एकाएक (अकस्मात्)।
अनागतम्           आने वाले (दु:ख) को (न आगतम्)।
श्रुता                सुनी (आकर्णिता)।

 

मूलपाठः और अनुवाद

1. कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म। सः कदाचित् इतस्ततः परिभ्रमन् क्षुधातः न किञ्चिदपि आहार प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तसमये एका महतीं गुहा दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्-“नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति। अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि” इति।

अनुवाद

किसी वन में खरनखर नाम का शेर रहता था। किसी समय भूख से पीड़ित होते हुए, इधर-उधर घूमते हुए उसे कोई भी भोजन नहीं मिला। इसके बाद सन्ध्या के समय एक विशाल गुफा को देखकर उसने सोचा-“निश्चय ही इस गुफा में रात में कोई जीव आता है। इसलिए यहीं छिपकर बैठता हूँ” ऐसा।

2. एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। शृगालः अचिन्तयत्-“अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्तीति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?” एवं विचिन्त्य दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः- भो बिल! भो बिल! किं न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समयः कृतोऽस्ति यत् यदाहं बाह्यतः प्रत्यागमिष्यामि तदा त्वं माम् आकारयिष्यसि? यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीय बिलं यास्यामि इति।”

अनुवाद

इसी बीच गुफ़ा का स्वामी दधिपुच्छ नाम वाला गीदड़ वहाँ आ गया तथा उसने जब (ध्यान से) देखा तो शेर के पैरों के चिह्न गुफा में प्रवेश करते हुए दिखे, बाहर की ओर आते हुए नहीं दिखे। गीदड़ ने सोचा-“अरे मैं तो मारा गया। निश्चय ही इस गुफा में शेर है, ऐसा सोचता है। तो क्या करूँ?” ऐसा सोचकर (उसने) दूर से ही बोलना शुरू कर दिया -“हे गुफा! हे गुफा! क्या तुम्हें स्मरण है? कि मेरा तुम्हारे साथ समझौता किया हुआ है-कि जब मैं बाहर से लौटूंगा तो तुम मुझे बुलाओगी? यदि तुम मुझे नहीं बुलाती हो तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊँगा, ऐसा।”

3. अथ एतच्छ्रुत्वा सिंहः अचिन्तयत्-“नूनमेषा गुहा स्वामिनः सदा समाह्वान करोति। परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।”

अथवा साध्विदम् उच्यते-

भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्।।

(अन्वयः- भय-सन्त्रस्तमनसां हस्त-पादाधिकाः न प्रवर्तन्ते। वाणी च अधिक: वेपथुः भवेत्।)

अनुवाद

इसके बाद यह सुनकर शेर ने सोचा-“निश्चय ही यह गुफा (अपने) स्वामी को पुकारा करती है। परन्तु (यह गुफा) मेरे भय से कुछ नहीं बोल रही है।”
अथवा यह उचित कहा गया है-
भय से डरे हुए मन वाले लोगों के हाथ-पैर आदि क्रियाशील नहीं हो पाते हैं (उनकी) वाणी भी अधिक काँपने लगती है।

4. तदहम् अस्य आह्वानं करोमि। एवं सः बिले प्रविश्य मे भोज्यं भविष्यति। इत्थं विचार्य सिंहः सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत्। सिंहस्य उच्चगर्जन-प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्। अनेन अन्येऽपि पशवः भयभीताः अभवन्। शृगालोऽपि ततः दूरं पलायमान: इममपठत्-

अनागतं यः कुरुते स शोभते
स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा
बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।

(अन्वयः- यः अनागतं कुरुते सः शोभते। यः अनागतं न करोति सः शोच्यते। अत्र वने संस्थस्य (मे) जरा समागता। मे बिलस्य वाणी कदापि न श्रुता।)

सरलार्थः
तो मैं इसे पुकारता हूँ। इस तरह वह बिन (गुफा) में प्रवेश करके मेरा भोजन बन जाएगा। ऐसा विचार करके शेर अचानक गीदड़ को पुकारता है। शेर की ऊँची गर्जना की प्रतिध्वनि द्वारा उस गुफा ने जोर-से गीदड़ को पुकारा। इससे दूसरे भी पशु भयभीत हो गए। गीदड़ ने भी वहाँ से दूर भागते हुए यह पढ़ा (कहा)-

जो भावी दु:ख को सोच लेता है, वह शोभा पाता है। जो भावी दु:ख को नहीं सोचता है, उसे शोक करना पड़ता है। इस वन में रहते हुए मेरा बुढ़ापा आ गया। मैंने बिन (गुफा) की वाणी कभी नहीं सुनी।

 

पाठ का अभ्यास

 

1. उच्चारणं कुरुत – (उच्चारण करें)
कस्मिश्चित्           क्षुधार्त:               सिंहपदपद्धतिः
विचिन्त्य             एतच्छ्रुत्वा             समाह्वानम्
साध्विदम्             भयसन्त्रस्तमनसाम्     प्रतिध्वनिः

 

2. एकपदेन उत्तरं लिखत – (एक पद में उत्तर लिखो)

(क) सिंहस्य नाम किम्?

उत्तराणि:- खरनखरः।

 

(ख) गुहायाः स्वामी कः आसीत्?
उत्तराणि:-
दधिपुच्छः।

 

(ग) सिंहः कस्मिन् समये गुहायाः समीपे आगतः?
उत्तराणि:-
सूर्यास्तसमये।

 

(घ) हस्तपादादिकाः क्रियाः केषां न प्रवर्तन्ते?
उत्तराणि:-
भयसन्त्रस्तमनसाम्।

 

(ङ) गुहा केन प्रतिध्वनिता?
उत्तराणि:-
सिंहगर्जनेन।

 

3. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखो)

(क) खरनखरः कुत्र प्रतिवसति स्म?
उत्तराणि:-
खरनखरः कस्मिंश्चित् वने प्रतिवसति स्म।

 

(ख) महतीं गुहां दृष्ट्वा सिंहः किम् अचिन्तयत्?
उत्तराणि:-
महतीं गुहां दृष्ट्वा सिंहः अचिन्तयत्-‘नूनं एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीवः आगच्छति। अतः अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि।’

 

(ग) शृगालः किम् अचिन्तयत्?
उत्तराणि:-
शृगालः अचिन्तयत्-‘अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्ति इति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?’

 

(घ) शृगालः कुत्र पलायितः?
उत्तराणि:-
शृगालः दूरं पलायितः।

 

(ङ) गुहासमीपमागत्य शृगालः किं पश्यति?
उत्तराणि:-
गुहासमीपमागत्य शृगालः पश्यति यत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न बहिरागता।

 

(च) कः शोभते?
उत्तराणि:-
यः अनागतं कुरुते, सः शोभते।

 

4. रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(रेखांकित पदों के लिए प्रश्न निर्माण कीजिए)

(क) क्षुधातः सिंह कुत्रापि आहारं न प्राप्तवान्।
उत्तराणि:-
कीदृशः सिंह कुत्रापि आहारं न प्राप्तवान्?

 

(ख) दधिपुच्छः नाम शृगालः गुहायाः स्वामी आसीत्।
उत्तराणि:-
कः नाम शृगालः गुहायाः स्वामी आसीत्?

 

(ग) एषा गुहा स्वामिनः सदा आह्वानं करोति।
उत्तराणि:-
एषा गुहा कस्य सदा आह्वानं करोति?

 

(घ) भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः न प्रवर्तन्ते।
उत्तराणि:-
भयसन्त्रस्तमनसां कीदृशा: क्रियाः न प्रवर्तन्ते?

 

(ङ) आह्वानेन शृगालः बिले प्रविश्य सिंहस्य भोज्यं भविष्यति।
उत्तराणि:-
आह्वानेन शृगालः कुत्र प्रविश्य सिंहस्य भोज्यं भविष्यति?

 

5. घटनाक्रमानुसारं वाक्यानि लिखत –
(वाक्यों को घटना के क्रमानुसार लिखो)

(क) गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत् ।
(ख) सिंहः एकां महतीं गुहाम् अपश्यत् ।
(ग) परिभ्रमन् सिंहः क्षुधा” जातः।
(घ) दूरस्थः शृगालः रवं कर्तुमारब्धः।
(ङ) सिंहः शृगालस्य आह्वानमकरोत्।
(च) दूरं पलायमानः शृगालः श्लोकमपठत् ।
(छ) गुहायां कोऽपि अस्ति इति शृगालस्य विचारः।

उत्तराणि:
1. परिभ्रमन् सिंहः क्षुधा” जातः। (ग)
2. सिंहः एकां महतीं गुहाम् अपश्यत्। (ख)
3. गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्। (क)
4. गुहायां कोऽपि अस्ति इति शृगालस्य विचारः। (छ)
5. दूरस्थः शृगालः रवं कर्तुमारब्धः। (घ)
6. सिंहः शृगालस्य आह्वानम्करोत्। (ङ)
7. दूरं पलायमानः शृगालः श्लोकमपठत्। (च)

 

6. यथानिर्देशमुत्तरत –
(निर्देशानुसार उत्तर दीजिए)

(क) ‘एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा सः अचिन्तयत्’ अस्मिन् वाक्ये कति विशेषणपदानि, संख्यया सह पदानि अपि लिखत?
उत्तराणि:- 1. एकाम्, 2. महतीम्।

 

(ख) तदहम् अस्य आह्वानं करोमि- अत्र ‘अहम्’ इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि: - खरनखर सिंहाय।

 

(ग) ‘यदि त्वं मां न आह्वयसि’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तराणि: - त्वम्।

 

(घ) “सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्?
उत्तराणि:- दृश्यते।

 

(ङ) वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा’ अस्मिन् वाक्ये अव्ययपदं किम्?
उत्तराणि:- अत्र।

 

7. मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(मञ्जूषा से अव्यय पदों को चुनकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए) |

(कश्चन दूरे नीचैः यदा तदा यदि तर्हि परम् च सहसा)

एकस्मिन् वने ………… व्याधः जालं विस्तीर्य ……. स्थितः। क्रमशः आकाशात् सपरिवारः कपोतराजः ………… आगच्छत्। ………… कपोताः तण्डुलान् अपश्यन् ………… तेषां लोभो जातः। परं राजा सहमतः नासीत्। तस्य युक्तिः आसीत् ……. वने कोऽपि मनुष्यः नास्ति। ……. कुतः तण्डुलानाम् सम्भवः? ………… राज्ञः उपदेशम् अस्वीकृत्य कपोताः तण्डुलान् खादितुं प्रवृत्ताः जाले ….. निपतिताः। अतः उक्तम् .. विदधीत न क्रियाम्’।

 

उत्तराणि:
एकस्मिन् वने कश्चन व्याधः जालं विस्तीर्य दूरे स्थितः। क्रमशः आकाशात् सपरिवारः कपोतराजः नीचैः आगच्छत्। यदा कपोताः तण्डुलान् अपश्यन् तदा तेषां लोभो जातः। परं राजा सहमतः नासीत्। तस्य युक्तिः आसीत् यदि वने कोऽपि मनुष्यः नास्ति। तर्हि कुतः तण्डुलानाम् सम्भवः? परं राज्ञः उपदेशम् अस्वीकृत्य कपोताः तण्डुलान् खादितुं प्रवृत्ताः जाले निपतिताः। अतः उक्तम् ‘सहसा विदधीत न क्रियाम्’।

 

योग्यता-विस्तारः
ग्रन्थ-परिचय-विष्णुशर्मा ने राजा अमरशक्ति के मूर्ख पुत्रों को कुशल राजनीतिज्ञ बनाने के उद्देश्य से कथाओं के संकलन के रूप में पञ्चतन्त्र की रचना की थी। इसमें मित्रभेद, मित्रसम्प्राप्ति, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश तथा अपरीक्षित-कारक; इन पाँच खण्डों में कुल 70 कथाएँ तथा 900 श्लोक हैं। श्लोकों में प्रायः तर्कपूर्ण नीतिश्लोक प्रयुक्त हैं। पञ्चतन्त्र का अनुवाद चतुर्थ शताब्दी के आसपास ईरान की पहलवी भाषा में हुआ था। इसी के आधार पर विदेशी भाषाओं में इसके अनेक अनुवाद हुए। काकोलूकीयम्’ पञ्चतन्त्र का तृतीय तन्त्र है। इसका नाम काक और उलूक की मुख्य कथा के कारण पड़ा है।


व्याकरणम्:
अव्यय-अव्यय संस्कृत में दो प्रकार के शब्द हैं-विकारी तथा अविकारी। विकारी शब्द परिवर्तनशील हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया शब्द विकारी हैं। जैसे-बालकः, सः, शुक्लः, गच्छति। अविकारी शब्द अव्यय कहलाते हैं। इनके रूप कभी नहीं बदलते। जैसे-अत्र, अधुना, अपि।

अव्ययों के भी रूढ़ और यौगिक दो रूप मिलते हैं। रूढ अव्ययों के खण्ड नहीं होते जैसे-च, अपि, वा, तु, खलु, न इत्यादि। यौगिक अव्ययों के खण्ड होते हैं। ये कृत्, तद्धित या समास के रूप में होते हैं। कृत् से बने अव्यय हैं–गत्वा, गन्तुम् इत्यादि। तद्धित से बने अव्यय हैं-सर्वथा, एकदा, तत्र, इत्थम्, कथम् इत्यादि। समास के रूप में अव्यय हैं-प्रतिदिनम्, यथाशक्ति इत्यादि।

प्रस्तुत पाठ में कदाचित्, इतस्ततः (इतः + ततः), , दृष्ट्वा , नूनम्, अपि, तर्हि, अत्र, एव (अत्रैव), भूत्वा, इति, , बहिः, अहो, एवम्, विचिन्त्य, सह, तदा, यदि, अथ, श्रुत्वा, सदा, परन्तु (परम् + तु), प्रविश्य, सहसा, कदापि (कदा + अपि) ये अव्यय हैं। इनकी उपर्युक्त कोटियों में पहचान की जा सकती है।

 

 

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