NCERT Book Vasant Solutions Class 7 Hindi
वसंत भाग-2 कक्षा-सातवीं हिंदी
Chapter-2 Himalaya aur Betiyaan
पाठ-2 हिमालय और बेटियाँ
शब्दार्थ, पाठ का सार, प्रश्नोत्तर
शब्दार्थ
गंभीर - गूढ़, गहरा, शांत
संभ्रांत - शिष्ट, कुलीन
श्रद्धा - अपने से बड़ों आदि के प्रति उत्पन्न होने वाला आदर भाव
डुबकियाँ - पानी में थोड़ी देर के लिए डूबना (कूदना)
विशाल - बड़ा
भाव-भंगी - विभिन्न स्वरूप
बाल-लीला - बच्चों के मनभावन खेल
उल्लास - खुशी
कौतूहल - जिज्ञासा, जानने की इच्छा
विस्मय - हैरानी
निकेतन - घर, रहने का स्थान
विराट प्रेम - अत्यधिक प्यार
अतृप्त - संतुष्ट न होना,असंतुष्ट
बंधुर - गहरी, बंधी हुई
अधित्यकाएँ - गुफाएँ
सरसब्ज उपत्यकाएँ - हरी-भरी घाटियाँ
सिर धुनना - पछताना
मौन - चुपचाप
प्रवाहित - बहना,बहती हुई
श्रेय - अच्छा, क्रेडिट
आकर्षक - अपनी ओर खींचने वाला
लुभावना - मन को भाने वाला
झिझक - शर्म
प्रतिदान - लौटाना
प्रेयसी - प्रेमिका, प्यार करने वाली
सचेतन - सजीव
समतल - बराबर सतह का, एक जैसी सतह का
लोकमाता - कल्याणकारी,जग का पालन करने वाली
उचट - उदास
अचरज - हैरानी में डाल देना
मुदित - मोह लेना
खुमारी - आलस्य
नटी - नर्तकी
पट - पर्दा
अनुपम - जिसकी उपमा न दी जा सके
अद्भुत - विचित्र
पिता - हिमालय
बेटियाँ - नदियाँ
पाठ-2 हिमालय और हम
पाठ का सार
इस पाठ में लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों के बारे में बताया है। हिमालय की चोटियों से निकलती हुई नदियाँ किस तरह अपने मनमोहक रूप परिवर्तित करती हैं और अंततः समंदर में जाकर मिल जाती हैं। इस पाठ में हिमालय को नदियों के पिता के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वहीं नदियाँ हिमालय की बेटियों की भूमिका में हैं।
हिमालय नदियों का पिता इसलिए है क्योंकि सभी नदियों का जन्म हिमालय पर जमी बर्फ के पिघलने से होता है। नदियाँ हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों पर बलखाती हुई, चलती हुई, मैदानों में आकर समतल रूप से बहने लगती हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि हिमालय की चोटियाँ नदियों के बचपन के लीला स्थल व अठखेलियाँ करने के निकेतन हैं। वहीँ मैदान नदियों का पालना है जहाँ नदियाँ शांत-सौम्य हो जाती हैं। इन्हीं मैदानों से नदियाँ बहती हुई धीरे-धीरे धीर, गंभीर होती हुईं समंदर में आकर मिल जाती है। समंदर को हिमालय का दामाद माना गया है क्योंकि वह नदियों का वरण करता है और नदियाँ भी हँसती खेलती हुईं समुद्र का आलिंगन करती हैं।
हिमालय से लेकर समंदर तक की यात्रा में नदियाँ अपने कई रूप बदलती हैं। इन रूपों में कई स्थल आकृतियों का जन्म होता है जैसे – जलप्रपात, झील आदि। हिमालय से निकलने वाली नदियों में सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो ऐसी नदियाँ हैं जो समंदर में जाकर मिलती हैं।
जब लेखक हिमालय की गोदी में अठखेलियाँ करती हुई नदियों को देखता है तो वे बहुत सुंदर प्रतीत होती हैं। ये नदियाँ एक सभ्य महिला की भांति दिखती हैं।लेखक के मन में उनके प्रति बहुत आदर और श्रद्धा का भाव है जब लेखक इन नदियों में डुबकियाँ लगाता है तो लेखक को माँ, दादी, मौसी या मामी की गोदी में खेलने के जैसा एहसास होता है और लेखक नदियों से आत्मीय रूप से जुड़ जाता है।
एक बार लेखक हिमालय पर काफी ऊँचाई तक गया तो उसने नदियों का बदला हुआ आकर्षक रूप देखा उसे बहुत हैरानी हुई। उसने वहाँ जाकर देखा कि पर्वतों के मध्य में गंगा, यमुना, सतलज जैसी नदियाँ कितनी दुबली-पतली दिखती हैं लेकिन समतल धरातल पर पहुँच कर ये विशाल धारा में परिवर्तित हो जाती हैं। मैदानों में पहुँचकर नदियों का उछलना, कूदना, खिलखिलाना, और उल्लास सब समाप्त हो जाता है। नदियाँ पर्वतों से बिल्कुल अल्हड़ बाला की भांति निकलती हैं और मैदानों में पहुँचकर शांत, सौम्य व गंभीर रूप धारण कर लेती हैं लेखक को हिमालय की बेटियाँ बहुत आकर्षित करती हैं।
लेखक बहुत सोच विचार कर भी यह समझ नहीं पाता कि आखिर नदियों का लक्ष्य क्या है? वे किससे मिलने की चाह में आगे बढ़ रही हैं? आखिर क्यों वे बहुत अधिक प्रेम करने वाले पिता 'हिमालय' को छोड़कर दूर जाना चाहती हैं? आखिर वे किसका प्रेम पाना चाहती हैं।
जिस प्रकार बेटियाँ ससुराल जाने के समय मायके की हर चीज, जिसे वे प्रेम करती हैं खुशी-खुशी छोड़ जाती हैं। उसी प्रकार हिमालय की ये बेटियाँ (Himalay Ki Betiyan) भी बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, पौधों से भरी-पूरी घाटियाँ, गुफाएँ, हरी-भरी घाटियाँ सब कुछ छोड़कर समुद्र की ओर बढ़ जाती है।
लेखक ने हिमालय को बुढ़ा कह कर संबोधित किया है वह इसलिए क्योंकि हिमालय ऐसी नदियों का पिता है जो बिंदास रूप से बचपन में हिमालय रूपी अपने पिता की गोद में खेलीं और फिर बड़ी होकर चल पड़ी समंदर की ओर।
लेखक ने यहाँ कालिदास ( संस्कृत के महाकवि) का जिक्र भी किया है। एक बार कालिदास के बिरही यक्ष ने मेघदूत से कहा था कि तुम वेत्रवती (बेतवा ) नदी को प्रेम का संदेश अवश्य देना। वह तुम्हें प्रेम करती है और तुम्हें पाकर अवश्य प्रसन्न होगी। लेखक को लगता है कि महाकवि कालिदास को भी नदियों का जीवंत और सजीव रूप पसंद था।
वास्तव में पहाड़ों से निकलती हुई नदियों व समतल पर बैठी हुई नदियों को जो भी देखेगा वह दोनों में बहुत अंतर पाएगा क्योंकि पहाड़ों पर बहने वाली नदियाँ अल्हड़, बेधड़क, बिंदास, बाल-लीलाएँ करते हुए बच्चों के रूप में दिखाई देती हैं वहीं मैदानों में बहती हुई नदियाँ गंभीर, स्थिर नव युवती के रूप में सभी को आकर्षित करती हैं।
काका कालेलकर ने नदियों को माता का रूप दिया क्योंकि नदियाँ सभी का कल्याण करती हैं। पुराने समय में नदियों के किनारे ही सभ्यताएँ फली-फूलीं और आज भी नदियाँ मानव जीवन का पालना बनी हुई हैं। जहाँ नदियाँ होती हैं, वहाँ खेत लहलहाते हैं, वनस्पतियाँ खिलखिलातीं हैं और सभी प्राणी जगत जीवन यापन करते हैं।
कुछ कवियों ने नदियों को प्रेयसी अर्थात प्रेमिका माना है जबकि कुछ कवि उन्हें बहन का स्थान भी देते हैं। एक बार लेखक स्वयं मन से बहुत उदास था तो तिब्बत में सतलुज के किनारे जाकर बैठ जाता है। वह अपने पैर पानी में लटका देता है थोड़ी देर में ही वह तन और मन से ताजगी महसूस करता है और तभी लेखक कह उठता है -
’सतलुज बहन तुम्हारी जय हो’! तुम्हारा स्वरूप बहुत प्रिय है तुमसे हृदय प्रसन्न हो गया। सारी खुमारी (आलस्य) दूर हो गया। मैं तुम पर निछावर होता हूँ तुम पुत्री हो। हिमालय तुम्हारा पिता है। पिता हिमालय चुपचाप रह कर भी तुम्हारे लिए चिंतित है। प्रकृति तो नर्तकी (नृत्य करने वाली) समान है इसी प्रकृति के प्रांगण (आँगन) में हिमालय अपनी अद्भुत और अनुपम छटा बिखेर रहा है। हे! सतलुज बहन तुम्हारी जय हो।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?
उत्तर- लेखक नदियों को माँ मानने की परपंरा से पहले इन नदियों को स्त्री के सभी रूपों में देखता है। जिसमें वो उसे बेटी के समान प्रतीत होती है इसलिए लेखक नदियों को हिमालय की बेटी कहता है। कभी वह इन्हें प्रेयसी की भांति प्रेम करने वाली कहता है, जिस तरह से एक प्रेयसी अपने प्रियतम से मिलने के लिए आतुर (व्याकुल) रहती है, उसी तरह ये नदियाँ सागर से मिलने को आतुर होती हैं। कभी लेखक को नदियाँ ममता से भरी हुई बहन के समान प्रतीत होती हैं। जिसके सम्मान में वो हमेशा हाथ जोड़े शीश (सिर) झुकाए खड़ा रहता है।
प्रश्न- सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं?
उत्तर - सिंधु और ब्रह्मपुत्र की विशेषताएँ इस प्रकार है:-
- सिंधु और ब्रह्मपुत्र ये दोनों ही महानदी हैं।
- इन दोनों महानदियों में सारी नदियों का संगम ( मिलन) होता है।
- ये भौगोलिक व प्राकृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण नदियाँ हैं। ये डेल्टाफार्म करने के लिए, मत्स्य पालन, चावल की फसल व जल स्रोत का उत्तम साधन हैं।
- ये दोनों ही पौराणिक नदियों के रूप में विशेष पूजनीय व महत्वपूर्ण हैं।
- ये दो मुख्य नदियाँ हैं जो सीधे समुद्र में जाकर मिलती हैं।
- सिन्धु नदी अरब सागर में जाकर मिलती है और ब्रह्मपुत्र नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है।
प्रश्न- काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?
उत्तर- कवि नदियों के प्रति सम्मान के भाव प्रदर्शित करते हुए उन्हें लोकमाता (जगत जननी) कहता है क्योंकि ये नदियाँ हमारा आरम्भिक काल से ही माँ की भांति भरण-पोषण करती आ रही है। ये हमें पीने के लिए पानी देती है तो दूसरी तरफ इसके द्वारा लाई गई ऊपजाऊ मिट्टी खेती के लिए बहुत उपयोगी होती है। ये मछली पालन में भी बहुत उपयोगी हैं अर्थात् ये नदियाँ सदियों से हमारी जीविका का साधन रही हैं। हिन्दू धर्म में ये नदियाँ पौराणिक आधार पर भी विशेष पूजनीय हैं। इसलिए ये हमारे लिए माता के समान है जो सबका कल्याण करती हैं।
प्रश्न- हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?
उत्तर- लेखक ने हिमालय यात्रा में निम्नलिखित की प्रशंसा की है –
- हिमालय की अनुपम छटा (सुन्दर प्राकृतिक दृश्य) की
- हिमालय से निकले वाली नदियों की अठखेलियों की
- उसकी बरफ़ से ढकी पहाड़ियों की सुदंरता की
- पेड़-पौधों से भरी घाटियों की
- देवदार, चीड़, सरो, चिनार, सफैदा, कैल से भरे जंगलों की
- पिता के रूप में हिमालय द्वारा किए जाने वाले पालन-पोषण की
- बेटियों के रूप में नदियों की बाल-लीलाओं व अल्हड़ मस्ती की
लेख से आगे
प्रश्न-1- नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।
उत्तर- नदी पर कविता
नदी: कामधेनु -त्रिलोचन
नदी ने कहा था: मुझे बाँधो
मनुष्य ने सुना और
तैरकर धारा को पार किया।
नदी ने कहा था: मुझे बाँधो
मनुष्य ने सुना और
सपरिवार धारा को
नाव से पार किया।
नदी ने कहा था: मुझे बांधो
मनुष्य ने सुना और
आखिर उसे बाँध लिया
बाँध कर नदी को
मनुष्य दुह रहा है
अब वह कामधेनु है।
प्रश्न – 2 गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम' रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘हिमालय’ तथा जयशंकर प्रसाद की कविता ‘हिमालय के आंगन' में पढ़िए और तुलना कीजिए।
उत्तर:
हिमालय और हम-गोपाल सिंह नेपाली
[1] गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।
इतनी ऊंची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही,
पर्वत-पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वत राज यही,
अंबर में सिर, पाताल चरन
मन इसका गंगा का बचपन
तन वरन-वरन, मुख निरावरन
इसकी छाया में जो भी है, वह मस्तक नहीं झुकाता
है।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।।
[2] अरुणोदय की पहली लाली, इसको ही चूम निखर
जाती,
फिर संध्या की आँतम लाली, इस पर ही झूम बिखर
जाती।
इन शिखरों की माया ऐसी,
जैसा प्रभात संध्या वैसी,
अमरों को फिर चिंता कैसी,
इस धरती का हर लाल खशी से उदय-अस्त अपनाता है।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।।
[3] हर संध्या को इसकी छाया, सागर
सो लंबी होती है,
हर सुबह वही फिर गंगा की, चादर सी लंबी होती
है।
इसकी छाया में रंग गहरा,
है दंश हरा, परदेश हरा,
हर मौसम है, संदेश भरा।
इसका पद-तल छूने वाला, वेदों की गाथा गाता है।
गिरिराज हिमालय से भारत का, कुछ ऐसा ही नाता
है।।
[4] जैसा वह अटल, अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी,
हैं अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी।
कोई क्या हमको ललकारे
हम कभी न हिंसा से हारे
दु:ख देकर तुमको क्या मारे
गंगा का जल जो भी पी ले, वह दुःख में भी
मुसकांता है।
गिरिराज हिमालय से भारत का, कुछ ऐसा ही नाता
है।।
इस कविता में कवि बताता है कि हिमालय पर्वत पर्वतों का राजा है और उसका भारत के साथ विशेष संबंध है। इस पर्वत की चोटी विश्व भर में सबसे ऊँची है। यही कारण है कि यह इस पृथ्वी का ताज है। पहाड़ों से भरी हुई इस पृथ्वी पर हिमालय ही पर्वतों का राजा है। इस पर्वत का सिर आकाश में है तो इसके चरण समुद्र में हैं। सागर इसके चरण धोता है। इसी से गंगा नदी निकलती है जो इसके मन के समान है। इसका शरीर तो ढका हुआ है पर इसका मुख उपड़ा हुआ है। शरीर पर हरियाली ही इसका आवरण है। इस पर्वत की छाया में भारत देश है जो कभी किसी के सामने सिर नहीं झुकाता है। भारत का इस पर्वत के साथ विशेष नाता है।
हिमालय पर्वत इतना बड़ा है कि शाम के समय इसकी छाया समुद्र के समान बड़ी होती है। प्रात:काल होते ही गंगा नदी चादर के समान बहती दिखाई देती है। इसकी छाया गहरी होती है। देश-परदेश सभी जगह हरियाली छाई रहती है। प्रत्येक मौसम संदेश देता सा जान पड़ता है। इसके पैरों में बसा भारत वेदों की गाथा गाता रहता है अर्थात् वेदों की कहानी कहता है। पर्वतराज हिमालय से भारत का विशेष नाता है।
प्रात:काल जब सूर्य निकलता है तो उसकी पहली लालिमा इस हिमालय की चोटी को चूमकर ही निखरती है अर्थात् पहली किरण इसी पर पड़ती है। शाम के समय भी छिपते सूर्य की लाली इसी चोटी पर बिखर कर अपनी छटा दिखाती है। इन चोटियों की विशेषता ही कुछ ऐसी है कि यहाँ सवेरे और शाम का वातावरण एक समान प्रतीत होता है। यहाँ किसी प्रकार की चिंता की आवश्यकता नहीं है। इस पृथ्वी पर रहने वाला हर व्यक्ति इस सूर्य के उगने और छिपने अर्थात् सुख-दुःख को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। भारत का इस हिमालय के साथ विशेष प्रकार का रिश्ता है।
हिमालय / रामधारी सिंह "दिनकर"
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार,
दिव्य, गौरव विराट्,
पौरूष
के पुन्जीभूत ज्वाल!
मेरी
जननी के हिम-किरीट!
मेरे
भारत के दिव्य भाल!
मेरे
नगपति! मेरे विशाल!
युग-युग
अजेय, निर्बन्ध, मुक्त,
युग-युग
गर्वोन्नत, नित महान,
निस्सीम
व्योम में तान रहा
युग
से किस महिमा का वितान?
कैसी
अखंड यह चिर-समाधि?
यतिवर!
कैसा यह अमर ध्यान?
तू
महाशून्य में खोज रहा
किस
जटिल समस्या का निदान?
उलझन
का कैसा विषम जाल?
मेरे
नगपति! मेरे विशाल!
ओ,
मौन, तपस्या-लीन यती!
पल
भर को तो कर दृगुन्मेष!
रे
ज्वालाओं से दग्ध, विकल
है
तड़प रहा पद पर स्वदेश।
सुखसिंधु,
पंचनद, ब्रह्मपुत्र,
गंगा,
यमुना की अमिय-धार
जिस
पुण्यभूमि की ओर बही
तेरी
विगलित करुणा उदार,
जिसके
द्वारों पर खड़ा क्रान्त
सीमापति!
तू ने की पुकार,
'पद-दलित
इसे करना पीछे
पहले
ले मेरा सिर उतार।'
उस
पुण्यभूमि पर आज तपी!
रे,
आन पड़ा संकट कराल,
व्याकुल
तेरे सुत तड़प रहे
डस
रहे चतुर्दिक विविध व्याल।
मेरे
नगपति! मेरे विशाल!
कितनी
मणियाँ लुट गईं? मिटा
कितना
मेरा वैभव अशेष!
तू
ध्यान-मग्न ही रहा, इधर
वीरान
हुआ प्यारा स्वदेश।
वैशाली
के भग्नावशेष से
पूछ
लिच्छवी-शान कहाँ?
ओ
री उदास गण्डकी! बता
विद्यापति
कवि के गान कहाँ?
तू
तरुण देश से पूछ अरे,
गूँजा
कैसा यह ध्वंस-राग?
अम्बुधि-अन्तस्तल-बीच
छिपी
यह
सुलग रही है कौन आग?
प्राची
के प्रांगण-बीच देख,
जल
रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल,
तू
सिंहनाद कर जाग तपी!
मेरे
नगपति! मेरे विशाल!
रे,
रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,
जाने
दे उनको स्वर्ग धीर,
पर,
फिर हमें गाण्डीव-गदा,
लौटा
दे अर्जुन-भीम वीर।
कह
दे शंकर से, आज करें
वे
प्रलय-नृत्य फिर एक बार।
सारे
भारत में गूँज उठे,
'हर-हर-बम'
का फिर महोच्चार।
ले
अंगडाई हिल उठे धरा
कर
निज विराट स्वर में निनाद
तू
शैलीराट हुँकार भरे
फट
जाए कुहा, भागे प्रमाद
तू
मौन त्याग, कर सिंहनाद
रे
तपी आज तप का न काल
नवयुग-शंखध्वनि
जगा रही
तू
जाग, जाग, मेरे विशाल
हिमालय के आँगन - जयशंकर प्रसाद
हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार
जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत
अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत
सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास
सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह
धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद
हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम
यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं
जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान
जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष
प्रश्न - 3 यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलने वाली नदियों में क्या क्या बदलाव आए हैं?
उत्तर- सन 1947 के बाद से हिमालय से निकलने वाली नदियों में अनेकों परिवर्तन हुए हैं। जो इस प्रकार हैं-
1. नदियों में से नहरें निकाली गई हैं और उनके रास्तों को जगह-जगह मोड़ दिया गया है।
2. इन नदियों पर अनेकों बाँध बना दिए गए हैं।
3. मनुष्य द्वारा कूड़ा-कचरा नदियों में छोडे जाने के कारण नदियाँ दूषित हो रहीं हैं।
4. आज के समय में नदियों का जल अमृत न होकर जहर बन गया है।
5. लोगों में नदियों के जल को शुद्ध करने कि काफी जागरूकता आई है।
6. सरकार एवं लोगों द्वारा जल शुद्धि से संबंधित तरह-तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं।
7. नदियों के प्रदूषित होने और नहरें निकाले जाने के कारण पानी का स्तर कम होता जा रहा है।
8. नदियों के तटीय इलाकों में अतिक्रमण होता जा रहा है।
प्रश्न-4. अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?
उत्तर- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं का प्रमुख निवास स्थान हिमालय पर्वत को माना जाता है। इसी पर्वत पर भगवान शंकर रहते थे। ऋषि-मुनि सिद्धि प्राप्त करने के लिए इसी पर्वत पर ही पूजा-अर्चना व तपस्या करते हैं। कालिदास ने अपनी रचना मेघदूत में हिमालय पर्वत का विस्तृत वर्णन किया है। इसीलिए कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न-1- लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों को ममता भरी आँखों से देखते हुए उन्हें हिमालय की बेटियाँ कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं। जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।
उत्तर- लेखक द्वारा नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहना बिल्कुल सही और तर्कसंगत है। इस आधार पर हम भी उन्हें हिमालय की बेटियाँ और अपनी माता कहेंगे। ये नदियाँ माँ की तरह मनुष्य का पालन पोषण करती हैं।
नदियाँ छोटी बच्ची की तरह से हिमालय की गोदी रूपी अनेक चोटियों शिखरों से खेलती-कूदती हुई आगे प्रवाहित होती हैं। वर्तमान में नदियों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित कार्य किए जा रहे हैं।
1. नदियों को प्रदूषित होने से बचाना
2. नदियों के जल प्रवाह की सही दिशा निर्धारित करना
3. जल के कटाव को रोकना
4. कम-से-कम नहरें निकालना
5. नदियों में कूड़ा-कचरा डालने से रोकना
6. कारखानों से निकले दूषित पानी को नदी में मिलने से रोकना
प्रश्न-2- नदियों से होने वाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों का एक निबंध लिखिए।
उत्तर-
नदियाँ अनेक स्रोतों से निकलकर धरती के समतल मैदानों पर बहती हैं। वे असंख्य प्राणियों को अपना जल प्रदान करती हैं और फिर सागरों में जा मिलती हैं। नदियाँ प्राणियों के जीवन का आधार हैं। वे अपने जल से धरती की प्यास बुझाती हैं और उसे जीवन-रस प्रदान कर उनका पोषण करती हैं। नदियाँ पेड़-पौधों के पोषण का आधार बनती हैं। न जाने कितने जीव इनके जल में बसते हैं। लोग इनसे मछलियाँ प्राप्त कर अपना पेट भरते हैं। नदियों का उपयोग परिवहन के लिए किया जाता है। नौकाओं के द्वारा लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से आते-जाते हैं। जंगलों से काटी गई लकड़ी को बहते पानी के माध्यम से दूसरे स्थानों पर भेजा जाता है। नदियों में पर्वतीय क्षेत्रों से बड़ी- बड़ी चट्टानें गिरती रहती हैं। वे आपस में टकरा-टकराकर रेत के कण और मिट्टी तैयार कर देती हैं। रेत का प्रयोग भवन-निर्माण में किया जाता है और चट्टानों के टुकड़ों का सड़क निर्माण में । इमारतों के फ़र्श भी तो इन्हीं से बनते हैं तथा यही कंकरीट बनाते हैं। नदियाँ सभी वनस्पतियों की आधार हैं। ये भूमिगत जल में वृद्धि करती हैं, जो कुओं और ट्यूबवैल के द्वारा फ़सलों की सिंचाई में सहयोग देती हैं। नदियों पर बाँध बनाकर विद्युत उत्पन्न की जाती है, जो केवल हमें रोशनी ही प्रदान नहीं करती, बल्कि सारे उद्योग-धंधों की आधार भी बनती है। नदियाँ हम सब के लिए आस्था का प्रतीक हैं ।
भाषा की बात
प्रश्न-1- अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की है। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण-
(क) संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं।
(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डूबकियाँ लगाया करता।
अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कापी में भी लिखिए।
उत्तर-
1. मेरे चाचा देवता तुल्य हैं।
2. दादी माँ शापभ्रष्ट देवी के समान लगती हैं।
3. बच्चे चाँदी के खिलौने के समान सुंदर हैं।
4. सागर की लहरों की भांति उसका मादक गान चारों दिशाओं में फैल रहा था।
5. आपकी आवाज़ कोयल-सी मीठी है।
6. उसका नृत्य इंद्रधनुष के गुच्छे के समान सहज लय ताल में चलता है।
प्रश्न-2. निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे-
(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।
(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है। पाठ से इसी तरह के और उदाहरण ढूँढ़िए।
उत्तर-
1. संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं।
2. जितना की इन बेटियों की बाल-लीला देखकर।
3. बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेल करती हैं।
4. हिमालय को ससुर और समुद्र को दामाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।
5. बुड्ढा हिमालय अब इन नटखट बेटियों के लिए कितना सिर धुनता होगा।
6. हिमालय की छोटी-बड़ी सभी बेटियाँ उसके आँखों के सामने नाचने लगती हैं।
प्रश्न-3. पिछली कक्षाओं में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं नीचे दिए गए विशेषण और विशेष्य का मिलान कीजिए।
उत्तर-
विशेषण विशेष्य
संभ्रांत महिला
चंचल नदियाँ
समतल आँगन
घना जंगल
मूसलाधार वर्षा
प्रश्न-4. द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे - राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए।
द्वंद्व समास के उदाहरण:-
- माता -पिता
- भाई - बहन
- सास - ससुर
- राम - सीता
- पति - पत्नी
- छोटी - बड़ी
प्रश्न-5. नदी को उलटा लिखने से दीन होता है जिसका अर्थ होता है गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उलटा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखिए, जैसे-नदी-दीन (भाववाचक संज्ञा)।
- तप – पत : भाववाचक संज्ञा
- नव - वन : जातिवाचक संज्ञा
- गल - लग : भाववाचक संज्ञा
- राम - मरा : भाववाचक संज्ञा
- याद - दया : भाववाचक संज्ञा
- राही - हीरा : द्रव्यवाचक संज्ञा
- धारा- राधा : व्यक्तिवाचक संज्ञा
प्रश्न-6. समय के साथ भाषा बदलती है, शब्द बदलते हैं और उनके रूप बदलते हैं जैसे बेतवा नदी के नाम का दूसरा रूप वेत्रवती है। नीचे दिए गए शब्दों में से ढूँढ कर इन नामों के अन्य रूप लिखिए।
उत्तर-
नया नाम - पुराना नाम
1-सतलुज - शतद्रुम
2-रोपड़ - रूपपुर
3-झेलम - वितस्ता
4-चिनाब - बिपाशा
5-अजमेर - अजयमेरु
6-बनारस - वाराणसी
प्रश्न-7 “उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में ये बच्चियाँ बनकर कैसे खेला करती हैं।–
· उपर्युक्त पंक्ति में ही के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ही वाला वाक्य के नकारात्मक अर्थ दे रहा है। इसीलिए ही वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कर सकते हैं- उनके ख्याल में शायद यह बात न आ सके।
· इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार नहीं के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं। जैसे- महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता। दोनों प्रकार के वाक्यों के समान तीन-तीन उदाहरण सोचिए और इस दृष्टि से उनका विश्लेषण कीजिए।
उत्तर
1-मोहन शायद ही नीति और आचरण की शिक्षा सीख पाए।
2-वह शायद ही जान पाए कि मैं तुम्हारे साथ आया हूँ।
3-उन्होंने शायद ही जाना हो कि मैं खेल के मैदान में आया हूँ।
1-भगवान शंकर के स्वभाव को कौन नहीं जानता।
2-शकुनि की चालें किससे छिपी हुई है।
3-रावण के अहंकार को कौन नहीं जानता।
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