शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि

NCERT Solutions for Class 8th Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि

शब्दार्थ, अनुवाद, पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास, योग्यता विस्तार

Subject – Sanskrit / संस्कृत

पुस्तक का नाम - रुचिरा भाग -3

Class 8 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि Summary

पाठ परिचय

सुभाषित’ शब्द ‘सु और भाषित्’ इन दो शब्दों के मेल से सम्पन्न होता है। सु का अर्थ सुन्दर, मधुर तथा भाषित का अर्थ वचन है। इस तरह सुभाषित का अर्थ सुन्दर। मधुर वचन है। प्रस्तुत पाठ में सूक्तिमञ्जरी, नीतिशतकम् मनुस्मृतिः, शिशुपालवधम् पञ्चतन्त्रं से रोचक और विचारोत्तेजक श्लोकों को संगृहीत किया गया है।

 

शब्दार्थ:
गुणाः          अच्छे लक्षण

गुणज्ञेषु        गुणी जनों में

प्राप्य          पाकर

दोषा:          दोष, कुलक्षण

सुस्वादुतोयाः    स्वादिष्ट जल

प्रभवन्ति       निकली है, उत्पन्न होती है

नद्यः         नदियाँ

आसाद्य       मिलकर,

अपेया          न पीने योग्याः

पशुः           पशु, जानवर, मूर्ख

तृणम्         घास

खादन्नपि      खाते हुए भी

जीवमान       जीवित रहता हुआ

भागधेयम्       सौभाग्य

लुब्धस्य       लोभी का

यश          कीर्ति

पिशुनस्य       चुगलखोर की

नष्टक्रियस्य –    निष्क्रिय, निकम्मे का

व्यसिन        बुरी आदत वालों की

कृपणस्य      कंजूस की

प्रभत्त         उन्मत्त; नराधिपस्य राजा का

कटकम्       कड़वा

जनयेत्         पैदा करती है

असौ          वह

सन्तः         सज्जन

तथैव         वैसै ही

श्रुत्वा         सुनकर

सृजन्ति       निर्माण करते है।

 

मूलपाठः

गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥1

सरलार्थ : गुणीजनों में गुण, गुण ही बने रहते हैं। वे (गुण) निर्गुण (दर्प) व्यक्ति के पास जाकर दोष बन जाते है। नदियाँ स्वादिष्ट जल वाली होती है। वे नदियाँ ही समुद्र में मिलकर अपेय (न पीने योग्य) बन जाती है।

भाव : संगति में गुण विकसित होते हैं किंतु कुसंगति में वही गुण दोष स्वरूप बन जाते हैं।

 

साहित्यसङ्गीकलाविहीनः, साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः, तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।।2।।

सरलार्थ : साहित्य, सङ्गीत व कला-कौशल से हीन व्यक्ति वास्तव में पूँछ तथा सींग से रहित पशु है जो घास न खाता हुआ भी (पशु की भाँति) जीवित है। वह तो (उन असभ्य पशु समान मनुष्यों) पशुओं का परम सौभाग्य है (कि घासफूस न खाकर अपितु स्वादिष्ट व्यञ्जन खाते हैं)।

भाव : साहित्य में अभिरुचि संगीत आदि कलाओं में कौशल से ही मनुष्य मनुष्य बनता है, अन्यथा वह पशु का-सा ही जीवन जीता रहता है।

 

लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री, नष्टक्रियस्य कुलमर्थपररस्य धर्मः।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं, राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य॥3

सरलार्थ : लालची व्यक्ति का यश, चुगलखोर की दोस्ती, कर्महीन का कुल, अर्थ/धन को अधिक महत्त्व देने वाले का धर्म अर्थात् धर्मपरायणता, बुरी आदतों वाले का विद्या का फल अर्थात् विद्या से मिलने वाला लाभ, कंजूस का सुख और प्रमाद करने वाले मन्त्री युक्त राजा को राज्य/सत्ता नष्ट हो जाता/जाती है।
भाव : यदि यश चाहिए तो व्यक्ति लालच न करे, मित्रता चाहिए तो चुगलखोर न हो, धर्माचरण करना हो तो धन लाभ को अधिक महत्त्व न दे, विद्या का फल प्राप्त करना हो तो बुरी आदतों से बचे। जीवन में सुख चाहिए तो कंजूस न हो और सत्ता को बनाए रखना हो तो मन्त्री कर्तव्य के प्रति लापरवाह न हो। |

 

पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं, माधुर्यमेव जनयेन्मधुक्षिकासौ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां, श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥4

सरलार्थ : जिस प्रकार यह मधुमक्खी मीठे अथवा कड़वे रस को एक समान पीकर मिठास ही उत्पन्न करती है, उसी प्रकार सन्त लोग सज्जन व दुर्जन लोगों की बात एक समान सुनकर सूक्ति रूप रस का सृजन करते हैं।
भाव : सन्त लोग सज्जन और दुर्जन में भेदभाव न कर दोनों की बात सुनकर अच्छी बातें कहते हैं, जिस प्रकार मधुमक्खी मीठा अथवा कड़वा दोनों रस एक समान पीकर मधु का ही निर्माण करती है।

 

(ङ) विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते ।।
प्रासादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः ॥ 5

सरलार्थ : जो व्यक्ति निश्चय से पुरुषार्थ छोड़कर भाग्य का ही सहारा लेते हैं। महल के द्वारा पर बने हुए नकली सिंह (शेर) की तरह उनके सिर पर कौए बैठते हैं।

भाव : व्यक्ति को कभी भी अपने भाग्य पर निर्भर नहीं होना चाहिए बल्कि सदैव अपना पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। भाग्य पर भरोसा करने वाला ऐसा व्यक्ति सदैव दिखावा ही करता है।

 

च) पुष्पपत्रफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः ।।
धन्या महीरुहाः येषां विमुखा यान्ति नार्थिनः ॥6

सरलार्थ : फूल-पत्ते-फल-छाया-जड़-छाल और लकड़ियों से (के कारण) वृक्ष धन्य होते हैं, जिनसे माँगने वाले (कभी) विमुख (निराश/वापस) नहीं होते हैं।
भावः वृक्ष सदैव परोपकार करते हैं। वे अपने शरीर के अंगों से सदैव लोगों का भला ही करते रहते हैं। हमें भी वृक्षों की तरह हर प्रकार से लोगों की ही नहीं अपितु समस्त जीवों की सेवा करनी चाहिए।

(छ) चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः।
न कूपखनेनं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे ॥7

सरलार्थ : निश्चय से विपत्तियों (मुसीबतों) का शुरुआत में ही इलाज (समाधान) सोचना चाहिए। आगे से घर के जलने पर कुआँ खोदना उचित नहीं होता है।
भाव : प्रत्येक मनुष्य को समस्या का प्रारम्भ से ही समाधान ढूँढ़कर रखना चाहिए। जिससे यदि समस्या आती है तो वह मुसीबत (दु:ख का कारण) न बन जाए। इसी में मनुष्य की भलाई है। समस्या सामने आ जाने पर समाधान ढूंढना उचित नहीं होता है।

 

 

योग्यता-विस्तारः

प्रस्तुत पाठ में महापुरुषों की प्रकृति, गुणियों की प्रशंसा,सज्जनों की वाणी, साहित्य-संगीत कला की महत्ता चुगलखोरों की दोस्ती से होने वाली हानि, स्त्रियों के प्रसन्न रहने में सबकी खुशहाली को आलङकारिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

पाठ के श्लोकों के समान अन्य सुभाषितों को भी स्मरण रखें तथा जीवन में उनकी उपादेयता/संगीत पर विचार करें।

(क) येषां न विद्या न तपो न दानम्
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्तिड़
(क) जिनके पास न विद्या है, न तप है, न दान है, न ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है; वे मृत्यु लोक में धरती पर (केवल) भार बने हुए हैं। वे मनुष्य के रूप में पशु ही बने हुए चरते (विचरते) फिरते हैं।

 

(ख) गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वयः।
(ख) गुणवानों में गुण ही पूजे जाते हैं-लिङ्ग और आयु नहीं।


(ग) प्रारभ्य चोत्तमजना:न परित्यजन्ति।
(ग) कोई भी कार्य प्रारम्भ करके उत्तम लोग (उसे पूरा होने से पहले) नहीं छोड़ते हैं।

 

(घ) दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाडलडकतोऽपि सन्।
(घ) विद्या से युक्त होने पर भी दुष्ट व्यक्ति को त्याग देना चाहिए।

 

(ङ) न प्राणान्ते प्रकृतिविकृतिर्जायते चोत्तमानाम्।
(ङ) उत्तम लोगों का स्वभाव प्राणान्त होने पर भी विकृत (दूषित) नहीं होता है।

(च) उदये सविता रक्तो रक्ताश्चास्तङ्गते तथा।
सम्पत्तौ य विपत्तौ च महतामेकरूपताड़ सरलार्थ:
(च) सूर्य उदय और अस्त दोनों ही दशाओं में लाल रहता है। महान लोग सम्पत्ति और विपत्ति में समान ही रहते हैं।

 

उपर्युक्त सुभाषितों के अंशों को पढ़कर स्वयं समझने का प्रयत्न करें तथा संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं के सुभाषितों का संग्रह करें।

गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति’ – इस पंक्ति में विसर्ग सन्धि के नियम मेंगुणाः के विसर्ग का दोनों बार लोप हुआ है। सन्धि के बिना पंक्ति ‘गुणा: गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति’ होगी।

 

 

अभ्यासः

प्रश्न 1. पाठे दत्तानां पद्यानां सस्वरवाचनं कुरुत।
उत्तरम्-
  छात्राः शिक्षक/अध्यापक सहायतया कुरुत।

2. श्लोकांशेषु रिक्तस्थानानि पूरयत(श्लोकों के रिक्त स्थानों को पूरा कीजिए)

(क) समुद्रमासाद्य …………. ।

(ख) ………….वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।

(ग) तद्भागधेयं ………….पशूनाम्।

(घ) विद्याफलं …………. कृपणस्य सौख्यम्।

(ङ) पौरुषं विहाय यः …………. अवलम्बते।

(च) चिन्तनीया हि विपदाम् ………….प्रतिक्रियाः।

 

उत्तरम्- (क) समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।

(ख) श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।

(ग) तद्भागधेयं परमं पशूनाम्।

(घ) विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यम्।

(ङ) पौरुषं विहाय यः हि दैवम् अवलम्बते।

(च) चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः।

 

3. प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-

(प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए)

(क) व्यसनिनः किं नश्यति?

(ख) कस्य यशः नश्यति?

(ग) मधुमक्षिका किं जनयति?

(घ) मधुरसूक्तरसं के सृजन्ति?

(ङ) अर्थिनः केभ्यः विमुखा न यान्ति?

 

उत्तरम्- (क) विद्याफलं, (ख) लुब्धस्य, (ग) माधुर्यम्, (घ) सज्जना:, (ङ) महीरूहेभ्यः ।

 

4. अधोलिखित-तद्भव-शब्दानां कृते पाठात् चित्वा संस्कृतपदानि लिखत

(निम्नलिखित तद्भव शब्दों के पाठ में से देखकर संस्कृत पद लिखिए)

यथा- कंजूसकृपणः

कड़वा               …………………….
पूँछ
                   …………………….
लोभी
                …………………….
मधुमक्खी
     …………………….
तिनका …………………….

 

उत्तरम्-
कंजूस
                           कृपणः
कड़वा
                       कटुकम्
पूँछ
                           पुच्छः / पुच्छम्
लोभी
                         लुब्धाः
मधमक्खी
                   मधुमक्षिका
तिनका
                       तृणम्

5.  अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदं क्रियापदं च चित्वा लिखत

(निम्नलिखित वाक्यों में से कर्ता और क्रियापद देखकर लिखिए)

वाक्यानि                                            कर्ता                                                क्रिया

यथा- सन्तः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।                    सन्त:                                             सृजन्ति

(क) निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।             …………………….                   …………………….

(ख) गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति।                    …………………….                   …………………….

(ग) मधुमक्षिका माधुर्यं जनयेत्।             ………………….                      …………………….

(घ) पिशुनस्य मैत्री यशः नाशयति।          …………………….                 …………………….

(ङ) नद्यः समुद्रमासाद्य अपेयाः भवन्ति।   …………………….               …………………….

उत्तरम्-

वाक्यानि                                    कर्ता                                                क्रिया

(क) निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।              दोषाः                                              भवन्ति         

(ख) गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति।                     गुणाः                                              भवन्ति    

(ग) मधुमक्षिका माधुर्यं जनयेत्।               मधुमक्षिका                                      जनयेत्              

(घ) पिशुनस्य मैत्री यशः नाशयति।           मैत्री                                               नाशयति        

(ङ) नद्यः समुद्रमासाद्य अपेयाः भवन्ति।    नद्यः                                               भवन्ति

6. रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत 

( रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)

(क) गुणाः गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति।
(ख) नद्यः सुस्वादुतोयाः भवन्ति।
(ग) लुब्धस्य यशः नश्यति।
(घ) मधुमक्षिका माधुर्यमेव जनयति।
(ङ) तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः।

 

उत्तरम्-

(क) के गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति?
(ख) काः सुस्वादुतोयाः भवन्ति?
(ग) कस्य यशः नश्यति?
(घ) का माधुर्यमेव जनयति?
(ङ) तस्य कस्मिन् तिष्ठन्ति वायसाः?

 

7. उदाहरणानुसारं पदानि पृथक् कुरुत

(उदाहरण के अनुसार पदों को अलग कीजिए)
यथा-
समुद्रमासाद्य
                          समुद्रम्            +          आसाद्य

माधुर्यमेव                       ……………………. + …………………….
अल्पमेव
                         ……………………. + …………………….
सर्वमेव
                           ……………………. + …………………….
दैवम्
                             ……………………. + …………………….
महात्मनामुक्तिः
              ……………………. + …………………….
विपदामादावेव
                ……………………. + …………………….

 

उत्तरम्-

माधुर्यमेव                      माधुर्यम्          +          एव
अल्पमेव
                      अल्पम्            +          एव
सर्वमेव
                        सर्वम्              +          एव
दैवम्
                           दैवम्               +          एव
महात्मनामुक्तिः
            महात्मनाम्      +          उक्तिः
विपदामादावेव
              विपदाम्          +          आदौ +            एव

 

 

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